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...तो गुजरात में इस वजह से टूटा था मोरबी पुल, SIT की रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे

मोरबी का 765 फीट लंबा और 4 फुट चौड़ा पुल 143 साल पुराना था. इस पुल का उद्घाटन 1879 में किया गया था. इस केबल ब्रिज को 1922 तक मोरबी में शासन करने वाले राजा वाघजी रावजी ने बनवाया था. वाघजी ठाकोर ने पुल बनाने का फैसला इसलिए लिया था, ताकि दरबारगढ़ पैलेस को नजरबाग पैलेस से जोड़ा जा सके.

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पिछले साल अक्टूबर में मोरबी पुल हादसा हुआ था (File Photo)
पिछले साल अक्टूबर में मोरबी पुल हादसा हुआ था (File Photo)

गुजरात के मोरबी में हुए ब्रिज हादसा मामले में सरकार द्वारा नियुक्त SIT ने अपनी रिपोर्ट में कई खुलासे किए हैं. जांच टीम ने अपनी प्रारंभिक जांच में पाया है कि केबल पर लगभग आधे तारों पर जंग लगना और पुराने सस्पेंडर्स को नए से जोड़ना जैसी कुछ प्रमुख खामियां थीं, जिसके कारण पिछले साल मोरबी में पुल गिर गया था, जिसमें 135 लोग मारे गए थे. दरअसल, दिसंबर 2022 में पांच सदस्यीय एसआईटी टीम द्वारा मोरबी ब्रिज हादसा पर प्रारंभिक रिपोर्ट जमा की गई थी. रिपोर्ट को हाल ही में राज्य शहरी विकास विभाग द्वारा मोरबी नगर पालिका के साथ साझा किया गया है.

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बता दें कि अजंता मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड (ओरेवा ग्रुप) को मच्छू नदी पर ब्रिटिश काल के सस्पेंशन ब्रिज के संचालन और रखरखाव के लिए ठेका मिला था. ये पुल पिछले साल 30 अक्टूबर को गिर गया था. एसआईटी ने पुल की मरम्मत, रखरखाव और संचालन में कई खामियां पाई थीं. इस एसआईटी टीम में आईएएस अधिकारी राजकुमार बेनीवाल, आईपीएस अधिकारी सुभाष त्रिवेदी, राज्य सड़क और भवन विभाग के एक सचिव और एक मुख्य अभियंता और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के एक प्रोफेसर शामिल थे.

न्यूज एजेंसी के मुताबित एसआईटी ने पाया कि मच्छू नदी पर 1887 में तत्कालीन शासकों द्वारा बनाए गए पुल के दो मुख्य केबलों में से एक केबल में जंग लगा चुका था और इसके लगभग आधे तार 30 अक्टूबर की शाम को टूटे गए होंगे, जिससे ये हादसा हुआ. एसआईटी के अनुसार, नदी के ऊपर की तरफ की मुख्य केबल टूट गई, जिससे यह हादसा हुआ. हर केबल सात तारों से बनी थी, प्रत्येक में सात स्टील के तार थे. एसआईटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस केबल को बनाने के लिए कुल 49 तारों को सात जगह एक साथ जोड़ा गया था.

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22 तारों में लग चुका था जंग

एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "यह देखा गया कि (उस केबल के) 49 तारों में से 22 में जंग लगा हुआ था, जो इंगित करता है कि वे तार घटना से पहले ही टूट गए होंगे. शेष 27 तार हाल हादसे में टूट गए होंगे."

एसआईटी ने यह भी पाया कि नवीनीकरण कार्य के दौरान, "पुराने सस्पेंडर्स (स्टील की छड़ें जो केबल को प्लेटफॉर्म डेक से जोड़ती हैं) को नए सस्पेंडर्स के साथ वेल्ड किया गया था. इसलिए सस्पेंडर्स का फॉर्म बदल गया. इस प्रकार के पुलों में भार उठाने के लिए सिंगल रॉड सस्पेंडर्स होने चाहिए."

ओरेवा ग्रुप को बिना मंजूरी मिला था ठेका

गौरतलब है कि मोरबी नगर पालिका ने सामान्य बोर्ड की मंजूरी के बिना ओरेवा ग्रुप (अजंता मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड) को पुल के रखरखाव और संचालन का ठेका दिया था, जिसने मार्च 2022 में पुल को नवीनीकरण के लिए बंद कर दिया था और 26 अक्टूबर को बिना अनुमति के इसे खोल दिया था. 

एसआईटी के अनुसार, पुल गिरने के समय इसपर लगभग 300 लोग मौजूद थे, जो पुल की भार वहन क्षमता से "कहीं अधिक" था. हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि पुल की वास्तविक क्षमता की पुष्टि प्रयोगशाला रिपोर्ट से होगी. जांच रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अलग-अलग लकड़ी के तख्तों को एल्यूमीनियम डेक के साथ बदलने से भी पुल गिरा है.

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143 साल पुराना था मोरबी का ब्रिज 

मोरबी का 765 फीट लंबा और 4 फुट चौड़ा पुल 143 साल पुराना था. इस पुल का उद्घाटन 1879 में किया गया था. इस केबल ब्रिज को 1922 तक मोरबी में शासन करने वाले राजा वाघजी रावजी ने बनवाया था. वाघजी ठाकोर ने पुल बनाने का फैसला इसलिए लिया था, ताकि दरबारगढ़ पैलेस को नजरबाग पैलेस से जोड़ा जा सके.

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