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जब ज्योतिषी की बात सुनने दौड़ी-दौड़ी गईं थी हीराबेन, वडनगर को ऐसे याद हैं उनके किस्से 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबेन मोदी का शुक्रवार तड़के निधन हो गया. उन्होंने बड़ी गरीबी और संघर्षों का सामना किया, लेकिन अपने बच्चों को शिक्षा और संस्कार देने में पीछे नहीं हटीं. आज पूरे वडनगर में शोक का माहौल है. हीराबेन को करीब से जानने वाले तीन लोगों से जानिए कैसा था उनका जीवन, कितनी की थी तपस्या.

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बाईं तरफ खड़ी नरेंद्र मोदी की शिक्षिका हीराबा और दाईं और बैठी शकरीबा.
बाईं तरफ खड़ी नरेंद्र मोदी की शिक्षिका हीराबा और दाईं और बैठी शकरीबा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबेन का शुक्रवार सुबह 99 साल की उम्र में निधन हो गया. पीछे रह गए हैं, तो वडनगर के वो लोग जिन्होंने देश के पीएम के संघर्ष के दिनों को और उनकी मां के त्याग को देखा है. आज हम आपको ऐसे ही तीन लोगों की जुबानी बताने जा रहे हैं कि वडनगर पीएम मोदी और उनकी मां को कैसे याद करता है… 

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ज्योतिषी की बात सुनने दौड़ी चली आईं थी हीराबेन- मोदी की शिक्षिका हीराबा 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्राथमिक शिक्षा देने वाली उनकी स्कूल की अध्यापक हीराबा अब 90 साल की हो चुकी हैं. बरसों पहले की बात याद करते हुए उन्होंने बताया हीराबेन और हम एक ही मोहल्ले में रहते थे. वह कभी मोदी को छोड़ने स्कूल नहीं आती थीं. न ही कोई फरियाद करती थीं.

मोदी पढ़ने में बहुत होशियार थे. बरसों पहले हमारे गांव में एक ज्योतिषी आया था. उसने नरेंद्र मोदी को देखते ही बोला था कि वह देश का बहुत बड़ा आदमी बनेगा. यह बात जब हीराबेन को पता चली, तो वह दौड़ी हुई ज्योतिषी के पास पहुंची थीं. 

जब ज्योतिषी ने अपनी बात फिर से दोहराई, तो वह बहुत खुश हो गईं थीं. उस समय उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी थी. उन्होंने बहुत मेहनत से अपने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया और आज नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं.

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बेटे ने साकार कर दिया हीराबेन का सपना 

मोदी की शिक्षिका ने बताया कि आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के बावजूद भी हीराबेन अपने बच्चों के अभ्यास पर पूरा ध्यान देती थीं. वह भले ही वह मजदूरी करती थीं, लेकिन अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाने के बारे में वह सोचती थीं. आज भले ही वह दुनिया में न हों, लेकिन उनका सपना उनके बेटे ने साकार किया है.

हीराबेन ने बहुत दुख भरे दिन गुजारे, उनकी आत्मा को शांति मिले- दोस्त शकरी बेन  

हीराबेन के बिल्कुल बगल में रहने वाली और उनकी सुख-दुख की साथी 85 साल की शकरी बेन बहुत दुखी दिखीं. उन्होंने रोते हुए कहा कि हीराबा देवी थीं. उन्होंने जीवन भर संघर्ष करके अपने चारों बच्चों को सिर्फ बड़ा ही नहीं किया, बल्कि उनको अच्छे संस्कार और शिक्षा भी दी. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे. 

शकरी बेन ने कहा कि नरेंद्र मोदी जब घर छोड़कर जा रहे थे, तब हीराबहन बहुत दुखी थीं. मेरे पास आकर बोलीं कि यह नरेंद्र जा रहा है, उसको समझाओ. उस समय परिस्थिति विकट थी और मैंने उनको कहा कि बेटा कुछ करने जा रहा है, तो उसको रोको मत, उसको जाने दो. 

आंखों में आंसुओं के साथ उन्होंने नरेंद्र को विदाई दी थी. वह उनका बहुत चहेता बेटा था. उसके बिना रहना हीराबेन के लिए बहुत मुश्किल था. नरेंद्र मोदी को याद करके हमेशा उनकी आंखों में आंसू छलक जाते थे. शकरीबा ने अपने पुराने दिन याद करते हुए कहा कि जब बच्चे छोटे थे, तब हीराबेन की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी.

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चारों बच्चों की जवाबदारी और ऊपर से रेलवे स्टेशन पर उनकी चाय की दुकान थी. वहां दूध देने के लिए जाने के साथ-साथ लोगों के घरों में काम करके उन्होंने बच्चों को पढ़ाया और अच्छे संस्कार दिए. उन्होंने मजदूरी की, लेकिन किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया.

आज आप देखिए कि उनका बेटा देश का प्रधानमंत्री है. यह देखकर ही उनका मन खुश रहता था. आज भले ही हीराबेन हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जिस बेटे को उन्होंने जन्म दिया है, वह बेटा आज भारत की शान है. इससे ज्यादा मां को और क्या चाहिए. 

हमारी दुकान पर कपड़े सिलवाने आते थे मोदी- हर्षद भाई दर्जी 

वडनगर में जहां नरेंद्र मोदी रहते थे, उसी मोहल्ले में दर्जी काम करने वाले हर्षद भाई दर्जी रहते हैं. उन्होंने बताया कि मेरे पिताजी उस समय कपड़े सिलते थे. वह गांव में अकेले दर्जी थे. तब मेरी उम्र 13-14 साल थी. उस समय हीराबा की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. वह जो भी सिलाई कराने आते थे, तो उसका एक भी पैसा मेरे पिता नहीं लेते थे. हर्षद भाई ने बताया कि हीराबेन कभी भी हमारी दुकान पर नहीं आईं. वह बहुत संवेदनशील थीं. आज हमें ऐसा लग रहा है जैसे मोदी जी की नहीं, हमारी माता का देहांत हुआ हो. 

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(इनपुट- कामनी आचार्य)

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