बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए पंजाब किसानों पर दबाव है कि वे खेतों में पराली न जलाएं. ऐसे में पंजाब के किसान इस बात के लिए नाराज हैं कि राज्य सरकार न तो पराली की समस्या से निपटने में उनकी मदद कर रही है, न ही किसी तरह का मुआवजा दे रही है, जबकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने इसके लिए निर्देश भी दिया है.
भारतीय किसान यूनियन के संगरूर जिले के अध्यक्ष मंजीत सिंह का कहना है, 'राज्य सरकार हमें 200 रुपये प्रति क्विंटल की सहायता प्रदान करने में विफल रही है. अब हमने किसानों से कहा है कि वे धान की पराली को बिना किसी हिचकिचाहट के जलाएं. जब तक सरकार हमें मुआवजा नहीं देती तब तक हम धान की पराली को जलाकर नष्ट करना जारी रखेंगे.'
भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ताओं ने बठिंडा में धान की पराली जलाकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन भी किया है क्योंकि सरकार किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए मुआवजा देने ने असफल रही है.
पराली नष्ट करने की मशीन में गड़बड़ियां
इस मसले को लेकर पंजाब सरकार, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के निशाने पर है. अब सरकार एक तरफ तो कह रही है कि पराली को वैज्ञानिक ढंग से नष्ट करने के लिए हम किसानों को 50 प्रतिशत की सब्सिडी पर मशीनें मुहैया करा रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ यह केंद्र सरकार से प्रति क्विंटल उपज पर 100 रुपये मुआवजा देने की मांग कर रही है.
हाल ही में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दावा किया कि सरकार ने पिछले साल किसानों को 28000 ऐसी मशीनें मुहैया कराई हैं. क्या ये मशीनें पराली का निपटान करने के लिए मुफीद हैं? या फिर जिन किसानों ने पराली से छुटकारा पाने के लिए इन मशीनों का इस्तेमाल किया, क्या उन्हें पराली जलाने से मुक्ति मिली? इन सवालों के जवाब पाने के लिए पंजाब के कई हिस्से में किसानों से बातचीत करके हकीकत जानने की कोशिश की.
पंजाब में बहुसंख्या में सीमांत किसानों की है, इसलिए वे लाखों रुपये खर्च करके हैप्पी सीडर और रोटावेटर जैसी मशीनें नहीं खरीद सकते, जिनके दाम दो लाख से लेकर 16 लाख तक हैं. दूसरे, इन भारी मशीनों को चलाने के लिए कम से कम 50 हार्सपॉवर का ट्रैक्टर भी चाहिए. पंजाब के किसानों में आम तौर पर 20 हार्सपॉवर तक का ट्रैक्टर इस्तेमाल होता है.
मशीनें किसानों के लिए महंगी
किसानों ने बताया कि पिछले साल पराली नष्ट करने वाली मशीनों का इस्तेमाल किया था. ज्यादातर किसानों का कहना है कि केवल बड़े किसान ही इन मशीनों का खर्च उठा सकते हैं. दूसरे, जो इसका प्रयोग कर चुके हैं, वे कई वजहों से आगे इसके इस्तेमाल के पक्ष में नहीं हैं. किसानों का कहना है कि जबसे सरकार ने इस मशीन पर 50 प्रतिशत सब्सिडी की घोषणा की है, निर्माताओं ने इसका दाम दोगुना कर दिया है.
बठिंडा के किसान जसविंदर सिंह का कहना है कि हैप्पी सीडर मशीन ने धान की पराली को पूरी तरह से नष्ट नहीं किया, जिससे बाद में खेत में दीमक और दूसरे कीड़े पैदा हुए. दूसरे, धान की पराली खेत में मौजूद रहने पर, अगर उसमें गेहूं बोते हैं तो बीज ठीक से उगते नहीं, क्योंकि पराली उनको मिट्टी के संपर्क से रोक देती है. इसे नष्ट करने का एकमात्र रास्ता है कि इसे जला दिया जाए."
जसविंदर का सुझाव है कि राज्य सरकार को खेतों से पराली नष्ट करने के लिए अपनी मशीनें रखनी चाहिए और उनका इस्तेमाल करना चाहिए. बठिंडा के एक और किसान गुरमीत सिंह, जिन्होंने पिछले साल हैप्पी सीडर मशीन का इस्तेमाल किया था, उनका कहना था कि मशीन के इस्तेमाल का परिणाम यह हुआ कि धान की पराली के अवशेष खेतों में रह गए, जिसके कारण गेहूं की उपज में कम से कम 10 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की गिरावट आई.
खेत को साफ करने में सक्षम नहीं मशीनें
एक और किसान इकबाल सिंह ने रोटावेटर का इस्तेमाल किया था और उनका कहना है कि वे इस बार इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे क्योंकि मशीन में कमी है, यह खेत को साफ करने में सक्षम नहीं है और इससे गेहूं बोने में दिक्कत आती है.
किसानों का कहना है कि उन्हें मुआवजा देने के लिए राज्य सरकार के पास धन की कमी थी. केंद्र सरकार की ओर से 100 रुपये प्रति क्विंटल की सहायता देने का राज्य सरकार का प्रस्ताव अभी भी धूल फांक रहा है.
वैसे भी धान की फसल उगाना किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं है क्योंकि इसकी लागत लगभग दोगुनी हो गई है. प्रति एकड़ कम से कम 16000 की लागत आती है और धान की कीमत 1800 रुपये प्रति क्विंटल है. अब खेतों को साफ करने के लिए किसानों को प्रति एकड़ 2000 रुपये और खर्च करना पड़े, यह उन्हें उचित नहीं लगता.