कोरोना संक्रमण, न केवल शहरों को अपनी चपेट में ले चुका है बल्कि उसने अब ग्रामीणों को भी अपने काल के गाल में लीलना शुरू कर दिया है. गुजरात के गांवों में कोरोना के प्रवेश के कारण भयावह तस्वीरें सामने आने लगी हैं. लेकिन गांवों में सरकार एकदम अनुपस्थित है. अहमदाबाद से करीब 40 किमी दूर चरोडा गांव में बीते 15 दिन में कोरोना के कारण 50 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. इस गांव के लोगों में कोरोना को लेकर इतना भय भर चुका है लोग एक दूसरे के आसपास आने से भी डर रहे हैं.
कोरोना के कारण इस गांव ने सामूहिक तौर पर खुद ही लॉकडाउन लगा लिया है. पंचायत की ओर से बिना काम घर से बाहर निकलने वालों पर 5 हजार रुपये जुर्माना लगाया जा रहा है. इस सेल्फ लॉकडाउन का फायदा ये हुआ है कि अब करीब एक हफ्ते बाद यहां मामलों में कमी आई है. लेकिन अभी भी यहां कोरोना के पचास एक्टिव मामले हैं.
दस हजार की आबादी वाले चारोडा गांव में अब तक करीब एक हजार लोगों में कोरोना पाया गया है. अप्रैल महीने में एक तो ऐसा भी दिन था जिस दिन इस गांव में एक साथ 12 लोगों की जान चली गई थी. अपने पिता की तस्वीर देख रहे कुनाल नाम के एक शख्स की आंखों में वो लम्हा अब भी ताजा हो जाता है जब वे अपने पिता को एक बिस्तर दिलाने के लिए अहमदाबाद के अस्पतालों में खोजबीन कर रहे थे. हारकर उन्हें अपने पिता को वापस गांव में ही लाना पड़ा जहां उनका इलाज पहले ही चल रहा था.
कुनाल बताते हैं कि उनके पिता के लिए वेंटिलेटर वाला बिस्तर तो दूर साधारण बिस्तर भी उन्हें न मिल सका. कुनाल ये भी बताते हैं कि अगर उनके पिता की रिपोर्ट उन्हें समय से मिल जाती तो शायद उनकी जान बच जाती. समय से इलाज न मिल पाने के कारण 26 अप्रैल के दिन उनके पिता की जान चली गई.
कुनाल के घर ये दुःख इतने पर ही खत्म नहीं हुआ. अपने बेटे की मौत का सदमा उनकी दादी को ऐसा लगा कि उधर बेटे का दाह संस्कार हो रहा था इधर मां ने दम तोड़ दिया, अब परिवार वाले कह रहे हैं कि भगवान ऐसे दिन किसी को न दिखाए. कुनाल का ये गांव अकेले ऐसा गांव नहीं है, ये कहनी कोरोना संकट में सरकार की उपेक्षा का शिकार हर गांवों की है. जिसके लिए गुजरात की भाजपा सरकार 'मेरा गांव कोरोना मुक्त गांव' नाम का कार्यक्रम चला रही है.