हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ज्यादा पुरानी नहीं है, मात्र 14 महीने पहले उत्तर भारत में कांग्रेस को जश्न मनाने की वजह देने वाली देवभूमि की ये कांग्रेस सरकार अब लड़खड़ाने लगी है. सीएम सुक्खू के सुख भरे दिन अब लदने वाले हैं और लगता है कि कुर्सी पर जमें रहने के लिए उन्हें तगड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है.
हिमाचल प्रदेश में असंतोष का ये बुलबुला यूं ही नहीं फूटा है. इस असंतोष की नींव तो तब ही पड़ गई थी जब चुनाव जीतने के बाद राज्य में सरकार बनाने की बारी आई. पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने की स्थिति में आई तो ये मौका पार्टी के लिए कई परेशानियां लेकर आई.
सीएम पद की दावेदारी के लिए कई नाम सामने आए. एक दावेदार तो स्वयं वीरभद्र की पत्नी प्रतिभा सिंह थीं. वो रेस में सबसे आगे चल रही थीं.
प्रतिभा सिंह जिस शिमला जिले से ताल्लुक रखती हैं, वहां विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बढ़िया प्रदर्शन किया था और 8 में से 7 सीटें जीती थीं. तब माना जा रहा था कि प्रतिभा को पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के ज़्यादातर नजदीकी नेताओं का समर्थन हासिल है. इसलिए प्रतिभा सिंह की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को मज़बूत माना जा रहा था. प्रतिभा ने चुनाव के बाद कहा भी था कि वीरभद्र सिंह की विरासत और उनके परिवार को अनदेखा नहीं किया जा सकता है.
सीएम नहीं बन सकीं प्रतिभा
लेकिन प्रतिभा सिंह के लिए जो सबसे प्लस प्वाइंट था वही उनके लिए सबसे निगेटिव प्वाइंट भी बन गया. अगर प्रतिभा को कांग्रेस आलाकमान सीएम की कुर्सी सौंपती तो पार्टी पर परिवारवाद का आरोप लगता. इन आरोपों से केंद्र में पार्टी पहले ही जूझ रही थी. इन परिस्थितियों में 2013 से 2019 तक हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह 59 वर्षीय सुखविंदर सिंह सुक्खू बाजी मार ले गए और सीएम बन गए.
लेकिन इस घटनाक्रम से वीरभद्र फैमिली की आलाकमान से एक तरह की खटास पैदा हो गई. 6 बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह का परिवार सीएम पद का जाना सहन नहीं कर सका और तब से लगातार आलाकमान के प्रति बगावती मुद्रा में रहा.
विक्रमादित्य सिंह की बयानबाजी
वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह कई मुद्दों पर पार्टी लाइन से अलग बयान देते रहे. अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन के दौरान उन्होंने खुले आम पार्टी लाइन से अलग बयान दिया था. विक्रमादित्य सिंह ने तब खुले आम कहा था कि वे कट्टर हिंदू हैं और देव समाज' में आस्था रखने वाले एक हिंदू के रूप में यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे इस अवसर पर उपस्थित रहें और भगवान राम की 'प्राण प्रतिष्ठा' के गवाह बनें. विक्रमादित्य सिंह ने ये बयान तब दिया था जब कांग्रेस ने कहा था कि वो प्राण प्रतिष्ठा में शामिल नहीं होगी.
सुक्खू सरकार में मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने आलाकमान को ये जताने से परहेज नहीं किया कि उनके परिवार को सरकार में वाजिब सम्मान नहीं मिला है.
इस बीच सुखविंदर सिंह सुक्खू राज्य में सरकार चलाते रहे. लेकिन 68 सदस्यों वाली विधानसभा में 40 सीटें लाकर सरकार बनाने वाले सुक्खू अपने विधायकों से संवाद और तालमेल बिठा नहीं रख सके. ये वो सियासी रणनीति थी जिसमें वीरभद्र सिंह माहिर थे. वीरभद्र सिंह ऊपरी और निचले हिमाचल प्रदेश की राजनीति को संतुलित रखकर चलने में विश्वास करते थे. इसलिए उन्हें सरकार चलाने में परेशानी नहीं हुई.
