जम्मू-कश्मीर के माछिल में चार साल पहले हुए फर्जी एनकाउंटर मामले में सेना के 2 अधिकारियों समेत 7 जवानों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. सभी को तीन नागरिकों की हत्या के लिए दोषी पाया गया है. साल 2010 में सैन्य अधिकारियों ने हत्या को मुठभेड़ दिखाकर तीन पाकिस्तानी आतंकवादियों को मारने का दावा किया था. सेना ने सैन्य अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट मार्शल का ऐलान किया था.
जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि किसी को यकीन नहीं था कि माछिल मामले में इतनी तेजी से न्याय होगा.
जानकारी के मुताबिक, कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया जनवरी 2014 में शुरू हुई और सितंबर महीने में खत्म हुई. सजा के तौर पर सभी 7 दोषियों को नौकरी से मिलने वाले लाभ से भी वंचित कर दिया गया है. जनरल कोर्ट मार्शल में 4 राजपूत रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल डीके पठानिया, कैप्टन उपेंद्र सिंह, सूबेदार सतबीर सिंह, हवलदार बीर सिंह, सिपाही चंद्रभान, सिपाही नागेंद्र सिंह और सिपाही नरेंद्र सिंह को शहजाद अहमद, रियाज अहमद और मोहम्मद शफी की हत्या का दोषी पाया गया है. 2010 में फर्जी एनकाउंटर के बाद कश्मीर में तीन महीने तक जन आंदोलन चला था, जिसमें 123 लोग मारे गए थे.
गौरतलब है कि अप्रैल 2010 को सेना ने दावा किया था कि उसने माछिल सेक्टर में तीन घुसपैठियों को मार गिराया गया है. बाद में सेना ने कहा कि ये सभी पाकिस्तानी आतंकवादी थे, लेकिन बाद में पता चला कि मारे गए तीनों बारामुला जिले के नदीहाल कस्बे के निवासी हैं. आरोप था कि सेना अधिकारी इन तीनों को सीमा के इलाके में ले गए और गोली मार दी. मृतकों के रिश्तेदारों की ओर से की गई शिकायत के बाद पुलिस ने प्रादेशिक सेना के एक जवान और दो अन्य को गिरफ्तार किया था.
शिकायतों के बाद सेना ने घटना की जांच की, जिसमें स्थानीय पुलिस और सेना के जवानों को सेना के न्याय विभाग ने बुलाकर पूछताछ की. आरोपों के मुताबिक, आराेपी सैनिकों ने तीनों युवकों को सोपोर से नौकरी देने के नाम पर किडनैप किया और फिर कुपवाड़ा में ऊंची पहाड़ियों पर ले जाकर उन्हें मार दिया.