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हरियाणा: बंदिशों के बाद भी नहीं हारी हिम्मत, टोक्यो ओलंपिक में हॉकी खेलेगी सोनीपत की बेटी निशा

सोनीपत के कालूपुर गांव की रहने वाली हॉकी खिलाड़ी निशा का चयन अब ओलंपिक में जाने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम में हो गया है और इस उपलब्धि के बाद परिवार में खुशी का माहौल है.

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सांकेतिक तस्वीर.
सांकेतिक तस्वीर.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पिता ने नहीं हारने दी हिम्मत
  • बेटी को टीवी पर खेलते देखना था पिता का सपना

हरियाणा के खिलाड़ियों का ओलंपिक में दबदबा रहा है , कुश्ती के बाद अब ओलंपिक में जाने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम में नौ खिलाड़ी हरियाणा की हैं जिनमें से तीन खिलाड़ी सोनीपत जिले की रहने वाली हैं. सोनीपत के कालूपुर गांव की रहने वाली हॉकी खिलाड़ी निशा भी उनमें से एक हैं. उनका चयन ओलंपिक में जाने वाली भारतीय महिला टीम में हो गया है और इस उपलब्धि के बाद उनके परिवार में खुशी का माहौल है.

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परिवार में सबसे छोटी हैं निशा
निशा का परिवार गांव कालूपुर में 25 गज के मकान में रहता है. निशा अपने चार भाइयों बहनों में सबसे छोटी हैं. उनकी तीन बहने हैं और एक भाई है.  2016 में निशा के पिता को पैरालाइज अटैक आ गया था, जिसके बाद परिवार के सामने दो वक्त की रोटी खाने तक के पैसे नहीं थे लेकिन परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और निशा के हौसले को कायम रखा और आज उसी हौसले के दम पर निशा ने ओलंपिक में जाने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम में जगह बनाई.

पिता का सपना पूरा किया
निशा के पिता स्वराज और मां महरूम ने बताया कि वे सोनीपत के एक छोटे से गांव कालूपुर में 25 गज के मकान में रहते हैं लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को कभी भी इस बात का एहसास नहीं होने दिया और आज जब उसका भारतीय महिला हॉकी टीम जो कि ओलंपिक में जाएगी उसमें चयन हुआ है तो उनको बहुत खुशी हो रही है.उनका सपना था कि उनकी बेटी उनको टीवी पर खेलती हुई नजर आए और आज उनका सपना पूरा होता हुआ नजर आ रहा है.

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निशा के पिता स्वराज ने कहा कि मई 2016 में जब उनको अटैक आया तो उनकी उम्मीदें टूट गई थी कि बेटी को कैसे खिलाएंगे लेकिन कोच प्रीतम सिवाच ने उनको हौसला दिया और आज उसी हौसले की बदौलत उनकी बेटी ओलंपिक में खेलने जा रही है और हमें उम्मीद है. अबकी बार हमारी भारतीय महिला हॉकी टीम गोल्ड मेडल जीतकर लाएगी.

निशा की कोच प्रीतम सिवाच ने बताया कि निशा मुसलमान समुदाय से ताल्लुक रखती है और वह जब मैदान में होती है अपने शरीर को ढककर खेलती है. मैंने उसको कई बार कहा है कि वह रिलैक्स होकर खेले. उन्होंने बताया कि उनके परिवार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह मैदान पर खेल सके लेकिन उसकी हिम्मत ने उसे खेलने का अवसर दिया और आज वह देश का नाम रोशन कर रही है. उन्होंने कहा कि उनके पिता को पैरालाइज अटैक आ चुका है और वो एक साड़ी की दुकान पर काम करते हैं और उन्होंने भी अपनी बेटी को हौसला दिया और आज वह भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा है.

 

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