जयराम ठाकुर के रूप में हिमाचल प्रदेश को छठा ऐसा नेता मिला है जिसने मुख्यमंत्री की कमान संभाली. वो प्रदेश के 13वें और भारतीय जनता पार्टी की ओर से तीसरे मुख्यमंत्री बनने वाले नेता हैं.
बढ़ई के घर से ताल्लुक रखने वाले जयराम मंडी के चच्योट सीट फिर सिराज (पुनर्सीमांकन के बाद नया नाम मिला) से 5वीं बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. राष्ट्रीय सेवक संघ (आरएसएस) और एबीवीपी से उनका गहरा नाता रहा है, अब वह प्रदेश के नए मुखिया बन गए हैं.
लगातार पांचवीं बार जीत हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री के पद पर पहुंचने वाले मृदुभाषी और कर्मठ जयराम ने अब कमान तो संभाल लिया है, लेकिन पद ग्रहण करते ही उन्हें कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा. अब तक के राजनीतिक सफर में उन्हें जो जिम्मेदारी मिली उसमें उन्होंने कामयाबी हासिल की है लेकिन क्या वह बतौर मुख्यमंत्री भी सफल रहेंगे, यह तो वक्त ही बताएगा. लेकिन शुरुआती चरण में उनके सामने ये 7 बड़ी चुनौतियां होंगी.
मोदी-शाह के फैसले को सही साबित करना
2014 के बाद जिन भी प्रदेश में भाजपा सत्ता में आई है, वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की पसंद ही चली है यानी उन्होंने अपने पसंद के लोगों को ही कमान सौंपी. हिमाचल प्रदेश में भी मोदी-शाह की जोड़ी ने कई बड़े नामों को पीछे छोड़ते हुए जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री चुना है. ऐसे में जयराम के पास सबसे बड़ी यही चुनौती होगी कि बतौर मुख्यमंत्री कामयाबी हासिल करें और प्रदेश में स्थायी सरकार चलाकर मोदी-शाह की पसंद को सही साबित करना होगा.
नाराज गुटों को साधे रखना
चुनाव परिणाम आने से पहले भाजपा ने प्रेम कुमार धूमल को पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया था, लेकिन धूमल के चुनाव हार जाने से बाजी पलट गई और उन्हें इस रेस से बाहर होना पड़ा. इसके बाद धूमल के अलावा केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा, सुरेश भारद्वाज और नरेंद्र बरागटा का नाम भी भावी मुख्यमंत्री के रूप में लिया जा रहा था, लेकिन कई दिनों तक कयास लगाए जाने के बाद जयराम ने सबको पीछे छोड़ते हुए बाजी मार ली. वह उम्रदराज नेताओं में काफी जूनियर माने जाते हैं. वैसे भी इस छोटे से राज्य में पार्टी में कई गुट (धूमल गुट और नड्डा गुट) बने हुए हैं जो कहीं न कहीं नई सरकार को मुश्किल में डालने की कोशिश कर सकते हैं. ऐसे किसी भी प्रयास को हकीकत में बदलने से रोकना भी जयराम की अगली बड़ी चुनौती होगी. साथ में वरिष्ठ नेताओं के साथ तालमेल बिठाना और सबको साथ लेकर उनको चलना ही होगा.
53 हजार करोड़ का कर्जा
नई सरकार बनने पर भाजपा प्रदेश की ईकाई में फिलहाल जश्न का माहौल होगा, लेकिन इसके बाद सरकार को भारी भरकम कर्ज के साथ अपनी पारी खेलनी होगी. राज्य पर करीब 53 हजार करोड़ रुपए का कर्जा है, जिसे चुकाने के साथ-साथ प्रदेश को तरक्की की राह पर लाना इस नई सरकार के लिए एक और बड़ी चुनौती है. प्रदेश में वित्तीय स्थिति ही संकटपूर्ण नहीं बल्कि प्रशासनिक ढांचा भी गड़बड़ाया हुआ है.
खराब कानून व्यवस्था
देश के नक्शे के आधार पर हिमाचल छोटे राज्यों में गिना जाता है, लेकिन यहां भी अन्य राज्यों की तरह अपनी ही समस्याएं हैं. नेचर के हिसाब से यह बेहद शांत राज्य भी है, लेकिन पिछले कुछ सालों में कानून-व्यवस्था बिगड़ी है. अपराध की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. गुड़िया रेप और हत्या, होशियार सिंह प्रकरण ने राज्य को खासा बदनाम भी किया. खुद भाजपा भी कांग्रेस की पिछली सरकार पर खराब कानून-व्यवस्था के लिए दोषी करार देती रही है और चुनाव में उसे खासा मुद्दा भी बनाया. अब जब यहां भाजपा की सरकार आ गई है तो बढ़ते अपराध पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी उस पर होगी.
बेरोजगारी दूर करने की चुनौती
भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में 4-9-14 की घोषणा, बेरोजगारी दूर करना, हिमाचल को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के साथ-साथ आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए पॉलिसी, सरकारी विभागों, निगम बोर्डों को पेंशन योजना के लिए पेंशन योजना समिति गठन करने का वादा किया था. अब इस नई सरकार को अपने इन वादों को पूरा करना होगा.
कृषि भूमि का मुआवजा दोगुना करना
जयराम ठाकुर की सरकार के पास किसानों की अधिगृहित की जाने वाली कृषि योग्य भूमि का मुआवजा राशि 2 से बढ़ाकर 4 गुणा करना अगली बड़ी चुनौती होगी. साथ ही ट्रैक्टर और पिकअप को कृषि ऋण योजना में शामिल करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा.
सबका अपना घर
केंद्र सरकार के वादे के तहत हर किसी का हो अपना घर वादा 2022 तक दिया जाना है. अपना घर योजना के तहत प्रदेश के हर परिवार के लिए मकान की व्यवस्था करना बेहद मुश्किल होगा. वो भी तब जब राज्य कर्ज के बोझ तले दबा है, हालांकि अच्छी बात यह है कि केंद्र में उसी की पार्टी की सरकार है.