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हरियाणा में कांग्रेस के 'फ्लॉप शो' की हैट्रिक! वोटर्स की नब्ज पकड़ने में कैसे चूक गई पार्टी?

हरियाणा में कांग्रेस की हार के एक नहीं, बल्कि कई फैक्टर हैं. हुड्डा परिवार पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता से लेकर दलित चेहरा कुमारी सैलजा को तवज्जो ना मिलना कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण माना जा रहा है. इस आर्टिकल में जानिये कि कांग्रेस की इस हालत के पीछे क्या वजह हैं.

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Selja Kumari/Bhupinder Singh Hooda (File Photo)
Selja Kumari/Bhupinder Singh Hooda (File Photo)

हरियाणा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. यहां BJP ने बहुमत का जादुई आंकड़ा पार कर लिया है. बीजेपी हरियाणा में जीत की हैट्रिक बनाने में कामयाब हो गई है. कांग्रेस के लिये यह बड़ा झटका इसलिये भी है, क्योंकि नतीजों से पहले तमाम एक्सपर्ट हरियाणा में कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी करते रहेस, लेकिन आखिर में उसे हार का मुंह देखना पड़ा.

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ब्रांड हुड्डा को जरूरत से ज्यादा प्रचारित करना

हरियाणा में कांग्रेस हुड्डा फैक्टर के साथ आगे बढ़ी. ऐसा लग रहा था कि सब कुछ पिता भूपेंद्र और बेटे दीपेंद्र हुड्डा की जोड़ी ही कर रही है. सीट बंटवारे की बात करें तो हुड्डा परिवार 90 में से करीब 72 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने में कामयाब रहा. कुमारी सैलजा के हिस्से में सिर्फ 9 और रणदीप सुरजेवाला के हिस्से में दो सीटें ही आईं. यह एकतरफा था. 

संदेश गया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो राज्य में हुड्डा राज की वापसी होगी और इस तरह जाट सीएम की अनिवार्यता दिखाई देगी. बीजेपी ने भी पिता और बेटे की जोड़ी को निशाना बनाया. माना जा रहा है कि ऐसे राज्य में जहां जाट फैक्टर को जरूरत से ज्यादा बढ़ावा देना कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हुआ है, वहां पार्टी को जाट बनाम गैर-जाट की बहस को तूल पकड़ने न देने के प्रति ज्यादा सतर्क रहना चाहिए था.

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हरियाणा कांग्रेस की स्टेट यूनिट गुटबाजी से ग्रस्त थी. विस्तारित कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक में भी कुमारी सैलजा और प्रदेश अध्यक्ष उदयभान के बीच वाकयुद्ध छिड़ गया, जिसमें कुमारी सैलजा ने कार्यक्रमों से बाहर रखे जाने और राज्य प्रभारी दीपक बाबरिया पर हुड्डा खेमे का पक्ष लेने की शिकायत की.

इस पर राहुल गांधी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि यह सही मंच नहीं है और उन्हें राज्य के मुद्दों को बाहर सुलझाना चाहिए. यह खींचतान तब और बढ़ गई जब केसी वेणुगोपाल (संगठन प्रभारी महासचिव) कोई ध्यान देने के मूड में नहीं थे और उन्होंने दोनों को आपस में ही इसे सुलझाने के लिए कहा.

इसलिए हुड्डा खेमे बनाम रणदीप और सैलजा के बीच खुलेआम लड़ाई से विभाजन और बढ़ गया. दोनों ने अपनी-अपनी चुनावी यात्राएं और प्रेस कॉन्फ्रेंस कीं, लेकिन कभी भी कांग्रेस के नेताओं को एक मंच पर एकजुट होकर एकता का संदेश देते नहीं देखा गया.

दलित विरोध की बन गई हवा

चुनाव में निर्णायक पार्टी की वरिष्ठ और दलित नेता कुमारी सैलजा के खिलाफ दलित विरोधी टिप्पणी को माना जा रहा है, जिसने कांग्रेस के खिलाफ जातिगत गोलबंदी को हवा दी. सैलजा को बुरा-भला कहने वाले एक कांग्रेस समर्थक का वीडियो वायरल हो गया और BJP नेताओं ने सदियों पुरानी पार्टी में एक दलित नेता के अपमान को उजागर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

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यह सब तब हुआ, जब कांग्रेस को उम्मीद थी कि लोकसभा में दलितों के पार्टी में वापस आने से विधानसभा में उसकी संभावनाएं बढ़ेंगी, लेकिन उसने विवाद को जड़ से खत्म करने के लिए कुछ नहीं किया. कुमारी सैलजा ने करीब 12 दिनों तक घर पर बैठना पसंद किया, कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं ने उनके आलोचकों से कुछ कहना तो दूर सैलजा से संपर्क तक नहीं किया.

इससे दलित समुदाय में यह चिंता और बढ़ गई कि कांग्रेस अपने जाट नेताओं के आगे झुक गई है, जिनके समर्थक दलितों का अपमान कर रहे हैं और न तो राहुल गांधी और न ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (जो उसी समुदाय से आते हैं) इस बारे में कुछ कर रहे हैं.

जब तक भूपेंद्र हुड्डा और कुमारी सैलजा को असंध में एक मंच पर लाया गया और राहुल गांधी ने नुकसान को कंट्रोल करने के लिए हाथ मिलाया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. दलित समुदाय को यह संदेश नहीं मिला कि उनके पास बसपा और आजाद समाज पार्टी के गठबंधन के अलावा अन्य विकल्प भी हैं.

दलित नेता अशोक तंवर की देर से घर वापसी ने दलित समुदाय के बीच की भावनाओं को कम करने में कोई मदद नहीं की, जो पहले ही अपना मन बना चुके थे. लगभग सभी दलों में रह चुके अशोक तंवर को पार्टी में अंतिम समय शामिल करने को सैलजा का कद घटाने के तौर पर देखा गया. हरियाणा के लोगों ने इस संदेश को समझ लिया. एक ग्रामीण ने हरियाणवी में उनके शामिल होने पर चुटकी ली और कहा ‘घर का जोगी जोग ना, बाहर का जोगी जोग’ (आपके घर का संत संत नहीं है, बल्कि दूसरे घर का संत है जिसे आप संत मानते हैं).

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