विधानसभा चुनाव से ऐन पहले हरियाणा कांग्रेस में बड़े बदलाव के किए गए है. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कांग्रेस छोड़ने की धमकी काम आई. कांग्रेस हाईकमान ने अशोक तंवर से हाथों से प्रदेश अध्यक्ष की कमान लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को सौंपी है. कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने हुड्डा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में चुनाव अभियान कमेटी का चेयरमैन और कांग्रेस विधायक दल के अध्यक्ष बनाने का फैसला किया है. इससे साफ जाहिर है कि कांग्रेस ने भूपेंद्र हुड्डा के चेहरे के सहारे चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है.
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच लगातार टकराव जारी था और जिसका खामियाजा लोकसभा चुनावों में भी पार्टी के सफाए के रूप में सामने आया. इसके बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा लगातार हरियाणा में कांग्रेस अध्यक्ष को बदलने का दबाव बना रहे थे और इधर कुछ महीनों से उनके तेवरों से लग रहा था कि अगर हाईकमान ने नहीं सुनी तो वह अपना रास्ता अलग भी कर सकते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि अशोक तंवर प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पूरी तरह से फेल रहे हैं. उनके नेतृत्व में कांग्रेस एक भी चुनाव नहीं जीत सकी. इतना ही नहीं तंवर अपने दलित समुदाय को भी कांग्रेस के साथ जोड़कर रख पाने में असफल रहे है. जबकि हरियाणा की सियासत में कांग्रेस के पास भूपेंद्र सिंह हुड्डा से बड़ा कोई चेहरा नहीं है. इसी मद्देनजर हुड्डा को विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल का नेता और राज्य चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाकर हरियाणा के जाटों को साधने की भी कोशिश की है.
अशोक तंवर को हरियाणा में कांग्रेस की कमान 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले फरवरी में सौंपी गई थी, उस समय हरियाणा की सत्ता में कांग्रेस काबिज थी. तंवर के नेतृत्व में 2014 और 2019 दो लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव हुए, लेकिन एक भी चुनाव वह कांग्रेस को नहीं जिता सके. 2014 के बाद से लगातार हरियाणा में कांग्रेस के ग्राफ में गिरावट आई है. इसका नतीजा रहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रदेश में खाता भी नहीं खोल सकी.
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने न सिर्फ हुड्डा को मना लिया बल्कि हरियाणा प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन करके कुमारी शैलजा को कमान सौंप कर कांग्रेस के परंपरागत दलित जनाधार को भी अपने साथ जोड़े रखने का दांव चला है. सिंह कहते हैं कि हुड्डा जमीनी और जनाधार वाले नेता होने के साथ-साथ उनके पास सारे संसाधन हैं. कांग्रेस के बड़े नेताओं से भी हुड्डा के बेहतर संबंध हैं, जिसके चलते वह सोनिया से अपनी बात मनवाने में कामयाब रहे हैं.
अरविंद सिंह कहते हैं कि राहुल गांधी के चलते अशोक तंवर पिछले छह सालों से हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष बने रहे, लेकिन इस दौरान न तो वह संगठन खड़ा कर सके और न ही अपनी जाति को पार्टी के पक्ष में एकजुट कर सके. यही बात उनके खिलाफ गई है. जबकि हुड्डा 18 अगस्त को रोहतक में रैली करके अपनी ताकत के कांग्रेस नेतृत्व को संदेश देने में सफल रहे. साथ ही हुड्डा को नाराज कर कांग्रेस जाट विरोधी होने का तमगा अपने नाम नहीं करना चाहती थी. यही बात हुड्डा को मजबूत करने काम किया है.
हरियाणा में हुड्डा और शैलजा के जरिए हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस जाटों और दलितों का मजबूत गठबंधन बनाने की कोशिश करेगी. चौटाला परिवार की आपसी लड़ाई की वजह से हरियाणा के 30 फीसदी जाटों की पहली पसंद अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा बन सकते हैं. साथ ही प्रदेश की करीब 20 फीसदी दलित आबादी में कुमारी शैलजा और उनके पिता की लोकप्रियता कांग्रेस के परंपरागत दलित जनाधार को एकजुट कर सकती है. इसी राजनीतिक समीकरण को देखते हुए सोनिया गांधी को तंवर को हटाने और हुड्डा की शर्तों को मानने के लिए मजबूर होना पड़ा है.