
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मन को परेशान कर देने वाली कई खबरें सुनने-देखने को मिल गई थीं. गंगा में जिस तरह से कई शवों को प्रवाहित किया गया था, वो तो काफी दिल दहला देने वाला रहा. अब गुजरात में कवियित्री पारुल खाखर ने उन विचलित कर देने वाली घटनाओं पर एक कविता लिखी थी, उसकी काफी चर्चा भी रही. लेकिन अब उसी कविता को लेकर गुजरात में बवाल है. राज्य सरकार की गुजरात साहित्य अकादमी ने इसे साहित्यिक नक्सल करार दिया है. कहा गया है कि ऐसी कविताओं के जरिए अराजकता फैलाने का प्रयास हो रहा है.
गुजरात में कविता पर बवाल
साहित्य अकादमी ने अपने संपादकीय के जरिए उस कविता पर जमकर निशाना साधा है. एक बार के लिए लेख में कहीं भी शव वाहिनी गंगा का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन इशारा वहीं रहा है. लेख में साफ कहा गया है कि ये कविता नहीं है, बल्कि अराजकता फैलाने का काम हो रहा है. जोर देकर कहा गया है कि चर्चा में चल रही कविता किसी भी एंगल से काव्य नहीं है, ये बस व्यर्थ का आक्रोश है जहां पर भारतीय प्रजा, लोकतंत्र और समाज पर लांछन लगाने का काम किया गया है.

( प्रयागराज में गंगा किनारे शवों को यूं दफनाया गया- फोटो- पीटीआई)
क्या कविता के जरिए अराजकता?
संपादकीय में आगे लिखा गया है कि इस कविता में जिस प्रकार के शब्दों का इस्तेमाल हुआ है, वो किसी भी काव्य को शोभा नहीं देता है. ऐसी सोच सिर्फ देश में केंद्र विरोधी विचारधारा के विरोध में देखने को मिलती है. लेख के मुताबिक ऐसी ही सोच साहित्यिक नक्सलों की भी देखने को मिलती है.
गुजरात साहित्य अकादमी ने अपनी तरफ से साफ कर दिया है कि वे ऐसी किसी भी कविता को काव्य नहीं मानते हैं और वे उन कविताओं के जरिए प्रचार किए जा रहे विचारों से भी सहमत नहीं हैं. ऐसे में एक कविता को लेकर राज्य की सियासत काफी गरमा गई है.
सवाल तो इस बात को लेकर भी उठ रहे हैं कि क्या एक कविता को अराजकता फैलाने वाला बताया जा सकता है? लेकिन इस पर अभी कुछ भी ज्यादा खुलकर नहीं कहा जा रहा है. कवियित्री पारुल खाखर ने भी इस विवाद पर प्रतिक्रिया नहीं दी है.