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लद्दाख में 14000 फुट ऊंचाई पर साढ़े दस हजार साल पुरानी सभ्यता के प्रमाण

डॉ ओटा की टीम ने खोज अभियान के दौरान ये गौर किया कि इस दुर्गम दर्रे में पहाड़ी और घाटी के बीच से आती सर्पिलाकार सड़क धीरे-धीरे सासर जलधारा की ओर ऊपर जा रही है.

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सभ्यता से जुड़े मिले कई सुराग
सभ्यता से जुड़े मिले कई सुराग

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लद्दाख के सूखे शीतल रेगिस्तान की वादियों में समुद्र तल से 14 हजार फुट ऊपर मिला ईसा से नौ हजार साल पुराना आबादी वाला स्थल. यहां पर साढ़े नौ हजार साल पुरानी सभ्यता के चिहन मिले हैं. तो क्या पुरा पाषाण काल से ही भारत दुनिया को सभ्यता का पाठ पढ़ाता रहा है. यानी मानव सभ्यता ने यहीं से दुनिया को उंगली पकड़ कर चलना सिखाया.

आर्कियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया के विशेषज्ञ बरसों से लद्दाख के काराकोरम दर्रे के सासर ला इलाके में इसकी खोज कर रहे थे. नुब्रा घाटी में एएसआई के विशेषज्ञ और ज्वाइंट डीजी डॉ एसबी ओटा की टीम को ये कामयाबी हाथ लगी है. डॉ ओटा की टीम ने खोज अभियान के दौरान ये गौर किया कि इस दुर्गम दर्रे में पहाड़ी और घाटी के बीच से आती सर्पिलाकार सड़क धीरे-धीरे सासर जलधारा की ओर ऊपर जा रही है.

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सभ्यता से जुड़े मिले कई सुराग
जलधारा के साथ आगे बढ़ते गए तो 22 किलोमीटर का सफर तय कर टीम ऐसी समतल जगह पहुंची जहां सड़क निर्माण के दौरान खुदाई हुई थी. उस जगह ने उनको चौंकाया. चोटी पर ये छोटी सी समतल जगह थी. बंजर जगह पर जलधारा के आसपास पड़ी चट्टानें, छोटी गुफा कंदराएं, कहीं आग जलने के निशान. यानी कभी इस टीले पर सदियों पहले सभ्यता और बसावट रही होगी. सामने बर्फीली चोटियां और इस ओर जले हुए सामान. सबकी आंखें चमक गईं. यहां ये कैसे निशान हैं. ओटा साहब ने फौरन खुदाई के आदेश दिए.

अमेरिका में हुई नमूने की जांच
खुदाई में जले हुए सामान चारकोल की शक्ल में और हड्डियां भी मिलीं. उसे अमेरिका में फ्लोरिडा की बेटा लैब में जांच के लिए भेजा गया. रेडियोकार्बन डेट डिटर्मिनेशन का नतीजा चौंकाने वाला आया. ये नमूना आठ हजार पांच सौ साल पुराना पाया गया. यानी अब से 10 हजार पांच सौ साल पुराना. एएसआई के विशेषज्ञों के अंदाजे से भी पुराना. आसपास मिले कई और नमूने ईसापूर्व 7300 साल पुराने भी मिले. यानी आठ सौ साल तक यहां लोग रहते थे. वो आग जलाते थे मांस पकाते थे. क्योंकि कई हड्डियां गोरेल और याक की भी मिली हैं. इतनी दुर्गम जगह पर तब भी भारत की सभ्यता मौजूद थी.

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वहां की और खुदाई करनी होगी
इस खोज के बावजूद सवाल अब भी उठ रहे हैं. मानव यहां रहता था तो उसके औजार और हथियार कहां गए. यहां कैंपिंग साइट थी तो वो स्थायी रूप से रहते कहां थे. एएसआई ने तय तो कर लिया है कि वहां की खुदाई करनी होगी. ताकि इन सवालों के जवाब भी मिल सकें. हालांकि इस दुर्गम इलाके में लगातार खुदाई का काम इतना आसान भी नहीं है. तेज बर्फीली हवाएं, ऑक्सीजन की कमी और दूर-दूर तक निर्जन रेगिस्तान. खुदाई का काम चुनौती पूर्ण जरूर है लेकिन यहां की खुदाई एक अलग रहस्य जरूर खोलेगी.

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