हरियाणा में सरकार की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी में फर्जीवाड़े के कई मामले सामने आए हैं. एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जिन लोगों की मौत बरसों पहले हो चुकी है, उनके नाम पर भी किसी और को सब्सिडी का लाभ दे दिया गया.
यह रिपोर्ट इ इंडियन एक्सप्रेस ने छापी है. प्रदेश के धाना गांवा के किसान हैट्टी व इब्राहिम की मौत 2001 में ही हो चुकी है. इस गांव के किसान हरमत की मौत साल 2006 में हो चुकी है. इसके बावजूद हरियाणा के हॉर्टीकल्चर विभाग में इनकी ओर से सब्सिडी पाने के लिए न केवल अर्जी दी गई, बल्कि इन्हें सब्सिडी भी दे दी गई. सब्सिडी छोटे पैमाने पर सिंचाई के लिए राष्ट्रीय मिशन (NMMI) के तहत दी गई है.
इसी गांव के किसान व इब्राहिम के बेटे जावेद ने कहा कि जब वे 2013 में जिला बागवानी विभाग के दफ्तर में सब्सिडी के लिए आवेदन करने गए, तो उन्हें बताया गया कि उनके पिता के नाम पर साल 2011 में सब्सिडी दी जा चुकी है. जावेद ने बताया कि उनके पिता की मौत 2001 में 75 साल की उम्र में हो चुकी है. दूसरी ओर, विभाग का दावा है कि उनके पिता ने 1.48 लाख रुपये सब्सिडी के तौर पर पा चुके हैं.
विभाग के रिकॉर्ड के मुताबिक, हैट्टी ने भी साल 2011 में सब्सिडी के लिए दावा किया था, जबकि उनके भतीजे अली मोहम्मद का कहना है कि उनकी मौत बहुत पहले ही हो चुकी है. अली ने बताया कि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि चूंकि वे सब्सिडी पहले ही पा चुके हैं, इसलिए नियम के मुताबिक अगले 5 साल तक ऐसी सब्सिडी के लिए दावा नहीं कर सकते.
यह इलाका पुनहाना तहसील में आता है, जो कि दिल्ली के दक्षिण में करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है. इलाका हरियाणा के बेहद पिछड़े क्षेत्रों में गिना जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक, NMMI स्कीम के तहत 80 से ज्यादा ऐसे मामले सामने आए हैं, जब किसी मृतक के नाम पर सब्सिडी का वारा-न्यारा कर दिया गया. जिन नामों पर फर्जी तरीके से सब्सिडी दे दी गई, उसने पिछले 2 साल में कभी भी सब्सिडी के लिए आवेदन ही नहीं किया. ज्यादातर मामलों में इस तरह की सब्सिडी फर्जी वोटर कार्ड के जरिए दी गई, जिस पर पता उसका दर्ज था, जिसने नाम पर सब्सिडी ली गई.
NMMI स्कीम 2010 से पहले माइक्रो एरिगेशन स्कीम (MIS) के नाम से जानी जाती थी. इसका मकसद छोटे पैमाने पर सिंचाई की तकनीक को बढ़ावा देना था. मकसद यह भी था कि खेती में पानी का इस्तेमाल बेहतर तरीके से हो, खाद व बिजली की जरूरत कम से कम पड़े, साथ ही उपज में बढ़ोतरी हो. इस स्कीम में 40 फीसदी खर्च केंद्र सरकार, जबकि 10 फीसदी खर्च राज्य सरकार उठाती है. बाकी 50 फीसदी की रकम किसान को आसान दरों पर बतौर कर्ज दिया जाता है.