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क्या ट्यूबवेल के पानी से बहेगी नदी, हरियाणा में सरस्वती नदी को 'जिंदा' कर रही सरकार

मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि सरस्वती नदी प्रोजेक्ट हरियाणा और देश के लोगों की आस्था से जुड़ा है. हमनें कभी ये दावा नहीं किया कि हम सरस्वती नदी को फिर से वही रुप दे सकते हैं. जैसा कि पौराणिक मान्यताओं में बताया गया है, वो तो कोई भी नहीं दे सकता.

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हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर

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हरियाणा सरकार सरस्वती नदी में पानी छोड़ने और सरस्वती नदी के स्वरुप को फिर से जिंदा करने की कोशिश में लगी है. सरकार अपने इस प्रयास को फाइनल दौर में होने की बात कह रही है तो वहीं हरियाणा सरकार के इन दावों पर सवाल भी उठ रहे हैं. सरकार को इस मसले पर राजनीतिक हमले भी झेलने पड़ रहे हैं. इन सब बातों का जवाब देने के लिए खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर मैदान में उतरें.

सरस्वती नदी में नहरों से छोड़ना होगा पानी
मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि सरस्वती नदी प्रोजेक्ट हरियाणा और देश के लोगों की आस्था से जुड़ा है. हमनें कभी ये दावा नहीं किया कि हम सरस्वती नदी को फिर से वही रुप दे सकते हैं. जैसा कि पौराणिक मान्यताओं में बताया गया है, वो तो कोई भी नहीं दे सकता. सरस्वती नदी तो पहाड़ों से निकलती थी और हमनें नासा के जरिए मिली तस्वीरों और हरियाणा सरकार के पौराणिक मुगल काल के रेवेन्यू रिकॉर्ड के आधार पर इस मान्यता को एक रुप देने की कोशिश की है. पानी तो सरस्वती में कुछ फीडर नहरों और नालों में से लेकर ही छोड़ना होगा. चाहे हमें यमुना नदी से पानी लेकर छोड़ना पड़े.

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इस प्रोजेक्ट के लिए 5 करोड़ का बजट
सीएम खट्टर ने कहा- हमारी कोशिश है कि सरस्वती नदी जिस रूट पर पौराणिक वक्त में बहती थी वहां इसकी शुरुआत फिर से की जाए. इस पानी का फायदा वहां आस-पास रह रहे लोगों को मिले. हम सरस्वती को तो पुनर्जीवित कर ही नहीं सकते. क्योंकि हरियाणा के आगे सरस्वती का रूट राजस्थान की और जाता है. वहां रेतीले इलाके में खुदाई करना मुमकिन ही नहीं है. इस प्रोजेक्ट के बजट को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं वो भी गैर-वाजिब हैं. मात्र 5 करोड़ या उसके आसपास का बजट है. उसमें क्या कोई भ्रष्टाचार करेगा और क्या हमारी सरकार ने पैसा व्यर्थ कर दिया. विपक्ष का काम तो है सवाल उठाना वो उठाते रहें. लेकिन हमें आस्था का भी ध्यान रखना चाहिए.

पौराणिक मान्यताओं से जुड़ी है सरस्वती नदी
हरियाणा सरकार के फायर ब्रांड कैबिनेट मंत्री भी सरस्वती नदी पर सरकार का बचाव करने के लिए मैदान में उतरें. कैबिनेट मंत्री अनिल विज ने कहा कि ये सरस्वती नदी हमारी आस्था की प्रतीक है. जहां आस्था की बात होती है वहां साइंटिफिक बातें नहीं की जातीं. सरस्वती नदी हमारी पौराणिक मान्यताओं से जुड़ी है. हम उसके स्वरुप को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं. अब हमें चाहें उसमें किसी और नदी, ड्रेन से पानी लेकर छोड़ना पड़े या फिर पंप लगाने पड़े. हम सरस्वती नदी के इस स्वरुप और अपनी आस्था को फिर से शुरु करके रहेंगे.

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हरियाणा के पर्यटन मंत्री ने भी इन बातों को दरकिनार कर दिया कि सरस्वती नदी के प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले सरकार ने किसी तरह की रिसर्च नहीं की थी या फिर साइंटिफिक फैक्ट को समझा नहीं था. उन्होंने कहा कि जिस रूट पर खुदाई की गई है. अब पानी छोड़ने की तैयारी की जा रही है वहां पर नासा ने भी सरस्वती नदी होने की पुष्टि की थी. ऐसे में सरस्वती नदी के स्वरुप पर सवाल खड़े करना सही नहीं है. खुदाई किए गए रूट पर जो रिजर्वायर बनाए जा रहे हैं वो सरस्वती नदी पूरे साल इसी रुप में रहे उसके लिए बनाए जा रहे हैं.

