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मोरबी को कहा जाता है सौराष्ट्र का पेरिस, जहां पुल टूटने से हुई थी 140 लोगों की मौत

गुजरात के मोरबी शहर में पुल टूटने से 140 से अधिक लोगों की जान चली गई. इस शहर को सौराष्ट्र का पेरिस कहा जाता है. यहां कई तरह के उद्योग और व्यवसाय चल रहे हैं. औद्योगिक नगरी मोरबी में यूपी, बिहार आदि राज्यों से भी लोग रोजगार के लिए पहुंचते हैं. टाइल्स उत्पादन में मोरबी विश्व में दूसरे नंबर पर है.

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गुजरात के मोरबी शहर को कहा जाता है सौराष्ट्र का पेरिस.
गुजरात के मोरबी शहर को कहा जाता है सौराष्ट्र का पेरिस.

गुजरात के मोरबी शहर में हुए पुल हादसे के बाद यह जगह चर्चा में आ गई है. यहां 30 अक्टूबर को केबिल पुल के टूटने की वजह से 140 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना के पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था और हर कोई मोरबी हादसे के बारे में जानना चाहता था. आज हम आपको इसी शहर के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं, जिसे सौराष्ट्र का पेरिस भी कहा जाता है.

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टाइल्स के मामले में चीन के बाद दूसरे नंबर पर 

मोरबी को औद्योगिक नगरी भी कहा जाता है. गुजरात के विकास में इस शहर का अहम योगदान है. यहां दुनियाभर में मशहूर टाइल्स और घड़ी बनाने की फैक्ट्रियां हैं. इसकी एक अन्य पहचान सिरेमिक सिटी के रूप में भी है. टाइल्स उत्पादन में मोरबी विश्व में दूसरे नंबर पर है. चीन के बाद विश्व में सबसे ज्यादा टाइल्स यहीं बनती हैं.

भारत में बनने वाली टाइल्स में से तकरीबन 80 फीसदी टाइल्स इसी शहर में बनाई जाती हैं. मोरबी में तकरीबन एक हजार से भी ज्यादा सिरेमिक फैक्ट्रियां हैं. विश्व के 200 से ज्यादा देशों में यहां से टाइल्स भेजी जाती हैं. मोरबी में बड़ी-बड़ी सिरेमिक फैक्ट्रियां हैं. यहां एक हजार से ज्यादा सिरेमिक फैक्ट्री होने से लोगों को रोजगार मिल जाता है.

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विश्व को समय दिखाने वाला शहर 

इसके अलावा मोरबी का घड़ी उद्योग देश-विदेश में जाना जाता है. 'विश्व को समय दिखाने वाले शहर' के नाम से भी मोरबी को नवाजा जाता है. दूसरे राज्य यूपी, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश से लोग यहां रोजगारी के लिए आते हैं. यहां करीब 5 लाख लोग दूसरे राज्यों से आकर काम कर रहे हैं. इसके अलावा खेती भी होती है. मालिया में नमक का कारोबार भी बड़े स्तर पर किया जाता है. 

ट्रैफिक और प्रदूषण की समस्या

मोरबी की सबसे बड़ी समस्या ट्रैफिक, गंदगी और प्रदूषण है. सिरेमिक इंडस्ट्री के कारण लगातार 24 घंटे हवा और पानी प्रदूषित हो रहे हैं. एक हजार से भी ज्यादा सिरेमिक की फैक्ट्रियां होने के कारण प्रदूषण की समस्या बनी रहती है. ऐतिहासिक शहर में ज्यादा आबादी हो जाने के कारण गली और रास्ते छोटे लगने लगे हैं.

मोरबी में लोगों से ज्यादा दो पहिया और कारें हैं. अभी के रास्ते चौड़े नहीं होने के कारण ट्रैफिक समस्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. उद्योग होने के कारण छोटे-बड़े सभी तरह के लोगों के पास वाहन हैं. इसके चलते ट्रैफिक जाम लगा रहता है. मोरबी में सिरेमिक इंडस्ट्री के चलते हर दिन 7 से 8 हजार ट्रक आते-जाते रहते हैं.

सफाई का अभाव

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मोरबी में सफाई की कमी सालों से देखने को मिल रही है. मोरबी नगर पालिका चाहे भाजपा के हाथों में रही हो या कांग्रेस के हाथों में, लेकिन गंदगी आज तक साफ नहीं हो पाई है. किसी ने भी इसकी परवाह नहीं की. शहर में जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे हुए दिखते हैं. 

मेडिकल सुविधाएं

मोरबी में जिले का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है. मगर, इसकी हालत भी ठीक नहीं है. मरीजों से ज्यादा बीमार यहां का सरकारी अस्पताल है. सालों से अलग-अलग विभाग के डॉक्टरों की कमी है.

सुविधा के नाम पर जिले के अन्य तहसील और आस-पास के गावों में सीएचसी और पीएचसी सेंटर अच्छे हैं. इसकी वजह से प्राथमिक उपचार मिल जाता है. मगर, सरकारी अस्पताल में व्यवस्थाएं लचर हैं. दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोग सरकारी अस्पताल पर निर्भर रहते हैं.

शिक्षा व्यवस्था

यहां के सरकारी स्कूल अच्छे हैं. वीसी टेक्निकल हाईस्कूल मोरबी का जाना-माना स्कूल है. शिक्षा का स्तर भी ठीक है. कई सारे निजी स्कूल हैं, जिसमें आधुनिक तरीके से पढ़ाई कराई जा रही है.

आपदाओं के बाद साहस से खड़े हैं स्थानीय लोग

मोरबी में दो-दो बड़ी आपदाओं के बावजूद स्थानीय लोग साहस रखकर डटे हुए हैं. साल 1979 में मच्छु डैम टूटने की वजह से पूरा मोरबी तहस-नहस हो गया था. इसके बाद 2001 में भूकंप ने फिर से मोरबी को हिला कर रख दिया. दो-दो बड़ी आपदाओं से उभरकर मोरबी ने सिरेमिक टाइल्स और घड़ी उद्योग के चलते देश-विदेश में अपना नाम बनाया. 

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(रिपोर्टः राजेश अंबालिया)

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