गुजरात के दाहोद में बीते महीने स्कूल प्रिंसिपल ने रेप का प्रयास और हत्या की वारदात को अंजाम दिया था. इस मामले में गुजरात पुलिस ने सिर्फ 12 दिन में चार्जशीट दाखिल कर दी. गुजरात के गृह राज्य मंत्री हर्ष संघवी ने दावा किया है कि पुलिस ने एफएसएल की मदद से अपराध से संबंधित जरूरी वैज्ञानिक साक्ष्य इकट्ठे किए हैं और आरोपी को कड़ी सजा दिलाने के लिए 12 दिनों के भीतर आरोप पत्र रिकॉर्ड ब्रेक समय में दर्ज किया है.
मंत्री ने कहा है कि कुल 1700 पन्नों की चार्जशीट तैयार की गई है और करीब 150 गवाहों से पूछताछ और जांच की गई है. इस पूरे मामले में सरकार ने स्पेशल पीपी अमित नायर को नियुक्त किया है. मंत्री ने कहा कि आरोप पत्र में डिजिटल साक्ष्य, फोरेंसिक डीएनए विश्लेषण, फोरेंसिक जैविक विश्लेषण शामिल किया गया है.
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खास बात यह है कि इस बार एपिथेलियल कोशिकाओं की जांच की गई. यह त्वचा और शरीर के आंतरिक हिस्सों में मौजूद कोशिकाएं होती हैं, जो बहुत कम मात्रा में पाई जाती हैं. जब किसी अपराध के दौरान ऐसी कोशिकाएं पाई जाती हैं तो डीएनए से संदिग्ध के अपराध में शामिल होने की पुष्टि हो जाती है. यदि संदिग्ध का डीएनए इन कोशिकाओं से मेल खाता है तो आरोपों की पुष्टि होती है.
यह तकनीक शारीरिक संपर्क से प्राप्त सूक्ष्म साक्ष्यों का उपयोग करके संदिग्धों की पहचान करने और अपराध को साबित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इस मामले में फोरेंसिक मनोवैज्ञानिक ड्रोन, अपराध स्थल प्रोफाइलिंग और फोरेंसिक स्टेटमेंट एनालिसिस किया गया है. इसके तहत यह घटना कैसे हुई, वीडियो और सभी गवाहों के बयानों का अध्ययन कर अपराध कैसे किया गया, इसकी मनोवैज्ञानिक राय ली गई है.
इसके अलावा फॉरेंसिक केमिस्ट्रीः बच्ची को जहर दिया गया था या नहीं, इसका भी परीक्षण किया गया है.
फोरेंसिक वाहन विश्लेषण: सबूत मिटाने के लिए कार को धोया गया है, सबूत मिटाने की कोशिश की गई, लेकिन सफल नहीं हुए, यह इस परीक्षण से साबित हो गया है.
फोरेंसिक टॉक्सिकोलॉजी, फोरेंसिक वॉयस स्पेक्ट्रोग्राफी: यह फोन पर रिकॉर्ड किया गया है कि आरोपी ने दूसरे गवाह को धमकी दी थी, इसका परीक्षण किया गया है, इसलिए आरोपी ने अपराध किया है, इसका सबूत भी मिला है.
गौरतलब है कि जब ऐसी घटनाओं में कोई व्यक्ति या गवाह नहीं मिलता तो ऐसे वैज्ञानिक साक्ष्य घटना को साबित करने के लिए अहम साबित होते हैं.
इस केस में अपराधी ने अपनी कार में अपराध किया था, इसकी वजह से सीधे साक्ष्य नहीं हैं. पुलिस के सामने बड़ी चुनौती थी. इसलिए फॉरेंसिक टेस्टिंग का यह तरीका अपनाया गया है.