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कोर्ट ने दिया आदेश, बच्चे को जन्म देगी 12 साल की रेप पीड़िता

रेप की शिकार 12 साल की एक बच्ची को न चाहते हुए भी अब बच्चे को जन्म देना होगा! मामला करनाल का है, जहां पिछले साल नाबालिग को उसी के पड़ोसी ने हवस का शिकार बनाया. इस साल फरवरी में बच्ची के परिवार को बच्ची के गर्भवती होने की खबर मिली, गर्भपात के लिए परिवार अदालत पहुंचा, लेकिन आदेश हुआ कि गर्भपात नहीं हो सकता.

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रेप की शिकार 12 साल की एक बच्ची को न चाहते हुए भी अब बच्चे को जन्म देना होगा! मामला करनाल का है, जहां पिछले साल नाबालिग को उसी के पड़ोसी ने हवस का शिकार बनाया. इस साल फरवरी में बच्ची के परिवार को बच्ची के गर्भवती होने की खबर मिली, गर्भपात के लिए परिवार अदालत पहुंचा, लेकिन आदेश हुआ कि गर्भपात नहीं हो सकता.

पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने यह फैसला मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट यानी गर्भपात के कानून के तहत एक मेडिकल बोर्ड की राय के बाद सुनाया है. मेडिकल बोर्ड के मुताबिक बच्ची का गर्भ आठ महिने से अधि‍क समय का है, लिहाजा गर्भपात से बच्ची की जान को खतरा हो सकता है.

जानकारी के मुताबिक, बच्ची बीते साल पड़ोसी के हवस का शिकार हुई, लेकिन उसने इस बारे में अपने परिवार को कुछ नहीं बताया. इस साल फरवरी में जब लड़की के परिवार को उसके गर्भवती होने का पता चला, तब पुलिस को खबर दी गई. पुलिस ने शि‍कायत के आधार पर आरोपी को गिरफ्तार किया. परिवार वाले गर्भपात के लिए करनाल के सरकारी अस्पताल पहुंचे. लेकिन अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने कहा कि गर्भ सात महीने का है, इसलिए गर्भपात नहीं हो सकता.

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डॉक्टरों ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता. बच्ची ने परिवार ने मार्च में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने चंडीगढ़ पीजीआई अस्पताल का एक मेडिकल बोर्ड बनाकर डॉक्टरों से राय मांगी. अब तक बच्ची के गर्भ को 33 हफ्ते हो चुके थे. लिहाजा बोर्ड ने यह कहकर गर्भपात से मना कर दिया कि काफी देर हो चुकी है.

कोर्ट ने बच्ची की सहायता के लिए सारा खर्च हरियाणा सरकार को उठाने के आदेश दिए हैं.

क्या कहता है कानून
यह पूरा मामला 1971 में बनाए गए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट की खामियों से जुड़ा है. इस कानून में कई खामियां हैं. इस कानून को इसलिए बनाया गया कि लड़का-लड़की या लोग मतभेद के कारण गर्भपात न करवाने लगे. लेकिन देश में अभी तक ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसने इस कानून की खामियों को उजागर किया है. इस कानून में 2014 में सोशोधन किए गए, लेकिन संशोधन अभी तक लागू नहीं हो सके हैं.

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