केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लिए भूमि कानूनों में एक बड़ा संशोधन किया, जो देश के किसी भी शख्स को इस केंद्र शासित प्रदेश में जमीन खरीदने की अनुमति देता, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि लद्दाख में इसे लागू नहीं किया गया है. इसका कारण पिछले महीने लद्दाखी नेताओं की केंद्र से वार्ता में निहित है, जिन्होंने अनुच्छेद 371 या छठी अनुसूची की मांग की थी. लद्दाखी नेताओं ने भारत-चीन संकट के बीच इसे लागू करने का प्रस्ताव पारित किया था.
देश के 11 राज्यों के लिए अनुच्छेद 371 में 'विशेष प्रावधान' हैं, जिनमें पूर्वोत्तर के छह राज्य भी शामिल हैं. इस अनुच्छेद में राज्यों को अपनी अनोखी सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक हितों को सुरक्षित करने का प्रावधान शामिल है.
छठी अनुसूची की मांग
लद्दाखी नेताओं का कहना था कि लद्दाख की 90 फीसदी आबादी 'आदिवासी' है. इसलिए उनके अधिकारों की सुरक्षा किया जाना जरूरी है. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे कई राज्यों में इस किस्म के प्रावधान हैं, जो कृषि भूमि के हस्तांतरण को प्रतिबंधित बनाते हैं. इन मांगों को लेकर लद्दाखी नेताओं ने केंद्र सरकार को लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (LADH) चुनाव के बहिष्कार तक की चेतावनी दी थी. लद्दाख की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने के लिए बीजेपी के स्थानीय नेता सहित सभी लोग एकजुट हो गए थे.
केंद्र का प्रयास
विरोध की लपटों को कम करने के प्रयास में लद्दाखी नेताओं को पिछले महीने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलाने के लिए एक विशेष विमान में भेजा गया था. गृह मंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनकी चिंताओं को दूर किया जाएगा. इसके बाद लद्दाख के सांसद थिकसे रिनपोछे और थुपस्तान चवांग, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मंत्री छेरिंग दोरजे और केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और जी किशन रेड्डी ने लद्दाख का दौरा किया. मोदी के दो मंत्रियों ने भी लद्दाख का दौरा किया.
केंद्र के आश्वासन से लद्दाखी नेता आश्वस्त हो गए, और केंद्र सरकार ने चुनाव बहिष्कार के ऐलान वाले संकट से राहत की सांस ली. इसके बाद केंद्र ने घोषणा की कि इस मुद्दे पर पीपुल्स मूवमेंट के तत्वाधान में लद्दाखी डेलिगेशन के साथ विचार-विमर्श किया जाएगा जिसमें लेह और करगिल जिलों के प्रतिनिधि शामिल होंगे. इस मीटिंग में केंद्रीय गृह मंत्रालय की छठी अनुसूची के तहत LAHDC को संवैधानिक सुरक्षा मुहैया कराये जाने पर चर्चा होगी. यह मीटिंग LAHDC चुनाव के 15 दिन बाद शुरू होगी.
बीजेपी को मिली जीत
संयोग से बीजेपी ने लद्दाख पहाड़ी विकास परिषद के चुनावों में 26 में से 15 सीटें जीत ली, जबकि कांग्रेस ने 9 सीटें जीतीं और 2 निर्दलीय प्रत्याशी जीते. कई विशेषज्ञों का मानना है कि स्थानीय नेता जम्मू-कश्मीर की तरह भूमि कानून को लद्दाख में लागू करने की संभावना को दूर करने में सफल रहे.
उखड़े कश्मीरी नेता
बहरहाल, कश्मीरी नेताओं ने केंद्र के इस कदम की निंदा की. एक ट्वीट में उमर अब्दुल्ला ने कहा, "इस बारे में बहुत भ्रम है कि क्या लद्दाख को भी नए भूमि कानून के दायरे में लाया गया है या नहीं. मुझे नहीं पता कि इससे भी बदतर क्या होगा? लद्दाख को केंद्र द्वारा धोखा दिया गया है या केवल जम्मू-कश्मीर को बेचने के लिए खोल दिया गया है. इस प्रकार केंद्र ने इरादतन और पूर्वाग्रह के चलते विश्वासघात किया है."
There’s much confusion about whether Ladakh has been included in the new land ownership order. I don’t know what would be worse: that Ladakh has also been betrayed by the Centre or that only J&K has been put up for sale, thus betraying the centre’s true intentions & bias
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) October 27, 2020
गुपकार डिक्लेरेशन के लिए बने पीपुल्स अलाएंस (PAGD) ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर के साथ लद्दाख की जमीन को बाहरी लोगों को बेचने के लिए रास्ते खोल दिए हैं. लेकिन सरकारी सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि बाहरी शख्स को जमीन खरीदने की सिर्फ जम्मू-कश्मीर में इजाजत है, लद्दाख को नए कानून के दायरे से बाहर रखा गया है.
गुपकार डिक्लेरेशन के लिए बने पीपुल्स अलाएंस के प्रवक्ता सज्जाद लोन ने कहा, "उन्होंने (केंद्र सरकार) कानून में संशोधन करके जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के स्थायी निवासियों को राज्य में अचल संपत्ति प्राप्त करने और रखने का विशेष अधिकार छीन लिया. अब असंवैधानिक रूप से दो केंद्र शासित प्रदेश विभाजित हो चुके हैं."