किसान आंदोलन के बहाने कांग्रेस ने हरियाणा की बीजेपी-जेजेपी गठबंधन वाली खट्टर सरकार को घेरने के लिए अविश्वास प्रस्ताव का दांव खेला है, जिस पर बुधवार को चर्चा होगी. कांग्रेस द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव से पार पाने के लिए बीजेपी और जेजेपी दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने विधायकों के लिए व्हिप जारी कर रखा है जबकि किसान संगठनों ने तभी विधायकों से अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करने की अपील कर रखी है. ऐसे में 55 विधायकों के समर्थन से चल रही खट्टर सरकार को उम्मीद है कि कांग्रेस को सफल नहीं होने देगी?
पुरानी रही है अविश्वास प्रस्ताव की परंपराहरियाणा की सियासत में पहली बार अविश्वास प्रस्ताव नहीं लगाया है बल्कि समय-समय पर विभिन्न सरकारों के खिलाफ विपक्षी दलों के द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाकर घेरा जाता रहा है. हालांकि, हरियाणा में अभी तक जिन भी सरकारों के विरुद्ध विपक्ष के द्वारा जितने भी अविश्वास प्रस्ताव लाए गए, वे सिरे नहीं चढ़े और विधानसभा के पटल पर औंधे मुंह गिर गए. ऐसे में देखना है अब कांग्रेस विधायकों के द्वारा लाए अविश्वास प्रस्ताव से खट्टर सरकार कैसे निपटती है.
दरअसल, हरियाणा में सरकारों के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की परंपरा पुरानी रही है. विधानसभा संचालन की नियमावली 65 के तहत 18 विधायक हस्ताक्षर कर सरकार की किसी नीति, फैसले अथवा सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित हो रहे संख्या बल के आधार पर सदन में अविश्वास प्रस्ताव दे सकते हैं. इसी आधार पर कई बार अविश्वास प्रस्ताव लाए जाते रहे हैं और सत्ता पक्ष हमेशा ही इससे पार पाने में कामयाब रहा है.
भजनलाल के खिलाफ ओम प्रकाश चौटाला का प्रस्ताव
हरियाणा में पिछले तीन दशक की विधानसभा कार्यवाही पर नजर दौड़ाई जाए तो सितंबर 1995 में तत्कालीन भजनलाल सरकार के विरूद्ध ओम प्रकाश चौटाला अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे. उस समय ईश्वर सिंह हरियाणा विधानसभा के स्पीकर होते थे. विधानसभा अध्यक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था, जिसके बाद सदन में वोटिंग के दौरान चौटाला द्वारा लाया गया यह प्रस्ताव गिर गया था, क्योंकि उस समय भजनलाल सरकार के पास पूर्ण बहुमत था.
हरियाणा में साल 1999 के दौरान तत्कालीन बंसीलाल सरकार के विरूद्ध विपक्ष के नेता ओम प्रकाश चौटाला सदन में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए आए थे. चौधरी बीरेंद्र सिंह उस समय तिवारी कांग्रेस में होते थे, उन्होंने बंसीलाल को समर्थन देकर सरकार को बचा लिया था.
बंशीलाल के खिलाफ फिर प्रस्ताव लाए थे चौटाला
इसके बाद बंसीलाल सरकार के विरूद्ध फिर से ओम प्रकाश चौटाला अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए. उस समय बंसीलाल को इस बात का आभास हो गया था कि सदन में वह विश्वास का मत हासिल नहीं कर सकते हैं. यही वजह रही कि उन्होंने विधानसभा के बाहर ही इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव का सामना ही नहीं किया था. अब 10 मार्च को आने वाले अविश्वास प्रस्ताव पर सबकी निगाह टिकी है.
क्या है विधानसभा की स्थिति
दरअसल, हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा में फिलहाल 88 विधायक हैं. ऐलनाबाद से इनेलो के विधायक अभय सिंह चौटाला तीन कृषि कानूनों के विरोध में इस्तीफा दे चुके हैं, जबकि कालका के कांग्रेस विधायक प्रदीप चौधरी को एक केस में सजा होने पर विधानसभा की सदस्यता से निलंबित कर दिया गया है. इस तरह से अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होती है तो खट्टर सरकार को इससे पार पाने के लिए 45 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी. बीजेपी के 40, जेजेपी के 10 और 5 निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल है, लेकिन जेजेपी के कुछ विधायक किसान आंदोलन के चलते बागी रुख अपनाए हुए हैं. ऐसे में बीजेपी और जेजेपी दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने विधायकों के लिए व्हिप जारी कर दिया है.
कांग्रेस की ओर से स्पीकर को जो अविश्वास पत्र सौंपा गया है, उसमें पार्टी के 30 में से 28 विधायकों के हस्ताक्षर हैं. कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा की रणनीति सरकार को अस्थिर करने या उसे गिराने से ज्यादा जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला और उन विधायकों को बेनकाब करने की है, जो किसानों के तीन कृषि कानूनों का विरोध तो कर रहे, लेकिन सदन में कृषि कानून के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में उनके साथ नहीं हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का मानना है कि यदि अविश्वास प्रस्ताव को सिर्फ 32 ही विधायकों का समर्थन मिला तो यह साफ हो जाएगा कि बाकी जितने भी निर्दलीय, जेजेपी और भाजपा के विधायक तीन कृषि कानूनों का किसानों के बीच में जाकर विरोध कर रहे हैं, वह दिल से किसानों के साथ नहीं हैं. इस तरह से किसान के मुद्दे पर कांग्रेस और बीजेपी-जेजेपी की बीच शह-मात का खेल चल रहा है. देखना है कि इसमें कौन बाजी मारता है.