हरियाणा के रोहतक जिला के मदीना गांव से ताल्लुक रखने वाले डॉ शिवदर्शन मलिक पिछले 6 सालों से गोबर से इको फ्रेंडली सीमेंट, पेंट और ईटें बनाकर दर्जनों लोगों को प्रशिक्षित कर चुके हैं. डॉ शिवदर्शन मलिक ने रसायन विज्ञान में पीएचडी कर रखी है. डॉ मलिक ने गांव में देखा कि गोबर गैस प्लांट स्थापित होने के बाद भी बड़ी मात्रा में गोबर या तो व्यर्थ पड़ा रहता है या सिर्फ उपले बनाने के काम आता है.
गोबर से बन गया पेंट
दरअसल अब गांवों में गोबर गैस का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है और उपले कम मात्रा में जलाए जाते हैं. ऐसे में गोबर का इस्तेमाल पहले की तुलना में कम हो गया है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में प्रतिदिन 33 से 40 मिलियन टन गोबर पैदा होता है. डॉ शिवदर्शन मलिक ने जब गोबर पर रिसर्च की तो पता चला कि यह एक थर्मल इंसुलेटेड पदार्थ है जो सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडे घर बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है. भारत में सदियों से मिट्टी और गोबर का मिश्रण लिपाई पुताई में इस्तेमाल होता आया है.
रोहतक के एक कॉलेज में बतौर प्राध्यापक काम करने के कुछ महीनों बाद डॉ शिवदर्शन मलिक साल 2004 में आईआईटी दिल्ली और विश्व बैंक द्वारा प्रायोजित एक रिन्यूएबल एनर्जी परियोजना से जुड़े और 2005 में उन्होंने एक यूएनडीपी परियोजना में काम किया. इस बीच उनको अमेरिका और इंग्लैंड जाने का अवसर मिला जहां उन्होंने इको फ्रेंडली घर बनाने के तरीकों का अध्ययन किया.
गोबर से ईंट बनाने की एक इकाई स्थापित
भारत वापस आने पर उन्होंने गोबर पर गहन अध्ययन शुरू किया और साल 2015-16 में वैदिक प्लास्टर नाम से गोबर, जिप्सम, ग्वारगम, मिट्टी और नींबू के पाउडर से सीमेंट तैयार किया. उसके बाद राजस्थान के बीकानेर में गोबर से ईंट बनाने की एक इकाई स्थापित की जिसमें 15 लोग काम करते हैं. बीकानेर में ही गोबर से बनाए जाने वाली विभिन्न चीजों का तीन दिन का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. डॉ शिवदर्शन मलिक गोबर से तीन तरह की ईंट तैयार करते हैं. इन ईंटों को न तो भट्टे में पकाया जाता है और न ही इसमें पानी का इस्तेमाल होता है. सीमेंट और ईट बनाने के बाद डॉ मलिक ने साल 2019 में गोबर से पेंट बनाने में भी सफलता हासिल की.
100 से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षित किया
हालांकि डॉ मलिक अपना गोबर पेंट का फार्मूला साझा नहीं करना चाहते लेकिन वह गोबर में कुछ कुदरती रंग मिलाकर पेंट तैयार करते हैं. डॉ मलिक के मुताबिक गोबर के सीमेंट और ईंट से तैयार किए गए घर कुदरती तौर पर वातानुकूलित होते हैं और इनमें बिजली का बहुत कम इस्तेमाल होता है.
डॉ मलिक अब तक उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड आदि राज्यों के 100 से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षित कर चुके हैं. ये प्रशिक्षित लोग अब देश के कई हिस्सों में गोबर से ईटें और सीमेंट बनाकर आजीविका चला रहे हैं. डॉ मलिक के दावे के मुताबिक एक बार उन्हें दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से मिलने का मौका मिला था तो उन्होंने इस तकनीक की तारीफ करने के साथ उनका खूब हौसला बढ़ाया था. डॉ मलिक को हरियाणा कृषि रत्न सम्मान से नवाजा जा चुका है.