गुजरात हाईकोर्ट ने आज फिर एक बार वडोदरा बोट दुर्घटना मामले में वडोदरा नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारियों को फटकार लगाई. साथ ही गुजरात सरकार को मामले की विभागीय जांच के आदेश दिए हैं. यहां की हरणी झील में जनवरी में नाव पलटने के बाद 14 लोगों की मौत हो गई थी, जिसमें 2 टीचर्स और 12 बच्चे शामिल थे. नाव पर निजी स्कूल के 27 छात्र सवार थे और उन्हें बिना लाइफ जैकेट पहने ही नाव में बिठाया गया था.
नगर निगम के तत्कालीन म्युनिसिपल कमिश्नर ने जिस तरीके से मेसर्स कोटिया को कॉन्ट्रैक्ट आवंटित किया था, उस पर कड़ा रुख अपनाते हुए हाईकोर्ट ने गुजरात सरकार को विभागीय जांच के आदेश दिए हैं. साथ ही कोर्ट ने कहा है कि यह जांच 2 महीने में पूरी की जाए. नगर निगम के म्युनिसिपल कमिश्नर की ओर से आज एक हलफनामा दाखिल किया गया.
इसमें किस तरह से यह कॉन्ट्रैक्ट आवंटित हुआ था, उसके बारे में पूरी जानकारी दी गई. इसमें बताया गया कि सितंबर 2015 में नगर निगम को दो बिड मिली थी और दोनों को रिजेक्ट कर दिया गया था. इसके बाद उसी में से एक मेसर्स कोटिया को सिर्फ दो महीने के भीतर लेक डेवलपमेंट का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था.
कोर्ट ने पूछा- किस नियम के तहत दिया कॉन्ट्रेक्ट
इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने पूछा कि किस नियम के तहत यह कॉन्ट्रैक्ट दिया गया? कॉन्ट्रैक्ट देने के लिए नगर निगम की स्टैंडिंग कमेटी की मंजूरी भी नहीं ली गई. यह साफ दर्शाता है कि कॉन्ट्रैक्ट देने में गड़बड़ी हुई है और नियमों का पालन नहीं हुआ है. इसीलिए इस मामले की जांच होनी जरूरी है. मेसर्स कोटिया को जिस स्थिति में कॉन्ट्रैक्ट दिया गया, वह संदिग्ध होने की वजह से कोर्ट ने राज्य सरकार को विभागीय जांच के आदेश दिए हैं.
प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनाएंगे जांच के लिए कमेटी
राज्य सरकार के शहरी विकास विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी को जांच के लिए समिति गठित करने के आदेश दिए गए हैं. कोर्ट ने कहा कि यह समिति आज से 2 महीने के भीतर अपनी विभागीय जांच की रिपोर्ट हाई कोर्ट को सबमिट करेगी. इस रिपोर्ट में बताना होगा कि यह कॉन्ट्रैक्ट कैसे दिया गया और किस वजह से दिया गया. इसके लिए जिम्मेदार तत्कालीन म्युनिसिपल कमिश्नर और दूसरे अधिकारियों की भूमिका की जांच होगी.
कोर्ट ने यह भी कहा कि जिस तरह से यह कॉन्ट्रैक्ट दिया गया, वह साफ तौर पर नियमों का उल्लंघन है. इसके लिए जिम्मेदार सभी को तत्काल प्रभाव से निष्कासित कर देना चाहिए. हालांकि, बाद में तत्कालीन म्युनिसिपल कमिश्नर की भूमिका को देखते हुए हाईकोर्ट ने विभागीय जांच के आदेश दिए हैं.
इस तरह से नगर निगम की म्युनिसिपल कमिश्नर की ओर से हलफनामा दिया गया. उस पर भी हाईकोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि लुकाछिपी का खेल बंद होना चाहिए. सरकार के जिम्मेदार अधिकारी होने के नाते कोर्ट में दिए गए हलफनामे में सभी सही बातों को रखना चाहिए न कि उसे घुमाकर लिखना चाहिए.