वीरभद्र के रणनीतिकार को बीजेपी ने बनाया राज्यसभा कैंडिडेट
इसी बीच राज्यसभा चुनाव का समय आ गया. इस दौरान दो घटनाक्रम और हुए. इस राज्यसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने पर्याप्त संख्याबल न रहने के बावजूद हर्ष महाजन को उम्मीदवार बना दिया. यहां हर्ष महाजन की पृष्ठभूमि भी जाननी जरूरी है. हर्ष महाजन को कांग्रेस के पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह का रणनीतिकार कहा जाता है.
हर्ष महाजन 2022 में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आ गए थे. तब उनका ये दांव भले ही प्रभावशाली न रहा हो, लेकिन इस बार हर्ष महाजन ने बीजेपी आलाकमान से मिले सहयोग के दम पर कांग्रेस के कद्दावर अभिषेक मनु सिंघवी को राज्यसभा चुनाव में मात दे दिया.
जी-23 वाले आनंद शर्मा मनमसोस कर रह गए
राज्यसभा चुनाव की रेस में कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश से अभिषेक मनु सिंघवी को उतार दिया. पार्टी सिंघवी की जीत को लेकर बेफिक थी. सामान्य परिस्थितियों में 40 विधायकों के साथ सिंघवी की जीत को लेकर कोई दुविधा भी नहीं थी. लेकिन यहां अंदर ही अंदर कुछ चल रहा था. माना जा रहा है कि सीनियर कांग्रेस लीडर आंनद शर्मा भी राज्यसभा जाना चाहते थे. आनंद शर्मा शिमला से आते हैं, लिहाजा हिमाचल से बतौर राज्यसभा उम्मीदवार उनकी दावेदारी को नैतिक समर्थन भी हिमाचल कांग्रेस में मिल रहा था.
लेकिन गौरतलब है कि आनंद शर्मा कांग्रेस कभी कांग्रेस के असंतुष्टों के उस जी-23 ग्रुप का हिस्सा थे जिन्होंने पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की बात उठाई थी और अध्यक्ष पद के चुनाव की मांग की थी. लिहाजा आलाकमान ने उनकी महात्वाकांक्षाओं को तवज्जो नहीं दी. और आनंद शर्मा खुन्नस में ही रह गए.
शिमला में बाहरी हो गए सिंघवी
इसका नतीजा ये हुआ कि हिमाचल प्रदेश की कुछ शक्तियों ने अभिषेक मनु सिंघवी को बाहरी कहना शुरू कर दिया और उनकी दावेदारी का अंदर ही अंदर विरोध होने लगा. सीएम सुक्खू विरोध की इस लहर का भांप नहीं पाए और गच्चा खा गए.
चुनाव हारने के बाद सिंघवी स्वयं कहा कि ये एक तरह से कांग्रसे बनाम कांग्रेस की ही लड़ाई बन चुकी थी. क्योंकि जिन 6 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की उन्होंने डिनर और नाश्ता उन्हीं के साथ किया था, फिर भी वे उनकी मंशा को नहीं समझ सके.
बगावत के संकेत देते रहे विधायक
दिलचस्प ये है कि जिन 6 विधायकों (सुजानपुर-राजेंद्र राणा, धर्मशाला-सुधीर शर्मा, लाहौल स्पीति-रवि सिंह ठाकुर, हमीरपुर-इंद्र दत्त लखनपाल, गगरेट-चैतन्य ठाकुर, कुटलैहड-देवेंद्र भुट्टो) ने बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की है उन्हें स्वर्गीय वीरभ्रद सिंह के कैंप का माना जाता है.राज्य की राजनीति पर निगाह रखने वाले लोग बताते हैं कि राजेंद्र राणा, सुधीर शर्मा जैसे असंतुष्ट विधायकों से संवाद न होने की वजह से ये खेल हुआ है. सीएम सुक्खू यहां भारी चूक कर गए. मंत्री न बन पाए की वजह से ये नेता शुरू से ही नाराज चल रहे थे और सोशल मीडिया पोस्ट से ऐसा संकेत देने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन सीएम का तंत्र इनसे संवाद स्थापित नहीं कर पाया. राज्य कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह तो पहले ही अलग मुद्रा में थीं.
यही नहीं सीएम सुक्खू उन तीन निर्दलीय विधायकों को भी भरोसे में नहीं ले सके जिन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी के खिलाफ क्रॉस वोटिंग की. ये उम्मीदवार शारीरिक रूप से कांग्रेस के कैंप दिख जरूर रहे थे, लेकिन वोट डालने के लिए इनकी वफादारी बीजेपी के हर्ष महाजन के साथ थी. इसी का नतीजा रहा कि सुक्खू सरकार की नैया आज डगमगा रही है.