हरियाणा के सरपंच ई-टेंडरिंग और राइट टू रिकॉल एक्ट का विरोध कर रहे हैं. इसे लेकर उनका दिल्ली के जंतर-मंतर पर आज का विरोध प्रदर्शन प्रस्तावित था, लेकिन बताया जा रहा है कि वह अब 10 अप्रैल को आंदोलन करेंगे, क्योंकि सरपंचों को 3 अप्रैल को दिल्ली में प्रदर्शन के लिए पुलिस की ओर से परमिशन नहीं मिली है.
हरियाणा सरपंच एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष रणबीर समैण ने कहा कि जब तक मांग पूरी नहीं होती, तब तक बार-बार आंदोलन किया जाएगा. सरपंच एसोसिएशन ने किया किया था कि सरकार के खिलाफ फिर से एक बड़ा आंदोलन किया जाएगा. पिछले महीने हरियाणा के सरपंचों की पंचकूला में DIG के साथ ई-टेंडरिंग विवाद पर बैठक हुई थी. लेकिन अभी तक कोई सहमति नहीं बन पाई है. समैण ने कहा कि राइट टू री कॉल और ई टेंडरिंग पर हमारी सहमति नहीं बनी है.
क्या है ई-टेंडरिंग?
पहले टेंडर लेने के लिए लिखित प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था, इसके चलते लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता था. बाद में ई- टेंडर की प्रक्रिया ऑनलाइन होने से सभी लोगों को एक-समान अवसर मिलेगा. साथ ही भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी. वहीं, हरियाणा पंचायती राज वित्त, बजट, लेखा, लेखापरीक्षा, कराधान और कार्य (संशोधन) नियम 2023 के मसौदे में कहा गया है कि 2 लाख रुपये से अधिक की लागत वाले कार्य ई-टेंडर के जरिए किए जा सकेंगे. इसके तहत ग्राम पंचायतों को ई-टेंडरिंग प्रक्रिया के बिना, कोटेशन के आधार पर केवल 2 लाख या उससे कम लागत के काम मिल सकेंगे. इसे 7 फरवरी को सुझावों और आपत्तियों के लिए सार्वजनिक डोमेन में रखा गया था.
क्या है राइट टू रिकॉल?
'राइट टू रिकॉल' को लेकर भी सरपंच विरोध में हैं. दरअसल इस एक्ट से ग्रामीणों को यह अधिकार मिल गया है कि अगर कोई सरपंच ठीक से काम नहीं कर रहा है, तो उसे कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटाया जा सकता है. सरपंच को हटाने के लिए गांव के 33 प्रतिशत मतदाता, 'अविश्वास' लिखित में शिकायत संबंधित अधिकारी को देंगे. यह प्रस्ताव खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी तथा सीईओ के पास जाएगा. इसके बाद ग्राम सभा की बैठक बुलाकर 2 घंटे के लिए चर्चा करवाई जाएगी. इस बैठक के तुरंत बाद गुप्त मतदान करवाया जाएगा और अगर 67 प्रतिशत ग्रामीणों ने सरपंच के खिलाफ मतदान किया तो सरपंच पदमुक्त हो जाएगा. सरपंच चुने जाने के एक साल बाद ही इस नियम के तहत अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकेगा. अगर अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सरपंच के विरोध में निर्धारित दो तिहाई मत नहीं डलते हैं, तो आने वाले एक साल तक दोबारा अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा. इस तरह 'राइट टू रिकॉल' एक साल में सिर्फ एक बार ही लाया जा सकेगा.
हरियाणा में सरपंच क्यों कर रहे हैं विरोध?
हरियाणा की मनोहरलाल सरकार ने पहले 2 लाख से ज्यादा के विकास कार्यों के लिए ई-टेंडरिंग की व्यवस्था को जरूरी कर दिया था. लेकिन सरपंचों के लगातार विरोध के बाद सीएम मनोहरलाल खट्टर ने काम की लिमिट 2 लाख से बढ़ाकर 5 लाख कर दी थी. इसका मतलब ये कि सरपंच अब बिना ई-टेंडरिंग के 5 लाख तक के काम करवा सकेंगे. जबकि इससे ज्यादा की राशि होने पर सभी विकास कार्य ई-टेंडरिंग के जरिए होंगे. इसी व्यवस्था का सरपंच विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इन विकास कार्यों की स्वीकृत कराने का अधिकार उन्हें मिलना चाहिए. सरपंचों का तर्क है कि इस एक फैसले की वजह से वे अधिकारियों के गुलाम बन जाएंगे. हर छोटे काम के लिए भी उनसे विनती करनी पड़ेगी.
क्या है सरपंचों का कहना?
हरियाणा सरपंच एसोसिएशन के अध्यक्ष रणबीर सिंह ने कहा था कि हम मुख्यमंत्री की संशोधित घोषणआओं से संतुष्ट नहीं हैं. यह हमें गुमराह करने की कोशिश है. 5 लाख से गांव की गली भी नहीं बनवा सकते. सरकार की मंशा ठेकेदारी प्रथा (अनुबंध व्यवस्था) को बढ़ावा देना है. हम विरोध करना जारी रखेंगे.
क्या हैं सरपंचों की मांगें?
संविधान के 73वें संशोधन के अनुसार पंचायतों को 29 अधिकार पूरी तरह से दिए जाएं. राइट टू रिकॉल एक्ट पहले सांसदों और विधायकों के लिए लागू हो. ई-टेंडरिंग का विरोध नहीं लेकिन राशि 20 से 50 लाख रुपये हो, भुगतान सरपंच के माध्यम से हो. मनरेगा की मजदूरी 600 रुपये प्रतिदिन हो और ऑनलाइन हाजिरी बंद की जाए. पंचायत विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों की एसीआर का अधिकार सरपंच दो दिया जाए. विकास कार्यों में सरपंचों से गुणवत्ता प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य हो, गड़बड़ी पर अधिकारियों पर कार्रवाई हो.
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