हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को पद संभाले अभी पांच महीने ही गुजरे थे. तभी पहली अप्रैल को उन्होंने राज्य परिवहन विभाग के तीन बड़े अधिकारियों के तबादले के फैसले पर मुहर लगा दी. अतिरिक्त प्रधान सचिव सुमिता मिश्र और प्रधान सचिव अवतार सिंह के अलावा इस सूची में तीसरा नाम 49 वर्षीय अशोक खेमका का था. खेमका वही शख्स हैं, जो एक जमाने में बीजेपी के चहेते बन गए थे, जब 2012 में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के बीच जमीन के सौदों में हुई अनियमितताओं का खुलासा किया था.
तारीफ और तबादला
24 नवंबर, 2014 को खट्टर के मुख्यमंत्री बनने के महीनेभर के भीतर खेमका को पुरातत्व और संग्रहालय विभाग से मुक्ति मिल गई. उन्हें फिर से परिवहन विभाग में परिवहन आयुक्त के पद पर तैनात किया गया. लेकिन चार महीने भी नहीं गुजरे थे कि इस सरकार में भी वही हाल हुआ, जो पिछली हुड्डा सरकार में हुआ था. बिना कोई कारण बताए उन्हें फिर से पुरातत्व और संग्रहालय विभाग में पहुंचा दिया गया. 22 साल की नौकरी में उनका यह 46वां तबादला है. खट्टर कहते हैं, 'हमें हर जगह अच्छे लोगों की जरूरत है. पुरातत्व विभाग में भी.'
डर गई सरकार?
बतौर परिवहन आयुक्त 128 दिनों में खेमका का कामकाज बिल्कुल उलटी ही कहानी बयां करता है कि कैसे सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार को खनन माफिया और परिवहन लॉबी के आगे घुटने टेकने में दो महीने भी नहीं लगे. परिवहन आयुक्त बनने के कुछ ही दिन के भीतर खेमका ने कानूनों का पालन करवाना शुरू कर दिया. 18 दिसंबर, 2014 को उन्होंने तय सीमा से पांच गुना ज्यादा रेत और पत्थर ढोने वाले ट्रकों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई करने के आदेश दिए.
2010 से हरियाणा में रेत और पत्थर के खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध है. हर रात तय सीमा से ज्यादा लदे हुए सैकड़ों मालवाहक ट्रक गुडग़ांव, फरीदाबाद और झुंझनूं से लेकर महेंद्रगढ़, तोशाम और दादरी के स्टोन क्रशर्स को माल पहुंचाने के लिए एनएच-8 से होकर राजस्थान (अलवर और भरतपुर) के रास्ते हरियाणा में प्रवेश करते हैं. इसी तरह उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के किनारों से खनन कर निकाली गई रेत हरियाणा के सोनीपत, पानीपत और यमुनानगर पहुंचाई जाती है. अधिकारी बताते हैं कि ये अवैध डंपर प्रतिदिन 8,000 से 10,000 चक्कर लगाते हैं.
खेमका को इशारों-इशारों में कुछ हलकों से निर्देश मिले कि तय सीमा से अधिक माल ढोने का खेल चलता रहे तो ठीक है, लेकिन खेमका टस से मस नहीं हुए. उलटे उन्होंने राज्य पुलिस पर इसके लिए दबाव डाला कि वे अवैध डंपरों की जांच शुरू कर दें. परिवहन आयुक्त कार्यालय ने स्वीकृत आकार से दोगुने आकार के कार और दोपहिया वाहन ढोने वाले ट्रकों को फिटनेस प्रमाणपत्र देना भी बंद कर दिया.
रसूख कम करना रास नहीं आया
अक्तूबर, 2014 में पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट ने राज्य को स्टेज कैरिज पॉलिसी पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया था. उससे प्रेरित होकर खेमका ने राज्य में निजी वाहनों को नियंत्रित करने वाले रसूखदार लोगों के एकाधिकार को खत्म करने की जो जिद ठानी थी, वह शायद सरकार को रास नहीं आई. नई स्टेज कैरिज नीतियों के मसौदे के खिलाफ 17 मार्च को राज्य परिवहन उपक्रम यूनियन ने हड़ताल कर दी. नई नीतियां हरियाणा के बेरोजगार युवाओं के लिए निजी परिचालन क्षेत्र के दरवाजे खोल देतीं. यह बात पहले से मौजूद खिलाडिय़ों और रसूखदार सियासी हलकों को नागवार गुजरी.
फिर तबादला
एक अप्रैल की सुबह बतौर परिवहन आयुक्त खेमका ने जो आखिरी आधिकारिक आदेश दिया था, उसके कुछ ही घंटों बाद उन्हें तबादले का आदेश पकड़ा दिया गया. आयुक्त ने अपने एक कर्मचारी को सलाह दी थी, 'आपको पुनः यह सुझाव दिया जा रहा है कि ओवरलोडिंग के खिलाफ अभियान में किसी सत्ता के दबाब में झुकने की जरूरत नहीं है.' उसी दिन बाद में तबादले का आदेश हाथों में लिए खेमका ने ट्वीट किया, 'तमाम सीमाओं और चारों ओर फैले हितों के टकराव के बावजूद मैंने परिवहन विभाग में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने और सुधार लाने के लिए बहुत कोशिश की. यह क्षण बहुत दुखद है.' जाहिर है कि खेमका के लिए अच्छे दिन नहीं आए हैं.