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मोदी के साथ सोमनाथ मंदिर में केशुभाई पटेल, क्या हार्दिक फैक्टर की काट?

अटकलें लगनी शुरू हो गईं कि क्या हार्दिक पटेल फैक्टर की काट के लिए बीजेपी फिर से केशुभाई पटेल को आगे करने की तैयारी में है. लेकिन क्या ये इतना आसान है. जानें क्या मुश्किलें हैं पाटीदार आंदोलन की और बीजेपी के लिए क्यों नहीं है राह आसान-

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सोमनाथ की पूजा में केशुभाई पटेल के साथ पीएम मोदी और जडेजा
सोमनाथ की पूजा में केशुभाई पटेल के साथ पीएम मोदी और जडेजा

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बुधवार को पीएम मोदी जब गुजरात के सोमनाथ मंदिर में विशेष पूजा के लिए पहुंचे तो अमित शाह के साथ केशुभाई पटेल की मौजूदगी ने सियासी अटकलों को फिर जन्म दे दिया. अटकलें लगनी शुरू हो गईं कि क्या हार्दिक पटेल फैक्टर की काट के लिए बीजेपी फिर से केशुभाई पटेल को आगे करने की तैयारी में है. लेकिन क्या ये इतना आसान है. जानें क्या मुश्किलें हैं पाटीदार आंदोलन की और बीजेपी के लिए क्यों नहीं है राह आसान-

1. टीम मोदी के कितना करीब आ पाएंगे केशुभाई?
केशुभाई पटेल कभी गुजरात की राजनीति में मोदी से काफी ऊपर थे और उनकी गद्दी पर ही बाद में मोदी आसीन हुए. तबसे मोदी और केशुभाई पटेल के रिश्तों की तल्खी किसी से छुपी नहीं रही. लेकिन अचानक केशुभाई पटेल मोदी के साथ दिखे तो कहा जाने लगा कि हार्दिक पटेल से मिल रही चुनौती से निपटने के लिए फिर बीजेपी दूसरे पाटीदार नेता केशुभाई पटेल को साथ लाने में जुटी है.

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2. पटेलों में हार्दिक की कितनी पैठ?
कभी केशुभाई पटेल जिस पाटीदार समुदाय के नेता माने जाते थे और उनके लिए आरक्षण की मांग के साथ हार्दिक पटेल आंदोलनकारी की भूमिका में हैं और उनकी सीधी टक्कर टीम मोदी से है. हार्दिक पटेल राज्य में कई बड़ी रैलियां कर चुके हैं और अबतक बीजेपी सरकार के लिए इसका सामना करना आसान नहीं रहा.

3. शिवसेना से हार्दिक के जुड़ने का क्या होगा असर?
हार्दिक पटेल अब गुजरात में शिवसेना के फेस हैं और ऐसे में बीजेपी को अपने लिए फिर से संभावनाएं दिख रही हैं. केशुभाई पटेल को साथ लाना बीजेपी की संभावनाएं फिर से जगाती है. हालांकि, हार्दिक और शिवसेना के एक होने का नुकसान भी बीजेपी को उठाना पड़ सकता है. शिवसेना कट्टर हिंदुवादी मानी जाती है और हार्दिक पटेल को अगर थोड़ा भी इससे फायदा हुआ तो इसकी सीधा नुकसान बीजेपी को होगा.

4. रुपाणी फैक्टर से कैसे उबरेगी बीजेपी?
आनंदी बेन पटेल को हटाकर गैर पटेल नेता विजय रुपाणी को सीएम बनाने के बाद बीजेपी के लिए जरूरी है कि कोई पटेल नेता आगे रखा जाए ताकि हार्दिक पटेल को पाटीदार समुदाय में पैठ बनाने का मौका न मिल सके. ऐसे में केशुभाई पटेल के लिए फिर से बीजेपी में जगह बनाना आसान होगा. हालांकि, लोकसभा चुनाव में जीत के बाद मोदी केशुभाई पटेल से मिलने पहुंचे थे और अब सोमनाथ मंदिर में दोनों नेता साथ दिखे. इसके सियासी मायने खोजे जा रहे हैं.

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क्या है गुजरात में पटेल आंदोलन की पृष्ठभूमि?
बख़्शी आयोग ने गुजरात में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े समुदायों की पहचान कर 1970 के दशक में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान किया. इसमें पाटीदार शामिल नहीं थे, जिनका सामाजिक दबदबा पहले भी था और अब भी है. क्षत्रिय समुदाय को आरक्षण की सूची में शामिल करने के बाद पटेलों ने आरक्षण आंदोलन शुरू किया. तब गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मूलतः पटेलों की पार्टी मानी जाती थी.

वोटों की हिस्सेदारी (उत्तर में 30 फ़ीसदी) के लिहाज से कांग्रेस का भी राज्य में अच्छा हिस्सा है और यह राज्य में मूलतः क्षत्रियों की पार्टी मानी जाती है पाटीदारों का गुस्सा इस बात को लेकर ज़्यादा था कि उनकी जगह निचली जातियों को दे दी गई है. पिछले दो साल से हार्दिक पटेल पाटीदारों के नेता के रुप में उभरे हैं और मोदी के खिलाफ कई राज्यों के क्षेत्रीय नेताओं का उन्हें समर्थन हासिल हुआ है. ये बीजेपी के लिए मुसीबत बन सकती है इसी की काट के लिए बीजेपी को एक प्रभावशाली पाटीदार नेता की जरूरत है. 


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