 

विपक्ष ने साधा निशाना
वहीं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी सरस्वती नदी पर पंप लगाकर पानी छोड़े जाने पर कहा कि कोई भी नदी इस तरह से ट्यूबवेल लगा कर शुरु नहीं की जा सकती. हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता और इंडियन नेशनल लोकदल के वरिष्ठ नेता अभय चौटाला ने भी सरस्वती नदी के प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि सरकार जबरदस्ती उस रूट पर खुदाई करके नदी बनाने पर तुली है. जब थोड़ी सी खुदाई में भी वहां पर पानी का चौव्वा निकला तो वहां सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री खुद पूजा-पाठ करने और उसे सरस्वती नदी का पानी बताने पहुंच गए जबकि वहां पर ग्राउंड वाटर का लेवल काफी हाई होने की वजह से इतनी खुदाई में पानी वैसे भी बोरिंग करने पर निकल आता है. अब जब पूरे रूट पर खुदाई हो गई और वहां से पानी नहीं निकला तो अपनी नाकानी छिपाने के लिए वहां सरकार पंप लगवाकर और पानी छोड़कर अपनी विफलता पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है.

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इंटरनेशनल लेवल पर डेवलप होगी सरस्वती नदी
वहीं अपने प्रोजेक्ट और सरकार पर उठ रहे सवालों का बचाव करने के लिए हरियाणा सरस्वती हेरीटेज डेवलप्मेंट बोर्ड ने भी कई तथ्य रखकर सरस्वती नदी के वजूद पर सफाई दी. बोर्ड के उपाध्यक्ष प्रशांत भारद्वाज ने सरस्वती नदी की खुदाई के दौरान मिले कई पौराणिक अवशेष भी दिखाए. उन्होंने कहा कि पहले फेस में हम इंटरलिंकिंग और इंटरा-लिंकिंग ऑफ रीवर्स के पहलुओं पर काम कर रहे हैं. इसमें हम नदियों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. क्योंकि कोई भी नदी बनती है तो वो बहुत सारी धाराओं को जोड़कर बनती है. उसी के तहत हम जो सरस्वती नदी का रिवाइवल कर रहे हैं. दूसरे चरण में हम आदिबद्री पर बहुत बड़ा बांध बना रहे हैं. इसके अलावा वेबकॉस को भी हमने काम दिया है. वेबकॉस वहां और भी संभावनाएं तलाश रहा है. वहां की स्टडी और अध्यन का कार्य भी जारी है.

प्रशांत भारद्वाज ने कहा कि अभी हम नहीं कह सकते कि हम किस नतीजे पर पहुंचे है. लेकिन अगले तीन-चार महीनों में हमारी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी. इसके अलावा हम तीन जगहों पर बड़े-बड़े जलाशय भी बना रहे हैं. सरस्वती सरोवर नाम से, यमुनानगर, पेहवा और उसके आगे शिवसर का जंगलात है 11 हजार एकड़ का, वहां हम ये तीन जलाशय हम बना रहे हैं. वहां हम इको-टीरिज्म, डिवाइन टूरिज्म और ऑर्कोलोजिकल टूरिज्म जैसे आयामों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं. वहां हर्बल पार्क और म्यूजियम बनाने की भी तैयारी है. केंद्र सरकार ने इस पूरे प्रोजेक्ट को 7 स्टेट से जोड़ने के लिए इंटरनेशनल लेवल की एक टूरिज्म कंसल्टेंसी कंपनी को भी हायर कर लिया है जो इस सरस्वती प्रोजेक्ट को इंटरनेशनल लेवल पर डेवलप करेगी. सरस्वती नदी के रिवाइवल पर हरियाणा में पिछले 30 सालों से अध्यन चल रहा है. इन्हीं अध्ययन की फाइंडिगस के आधार पर हम वहां खुदाई कर रहे हैं.

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हरियाणा सरकार की मंशा हर हाल में अपने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने और कृत्रिम तरीकों से ही सही, सरस्वती नदी को बहाने की है.

 

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