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ग्राम सभा की मिलीभगत से अरावली की सरकारी जमीन पर बिल्डरों का कब्जा!

एक तो हरियाणा सरकार खुद अरावली को 'गैर जंगल' की श्रेणी में डालने पर आतुर है. दूसरी तरफ राज्य की ग्राम सभाएं रियल एस्टेट वालों से मिलीभगत कर धीरे धीरे सरकारी जमीन पर कब्जा जमा रही हैं.

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अरावली के जंगल दिल्ली NCR के जलवायु में अहम भूमिका निभाते हैं
अरावली के जंगल दिल्ली NCR के जलवायु में अहम भूमिका निभाते हैं

एक तो हरियाणा सरकार खुद अरावली को 'गैर जंगल' की श्रेणी में डालने पर आतुर है. दूसरी तरफ राज्य की ग्राम सभाएं रियल एस्टेट वालों से मिलीभगत कर धीरे धीरे सरकारी जमीन पर कब्जा जमा रही हैं.

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अंग्रेजी अखबार 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' में छपी खबर के अनुसार अरावली के एक बड़े हिस्से पर ग्राम सभाओं और बिल्डरों का कब्जा है. पिछले 30-35 सालों में सरकारी जमीन पर निजी कंपनियों का कब्जा हो गया है.

दरअसल, इसमें ग्राम सभाओं का बड़ा योगदान है. 'पंजाब विलेज कॉमन लैंड्स एक्ट ऑफ 1961' की कमियों का फायदा उठाकर सभाओं ने जंगल के कई पहाडो़ं और झीलों पर कब्जा जमा लिया है.

एक रेवेन्यू अधिकारी ने बताया, 'रिहाइशी इलाकों को आसपास मौजूद अनउपजाऊ जमीन पंचायत के अंतर्रगत होती है. इस जमीन का आम कामों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. बाद में ग्राम सभाओं ने रिजॉल्यूशन पास कर इस प्रॉपर्टी को 'शामलत डेह' में तब्दील कर दिया.' उन्होंने कहा, 'जैसे ही जमीन 'शामलत डेह' की श्रेणी में आती है, गांववालों को यह अधिकार मिल जाता है कि वो ये जमीन किसी भी शख्स को बेच सकते हैं.'

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रिटायर्ड अधिकारी ने बताया, 'कॉनसोलिडेशन एक्ट का दुरुपयोग कर उन प्राइवेट जमीन को प्लॉट में बांट दिया जाता है और बिल्डर ये जमीन खरीद लेते हैं.' अब इन सबके बीच हरियाणा सरकार ने सोमवार को सर्कुलर जारी कर अरावली को 'गैर जंगल' श्रेणी में बता दिया. इसके बाद आशंका जताई जा रही है कि मांगर बानी समेत अरावली का बड़ा हिस्सा बिल्डरों को मिलने वाला है.

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