हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में पैदा हुए जल संकट ने एक तरफ जहां जल वितरण और प्रबंधन को लेकर सरकार की सजगता के दावों की पोल खोल दी है, वहीं यह भी साबित कर दिया है कि सुविधाओं के मामले में आम आदमी का नंबर दूसरा है.
जांच में सामने आया है कि शिमला के प्रभावशाली लोग और पॉश एरिया में तब भी पानी उपलब्ध था, जब आम आदमी खाली बाल्टियां लेकर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे थे. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रभावशाली लोगों को टैंकरों द्वारा पानी की आपूर्ति करने की शिकायतें मिलने के बाद इस सुविधा को केवल मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक सीमित कर दिया था.
'प्रभावशाली लोगों को पहले से दिया जाता था पानी'
हिमाचल प्रदेश के सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने आजतक से खास मुलाकात में स्वीकार किया है कि शिमला में पानी की आपूर्ति में गड़बड़ियां थीं और कुछ लोगों को गैरकानूनी तरीके से पानी दिया जा रहा था.
महेंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि प्रभावशाली लोगों को पहले पानी देने का दस्तूर पिछली सरकार के समय से ही चला आ रहा था जो शिमला में जल संकट के बाद सामने आया.
महेंद्र सिंह ठाकुर ने कहा, 'यह दस्तूर कोई रातों-रात पैदा नहीं हुआ, पिछली सरकार के समय से ही चलता रहा है. कुछ लोगों को गैरकानूनी तरीके से पानी की आपूर्ति की जा रही थी, जिसमें शिमला के होटल मालिक भी शामिल हैं. कुछ होटल मालिकों को नियमों को ताक पर रखकर पांच से 6 कनेक्शन दे दिए गए. हम जांच कर रहे हैं और दोषी पाए जाने पर जरूरी कार्रवाई की जाएगी.'
शिमला जल संकट के लिए पानी का कुप्रबंधन जिम्मेवार
शिमला में आए जल संकट के लिए पानी का कुप्रबंधन और लापरवाही जिम्मेवार है. सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य मंत्री ने माना है कि शिमला के जल भंडारण क्षेत्रों में तेजी से गिरावट आई है. एक हफ्ता पहले शिमला के टैंकों में 42 मिलियन लीटर प्रतिदिन पानी मिल रहा था, जो अचानक घटकर 22 मिलियन लीटर प्रति दिन हो गया.
'लोग प्यासे थे और मेयर चीन यात्रा का आनंद उठा रही थीं'
शिमला नगर निगम ने इसका कोई संज्ञान नहीं लिया और न ही निगम के पास आपातकाल से निपटने की कोई योजना थी. जब शहर पानी की किल्लत से जूझ रहा था तो शिमला की मेयर कुसुम सदरेट अपनी चीन यात्रा का आनंद उठा रही थीं.
इसके अलावा शिमला में पानी की एक बहुत बड़ी मात्रा व्यर्थ में गंवा दी जाती है. एक अनुमान के मुताबिक शिमला में 4 लाख मिलियन लीटर पानी यूं ही बहा दिया जाता है. इसके लिए पानी की आपूर्ति की पुरानी पाइप भी जिम्मेवार हैं, जिनमें लीकेज होती है.
महेंद्र सिंह ठाकुर के मुताबिक शिमला जल आपूर्ति के जिस मुख्य स्रोत घुमा से पानी की लिफ्टिंग होती है, वहां पर कुछ स्थानीय लोगों ने पानी की काफी मात्रा सिंचाई के लिए डायवर्ट कर दी थी, जिस पर विभाग ने रोक लगाई. शिमला में पेयजल आपूर्ति सुचारू करने के लिए एक निजी संस्था से भी मदद ली जा रही है. संस्था के करीब 20 टैंकर प्रतिदिन गम्मा के जलस्रोत में पानी डाल रहे हैं.
उधर हाईकोर्ट पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए है. शिमला में पानी के लिए होने वाले प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई है और हिमाचल के मुख्य सचिव को एफिडेविट पर स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है. इसके अलावा शिमला नगर निगम आयुक्त और शिमला पर्यटन सचिव दोनों को 11 जून को अदालत में व्यक्तिगत तौर पर हाजिर होने के लिए कहा गया है.
शिमला को कई क्षेत्रों में बांधकर हर क्षेत्र को प्रतिदिन पानी की आपूर्ति की जा रही है. पानी की आपूर्ति पुलिस विभाग के सुपरविजन में हो रही है और एक समिति पानी छोड़ने वाले कर्मचारियों और दूसरे जिम्मेदार अधिकारियों पर नजर रखे हुए हैं.
शिमला में पानी की आपूर्ति का रियल्टी चेक
राज्य सरकार एक तरफ दावे कर रही है कि शहर को कई हिस्सों में बांटकर पानी की आपूर्ति सुचारू कर दी गई है, लेकिन आजतक ने शनिवार को शहर के जिन हिस्सों में पानी दिया जा रहा था वहां का रियलिटी चेक किया और पाया कि दावों और वस्तुस्थिति में भिन्नताएं हैं.
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय समेत कई शिक्षण संस्थानों में पीने का पानी नहीं है. छात्र होस्टलों के वॉटर टैंक खाली पड़े हैं. छात्र अपनी कक्षाएं और परीक्षाओं की तैयारी को छोड़कर पानी की एक बाल्टी भरने के लिए कतारों में लगे हैं. छात्र पानी की एक बाल्टी को पूरे 3 दिन चलाने के लिए मजबूर हैं. एक बाल्टी से वह न केवल पीने, बल्कि दूसरे काम करने में भी इस्तेमाल कर रहे हैं.
हमने शिमला विश्वविद्यालय में पाया कि वहां न तो सरकार और न ही शिमला नगर निगम पानी की आपूर्ति कर रहा है. विश्वविद्यालय खुद अपने स्तर पर पानी के टैंकर खरीद रहा है, जिन छात्रों को कक्षाओं में होना चाहिए था, वह सुबह सवेरे खाली बाल्टियां हाथ में लेकर हॉस्टल के बाहर कतारें लगाते देखे जा सकते हैं.