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मोरबी में 43 साल पहले टूटा था मच्छु बांध, मारे गए थे सैकड़ों लोग, पहुंची थीं इंदिरा गांधी

दिन था 11 अगस्त 1979. लगातार बारिश के चलते दोपहर करीब सवा तीन बजे मच्छु बांध पानी के तेज बहाव में टूट गया और 15 मिनट में ही पूरा जिला तबाह हो गया. जिसमें हजारों लोगों की डूबने से मौत हो गई थी. करीब दो घंटे के भीतर ही सैकड़ों मकान और इमारतें जमींदोज होने लगीं.

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मोरबी में मच्छू बांध टूटने से गई थी हजारों की जान
मोरबी में मच्छू बांध टूटने से गई थी हजारों की जान

गुजरात के मोरबी में रविवार को मच्छु नदी पर बने केबल ब्रिज टूटने से 141  लोगों की मौत हो गई. 43 साल पहले भी इसी नदी पर बना एक बांध टूटा था, जिसमें एक हजार से अधिक इंसानों और करीब तीन हजार जानवरों की मौत हुई थी. दिन था 11 अगस्त 1979. लगातार बारिश के चलते दोपहर करीब सवा तीन बजे मच्छु बांध पानी के तेज बहाव में टूट गया और 15 मिनट में ही पूरा जिला तबाह हो गया. जिसमें हजारों लोगों की डूबने से मौत हो गई थी. करीब दो घंटे के भीतर ही सैकड़ों मकान और इमारतें जमींदोज होने लगीं. पानी इतनी तेजी से इलाकों में घुसा कि लोगों को संभलने का मौका तक नहीं मिला. इस हादसे में हजारों पशुओं की भी मौत हुई थी.

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गुजराती मैगजीन में छपी इंदिरा गांधी की तस्वीर

इस हादसे में पूरा शहर मलबे में तब्दील हो चुका था और चारों ओर सिर्फ लाशें नजर आ रही थीं. तब चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री और गुजरात के मुख्यमंत्री बाबू भाई पटेल थे. इंसानों और पशुओं की लाशें सड़ चुकी थीं. इस त्रासदी के कुछ दिनों बाद 16 अगस्त को इंदिरा गांधी ने मोरबी का दौरा किया था, तो लाशों की दुर्गंध इतनी ज्यादा थी कि उनको नाक में रुमाल रखना पड़ा था. इसकी तस्वीरें अखबार में भी छापी थीं. उधर, सरकार ने इसे एक्ट ऑफ गॉड करार दिया था.

बता दें कि सुरेंद्रनगर, राजकोट और मोरबी से होते हुए मच्छु नदी बहती है. 1969 से 1972 तक लगातार 3 साल के काम के बाद मच्छु नदी पर मच्छु-2 बांध बनकर तैयार हुआ था. यहां पर मच्छु बांध 1 पहले से ही मौजूद था. मिट्टी, रबिश और कंक्रीट से इस बांध को तैयार किया गया था. इस बांध की लंबाई 12 हजार 700 फीट और अधिकतम ऊंचाई 60 फीट थी. वहीं मच्छु बांध-1 1959 में ही बन चुका था. 

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इंसानों और जानवरों के हजारों शव हुए थे बरामद

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक 19 अगस्त 1979 को तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूभाई पटेल ने मोरबी में ही सेक्रेटरिएट बैठक ली थी. यहां उन्होंने जानकारी दी थी कि मच्छु डैम हादसे के बाद इंसानों के 1,137 शव और जानवरों के 2,919 शव बरामद हुए थे, जबकि विपक्ष ने हजारों लोगों की मौत का दावा किया था. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक उस समय करीब 100 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. दावा किया गया कि 7 हजार लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया था. जब पत्रकार सीएम से पूछते कि बांध कैसे टूटा तो वह झल्ला जाते और कहते कि अभी जो कर रहे हैं वो देखो ना.

बांध

गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड ने वीभत्स हादसा माना था

2005 से पहले गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड ने डैम टूटने से इस हादसे को सबसे वीभत्स बताया था. शवों के सड़ने से हालात बदतर हो चुके थे और महामारी फैल रही थी. उस समय मोरबी का दौरा करने वाले नेता और राहत एवं बचाव कार्य में लगे लोग भी बीमारी का शिकार हो गए थे. इलाके का दौरा करने वाले नेताओं और राहत कार्य में लगे लोगों ने सिर में दर्द समेत कई तरह की शिकायतें की थीं. शवों का एक साथ अंतिम संस्कार किया जा रहा था. मोरबी शहर शमशान में तब्दील हो चुका था. 

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किताब में आधिकारिक दावों को किया गया था खारिज

टॉम वूटेन और उत्पल संदेसरा द्वारा लिखी गई पुस्तक 'नो वन हैड ए टंग टू स्पीक' ने सरकार के 'एक्ट ऑफ गॉड' के दावे को खारिज किया गया था. इसमें बांध की विफलता के लिए कई संरचनात्मक और संचार विफलताओं की ओर इशारा किया गया था, जिससे आपदा की स्थिति पैदा हुई. इस किताब में लेखकों द्वारा हादसे में बचे लोगों से बातचीत की गई थी. उत्पल गुजरात के ही रहने वाले थे, जो उस समय अमेरिका में पढ़ रहे थे. उन्होंने अपने दोस्त टॉम वूटेन के साथ अपनी जान पहचान वालों से बात की और ऐसे 148 लोगों का इंटरव्यू लिया था, जिन्होंने इस आपदा को झेला था. 

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