अहमदाबाद में लगभग 200 डॉक्टर ऐसे हैं जो या तो जूते बेच रहे हैं या अस्पताल में गार्ड की नौकरी कर रहे हैं या किसी दुकान में हेल्पर का काम कर रहे हैं. ये डॉक्टर पाकिस्तान के सिंध से आतंकियों के डर से भाग कर आए हैं. पाकिस्तान में हिंदुओं पर हो रहे हमलों से डरकर गुजरात आए इन डॉक्टरों के पास डॉक्टरी की डिग्री तो है लेकिन जीवनयापन के लिए इन्हें जो भी काम मिल रहा है वो करने को मजबूर हैं.
एक अंग्रेजी अखबार की खबर के मुताबिक, पाकिस्तान के सिंध प्रांत के इन डॉक्टर्स के पास डिग्री है लेकिन वे भारत में प्रैक्टिस नहीं कर पा रहे हैं. कराची यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस की परीक्षा पास करने के बाद दशरथ केला (38) ने साल 2001 में बतौर डॉक्टर अपना करियर शुरू किया था. लेकिन सुरक्षा कारणों से वह 2006 में पाकिस्तान से भागकर अहमदाबाद आ गए. आज MBBS दशरथ केला गुजरात के मणिनगर में अपने चचेरे भाई की जूतों की दुकान पर असिस्टेंट के तौर पर नौकरी करते हैं.
इसी तरह सिंध प्रांत में 46 साल के डॉक्टर जयराम लोहाना की कमाई एक लाख रुपये महीना थी. 2012 में वह पाकिस्तान से अहमदाबाद आ गए. यहां वह एयरपोर्ट के पास अपने एक रिश्तेदार की मोबाइल शॉप पर काम करते हैं. लोहाना कहते हैं कि पाकिस्तान में लोग हमें भगवान की तरह समझते हैं. यहां जिंदा रहने के लिए हमें नौकरी की भीख मांगनी पड़ रही है. उन्होंने ग्रामीण इलाकों में अपनी सेवाएं देने के लिए आवेदन दिया था, लेकिन एमसीआई ने आवेदन खारिज कर दिया.
अधिकतर पाकिस्तानी डॉक्टर सुरक्षा कारणों से गुजरात में आकर बसे हैं. उनका कहना है कि असामाजिक तत्वों द्वारा पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू परिवारों की बेटियों का अपहरण और अवैध वसूली जैसी घटनाएं सामान्य हैं. अहमदाबाद में सिंधियों की बड़ी आबादी होने के कारण उनके लिए यहां बसना आसान रहा. आतंकी भी उन्हें मारने की धमकी देते थे.
क्या है इनकी परेशानी की असली वजह?
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) से इजाजत नहीं मिलने के कारण ये पाकिस्तानी डॉक्टर भारत में प्रैक्टिस नहीं कर सकते हैं. पाकिस्तान के इन डॉक्टर्स के पास इलाज का हुनर तो है, लेकिन नियमों ने हाथ बांध रखे हैं. इसके साथ नागरिकता को लेकर भी असमंजस बरकरार है. कई डॉक्टर्स के पास अब फॉर्मेसीज या हॉस्पिटल की नाइट शिफ्ट में 'चैरिटी' के तौर पर काम करने का ही विकल्प है. इन्हें आधिकारिक तौर पर कोई ड्यूटी पर नहीं रख सकता है.