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राजकोट: एक महीने में 134 बच्चों की मौत, कांग्रेस बोली- मोदीजी चुप, शाहजी चुप!

राजकोट के एक सरकारी अस्पताल में पिछले एक महीने यानी दिसंबर में 134 बच्चों की मौत हुई है. हालांकि बच्चों की मौत की वजह कुपोषण, जन्म से ही बीमारी, वक्त से पहले जन्म, मां का खुद कुपोषित होना बताया जा रहा है.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

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  • राजकोट का अस्पताल बना बच्चों के लिए काल
  • दिसंबर महीने में 134 बच्चों ने तोड़ा दम
  • सवाल पर सीएम रूपाणी ने साधी चुप्पी

राजस्थान में कोटा के एक अस्पताल में बच्चों की मौत का सिलसिला अभी थमा भी नहीं था कि गुजरात के राजकोट में भी मासूमों की मौत की घटना सामने आ गई है. बताया जा रहा है कि राजकोट के एक सरकारी अस्पताल में पिछले एक महीने यानी दिसंबर में 134 बच्चों की मौत हुई है. हालांकि बच्चों की मौत की वजह कुपोषण, जन्म से ही बीमारी, वक्त से पहले जन्म, मां का खुद कुपोषित होना बताया जा रहा है. यह भी कहा जा रहा है कि राजकोट में सिविल अस्पताल में मरने वाले सभी बच्चे नवजात थे. अस्पताल के आईसीयू में ढाई किलो से कम वजन वाले बच्चों को बचाने की व्यवस्थाएं और क्षमता नहीं है.

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बच्चों की मौत का आंकड़ा

बच्चों की मौत के मामले में अहमदाबाद सिविल अस्पताल के सुप्रीटेंडेंट ने कुछ आंकड़े सामने रखे हैं. सुप्रीटेंडेंट के मुताबिक बच्चों की मृत्युदर 18 से 20 फीसदी के आसपास है. पिछले साल के तीन महीने के आंकड़े देखें तो अक्टूबर में 1375 बच्चे अस्पताल में दाखिल हुए जिनमें 94 की मौत हो गई. नवंबर में 1086 बच्चे भर्ती हुए जिनमें 74 की मौत हो गई. वहीं दिसंबर में 974 बच्चे अस्पताल में भर्ती कराए गए जिनमें 85 की मौत हो गई. पिछले साल राजकोट में 1235 बच्चों की मौत हुई है जबकि जामनगर में 639 बच्चे दुनिया छोड़ गए.

कोटा में मौत का सिलसिला जारी

राजस्थान के कोटा में बच्चों के मरने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत का आंकड़ा बढ़कर रविवार को 110 पहुंच गया है. अस्पताल में 100 से ज्यादा बच्चों की मौत के बाद सरकार ने जांच पैनल नियुक्त किया था. विशेषज्ञों की टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि हाइपोथर्मिया (शरीर का तापमान असंतुलित हो जाना) के कारण बच्चों की मौत हुई है. अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं की कमी भी इसकी वजह बताई जा रही है. राजस्थान सरकार की ओर से बच्चों की मौत के कारण का पता लगाने के लिए गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट में पुष्टि की है कि हाइपोथर्मिया के कारण शिशुओं की मौत हुई है.

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कोटा से भी बदतर बीकानेर

बच्चों की मौत के मामले में बीकानेर के पीबीएम शिशु हॉस्पिटल ने कोटा के जे.के. लोन अस्पताल को भी पीछे छोड़ दिया है. कोटा में जहां 35 दिनों में 110 बच्चों की मौत हुई वहीं बीकानेर के हॉस्पिटल में दिसंबर के 31 दिनों में 162 बच्चे काल के गाल में समा गए. इन आंकड़ों का मतलब है कि हर दिन पांच से ज्यादा बच्चों की मौत हो रही है. महज दिसंबर महीने की बात करें तो इस अस्पताल में जन्मे और बाहर से आए 2219 बच्चे पीबीएम शिशु हॉस्पिटल में भर्ती हुए. इन्हीं में से 162 यानी 7.3 फीसदी बच्चों की मौत हो गई. पूरे साल की बात करें तो जनवरी 2019 से दिसंबर 2019 तक यहां कुल 1681 बच्चों की मौत हो चुकी है. 220 बेड के पीबीएम शिशु हॉस्पिटल में 140 बेड जनरल वार्ड के हैं. वहीं 72 बेड नियोनेटल केयर युनिट यानी नवजात बच्चों की देखभाल के लिए हैं.

मौत पर सियासत तेज

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी से बच्चों की मौत पर सवाल पूछा गया लेकिन उन्होंने कोई जवाब देने से परहेज किया. दरअसल, रविवार को मीडिया ने जब सीएम रूपाणी से बच्चों की मौत के मामले पर सवाल किया तो वे चुप्पी साधते हुए बिना कुछ प्रतिक्रिया दिए चले गए. इधर दिल्ली में कांग्रेस ने विजय रूपाणी पर करारा प्रहार किया.

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कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि विजय रूपाणी खुद राजकोट से विधायक हैं जबकि राजकोट के अस्पताल में पिछले साल जनवरी से दिसंबर तक 1235 मासूमों की मौत हो गई.

सुरजेवाला ने कहा, अहमदाबाद सिविल अस्पताल में 3 महीने में 375 मासूमों की मौत हो गई, जहां से अमित शाह सांसद हैं. सवाल पूछने पर मुख्यमंत्री भाग खड़े हुए, क्या प्रधानमंत्री ऐसे मुख्यमंत्री को बर्खास्त करेंगे?

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