भाजपा के विधायक सतपाल सत्ती द्वारा सीपीएस (मुख्य संसदीय सचिव) की नियुक्ति को चुनौती देने वाले मामले पर आज कोर्ट का एक महत्वपूर्ण फैसला सामने आया है और इस फैसले से वर्तमान सरकार को करारा झटका लगा है. भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं विधायक सतपाल सती ने अतिरिक्त महाधिवक्ता पंजाब हरियाणा सतपाल जैन, वरिष्ठ अधिवक्ता अंकुश दास, अधिवक्ता वीर बहादुर वर्मा, अंकित धीमान, मुकुल शर्मा और राकेश शर्मा के माध्यम से हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी.
फैसले के बारे में मीडिया से बातचीत करते हुए वीर बहादुर वर्मा ने बताया कि माननीय हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में फैसले के लिए जो आवेदन वर्तमान सरकार ने इस याचिका में बढ़ाने की योग्यता, मेंटेनेबिलिटी के ऊपर आगे बढ़ाया था. इसमें हमारे पक्ष में फैसला आया है. अदालत ने सरकार के आवेदन को खारिज कर दिया गया है, जैसे कि हमें अवगत है कि सीपीएस की नियुक्तियों को लेकर सतपाल सत्ती एवं 11 अन्य विधायकों ने उच्च न्यायालय में इनकी नियुक्ति को चुनौती दी थी.
पिछली बार 3 अक्टूबर को मुद्दा कोर्ट के समक्ष लगा था, जिसमें लंबी बहस हुई थी, जिसका आज फैसला आया है. इस फैसले में साफ है कि याचिका मेंटेनेबल है मतलब आगे बढ़ाने योग्य है.
16 अक्टूबर को उच्च न्यायालय में यह याचिका फिर लगी है जिसमें हमने अंतरिम निवेदन किया है. सवाल यह उठता है कि अंतरिम निवेदन में क्या होगा. अगर उनकी नियुक्ति पर रोक लगती है तो यह एक बड़ा फैसला माना जाएगा, हमने पहले भी स्पष्ट किया है कि यह सरकारी खजाने का मामला है और इसको लेकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला पूर्व में भी सुनाया है. सर्वोच्च न्यायालय का कानून, भूमि का कानून माना जाता है.
असम और मणिपुर में भी इस मामले को लेकर पूर्व में फैसला सुनाया जा चुका है और सर्वोच्च न्यायालय मानता है कि उनकी नियुक्ति और असंवैधानिक है. आज के फैसले के बाद हमारी याचिका का पहला पड़ाव पर हो चुका है. सरकार ने अपने आवेदन में विधायकों के 12 शपथ पत्र की अधिकारिता पर सवाल उठाए थे. हमने वह सभी 12 शपथ पत्र कोर्ट को दे दिए हैं.
यह मामला अनियमितता का था ना अवैधता का था और हम बताना चाहेंगे कि अनियमितता का मामला सुधार योग्य होता है.हमें पूरा भरोसा है कि हम इस केस में मजबूती के साथ आगे बढ़ रहे हैं और हमारे हाथ मजबूत है. 16 अक्टूबर को या तो कोर्ट फैसला सुनाएगी या इसे रिजर्व रख देगा.