गुजरात विधानसभा चुनाव करीब हैं. राज्य में राजनीतिक दलों ने अपना चुनावी बिगुल फूंक दिया है. पिछले दो दशक में राज्य में पहली बार ऐसे राजनीतिक हालात बने हैं, जिनके जरिए कांग्रेस के लिए अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने का मौका है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी अपने आपको साबित करने का ये सबसे बेहतरीन अवसर है. यही वजह है कि राजनीतिक जानकार गुजरात में राहुल के लिए अभी नहीं तो फिर कभी नहीं जैसी स्थित मान रहे हैं.
दरअसल गुजरात में पिछले तीन चुनावों की बात करें तो तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को एकतरफा जीत मिली और विपक्षी कांग्रेस को उसके मुकाबले तकरीबन आधी सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. लेकिन इस बार सत्तारूढ़ पार्टी के लिए राह पहले की तरह आसान नहीं है. इसकी कई वजह हैं, और कांग्रेस इन्हें कैश कराने के मूड में है.
मोदी CM का चेहरा नहीं
पंद्रह साल बाद सूबे में बीजेपी सीएम का चेहरा नरेंद्र मोदी नहीं होंगे. मोदी-शाह के दिल्ली में आ जाने से राज्य में बीजेपी के पास ऐसा कोई करिश्माई चेहरा नहीं बचा है जो पार्टी और सरकार को उस रुतबे के साथ आगे ले जा सके. उनकी जगह विजय रुपाणी या फिर कोई दूसरे चेहरे को बीजेपी उतार सकती है. ऐसे में कांग्रेस के पास एक बड़ा मौका होगा.
पाटीदारों के उग्र तेवर
आरक्षण की मांग को लेकर हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पटेल समाज के लाखों लोग आंदोलन कर चुके हैं. आंदोलन ने बीजेपी सरकार और राज्य के पटेलों को आमने-सामने ला खड़ा कर दिया था. राज्य में पटेलों की आबादी तकरीबन 20 फीसदी है. इतने बड़े वर्ग की नाराजगी बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बन सकती है.
दलित भी नाराज
गुजरात में लगातार दलित उत्पीड़न के मामले सामने आ रहे हैं. ऊना कांड से नाराज दलित समाज आंदोलन के लिए सड़क पर उतर आया था. राज्य के दलितों ने मरी हुई गाय उठाने से मना कर दिया था. दलितों की ये नाराजगी भी बीजेपी के लिए भारी पड़ सकती है.
तीन साल में तीन सीएम
पिछले तीन सालों में गुजरात में विजय रुपाणी तीसरे सीएम हैं. नरेंद्र मोदी के 2014 में पीएम बनने के बाद उन्होंने अपनी जगह आनंदी बेन पटेल को गुजरात सीएम की कुर्सी सौंपी थी, लेकिन इस कुर्सी पर ज्यादा दिन वह नहीं रह सकीं. सूबे के बिगड़ते हालात के लिए आनंदी बेन की जगह विजय रुपाणी को सीएम बनाया गया है. सीएम के बदलाना बीजेपी का बैकफुट कदम माना जा रहा है.
दो दशकों का एंटी इंकबैंसी
गुजरात में दो दशक से ज्यादा समय से कांग्रेस सत्ता से बाहर है. राज्य में करीब 18 साल से बीजेपी का राज है. इतने लंबे समय से राज करने की वजह से बीजेपी के प्रति लोगों में नाराजगी बढ़ी. एंटी इंकबैंसी का माहौल बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है.
बीजेपी में बेचैनी
प्रदेश की राजनीतिक हालात को बीजेपी बाखूबी समझ रही है. इसीलिए पीएम मोदी लगातार अपने गृह राज्य गुजरात का दौरा कर रहे हैं. पिछले 12 महीने में उन्होंने 12 बार राज्य का दौरा किया है. पार्टी नरेंद्र मोदी के बार-बार राज्य में दौरे करवाकर माहौल को अभी से अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है. इसके अलावा अमित शाह भी पूरी तरह सक्रिय हैं. शाह 10 सितंबर से राज्य में चुनावी आगाज कर रहे हैं.
पटेल, दलित और अल्पसंख्यक एकजुट
राज्य की मौजूदा सरकार के खिलाफ पटेल, दलित और अल्पसंख्यक एकजुट हो सकते हैं. ये तीनों एक साथ आते हैं तो बीजेपी के लिए जीतना टेढ़ी खीर होगा. मौजूदा समय में तीनों बीजेपी से नाराज हैं. ऐसे में पटेलों, दलितों, अल्पसंख्यकों का साथ पंजे को मिलने की उम्मीद है.
पटेल की जीत कांग्रेस को मिली संजीवनी
गुजरात राज्यसभा चुनाव में कांग्रेसी नेता अहमद पटेल की जीत से पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है. दरअसल कांग्रेस को घेरने के लिए बीजेपी ने सूबे की तीन राज्यसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे.कई कांग्रेसी विधायकों ने बीजेपी का दामन थामा तो कई ने क्रास वोटिंग की. इसके बावजूद अहमद पटेल राज्यसभा का चुनाव जीतने में सफल रहे हैं.
क्षत्रपों की एकजुटता
गुजरात में बीजेपी के खिलाफ क्षेत्रीय पार्टियां एकजुट हो सकती हैं. जबकि ये छोटी पार्टियां अभी तक कांग्रेस के लिए वोट कटुआ साबित होती रही हैं, लेकिन इस बार उसके साथ मैदान में उतरने का मन बना रही हैं. कांग्रेस के नेतृत्व में क्षत्रपों की एकजुटता से राज्य में बीजेपी के समीकरण बिगड़ने का खतरा है.
बाढ़ बनी मुसीबत
गुजरात में पिछले दिनों आई बाढ़ ने काफी जानमाल का नुकसान किया है. इस बाढ़ की वजह से सैकड़ों लोगों की मौत और हजारों जानवर मरे थे. राज्य के लोगों का मानना है कि बाढ़ से निपटने में बीजेपी सरकार फेल रही है. स्वाइन फ्लू से होने वाली मौतों को रोकने में भी रुपाणी सरकार विफल साबित हुई.
किसान भी उग्र हुए
गुजरात के किसानों में नाराजगी बढ़ी है. पिछले दिनों गुजरात के कई जगहों पर किसानों ने फसल का उचित मूल्य न मिलने और सिंचाई के लिए पानी न मिलने पर राज्य सरकार के खिलाफ गुस्से का इजहार किया था.