सोमवार का दिन गुजरात के लीलाभाई गोल और भीखीबेन गोल का दिन काफी खास रहा, क्योंकि आज तीन साल बाद उनका बेटा उन्हें वापस मिल गया है. दरअसल गोल परिवार का 28 साल का बेटा उन्हें छोड़कर इस्कॉन का साधु बन गया था. इतना ही नहीं उसने अपना नाम धर्मेश से धर्मपुत्रदास रख लिया था.
शारीरिक रूप से दिव्यांग दंपती ने अपने बेटे से गुजारा भत्ते के लिए पिछले महीने गुजरात स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी का दरवाजा खटखटाया था. परिवार ने बेटे पर अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हटने का आरोप लगाया था.
माता-पिता ने अपने भरण-पोषण के लिए 20 लाख रुपये की मांग की थी. उनका कहना था कि यह पैसे उन्होंने बेटे की शिक्षा समेत अन्य जरूरतों पर खर्च किए थे.
परिजनों के मुताबिक धर्मेश के पिता को मिलने वाली 30 हजार रुपये की पेंशन से परिवार का गुजारा नहीं चल सकता. वहीं, धर्मेश ने परिजनों पर मानसिक प्रताड़ना और अगवा करने की कोशिश का आरोप लगाया था.
कानूनी सलाहकारों ने मंदिर प्रशासन और धर्मेश से बीच का रास्ता निकालने की सलाह दी थी.
बता दें कि दंपति को मामले में 10 सितम्बर को हुई पहली काउंसलिंग के बाद 24 सितंबर को दोबारा लीगल सर्विसेज अथॉरिटी में पेश होना था, लेकिन उससे पहले ही उनका बेटा वापस लौट आया.
धर्मेश का कहना है कि जो कानूनी नोटिस उसे भेजा गया था, उसमें 35 लाख रुपये देने कि बात कही गई थी, जो मेरे लिए देना नामुमकिन था. इसलिए मैंने घर वापस आने का फैसला किया.
हालांकि, धर्मेश का ये भी कहना है कि मैं कोशिश करूंगा कि पिछली सारी बातों को भूलकर अपने माता-पिता के साथ शांति से रहुं. उसने लीगल सर्विसेज आथॉरिटी में ये बयान भी दिया हे कि वह अब अपने माता-पिता के साथ ही रहना चाहता है.
बेटे के घर लौटने से परिवार काफी खुश है. धर्मेश कि मां का कहना है कि हम पिछली सारी बातों को भूल चुके हैं. बस हमारा बेटा हमारे पास आया यही काफी है.
बता दें कि धर्मेश ने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (NIPMER) मोहाली से एमफार्मा की पढ़ाई की है. हालांकि, 2015 में ही उसने घर छोड़ दिया और इस्कॉन से जुड़ गया.
वहीं परिजनों का कहना है कि संप्रदाय के लोगों ने उनके बेटे का ब्रेनवॉश किया है. मामले में कानूनी सलाहकारों ने उन्हें ऐसे दावे करने से बचने की सलाह दी क्योंकि धर्मेश बालिग है और कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र और जिम्मेदार है.