जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में जिस एनकाउंटर को अंजाम देते समय तीन अफसर शहीद हो गए, उस ऑपरेशन को कर्नल मनप्रीत के नेतृत्व में अंजाम दिया जा रहा था. उन्होंने ही टीम को लीड करते हुए आतंकियों पर हमला बोला था. मुठभेड़ के दौरान आतंकवादियों ने उन पर गोलीबारी की. वह गंभीर रूप से घायल होने के बाद शहीद हो गए. कर्नल मनप्रीत सिंह कमांडिंग ऑफिसर भी थे, इनके हवाले राष्ट्रीय रायफल्स की यूनिट थी.
अपने भाई की बहादुरी के बारे में बात करते हुए कर्नल मनप्रीत के भाई संदीप ने बताया कि साल 2003 में सीडीएस की परीक्षा पास कर ट्रेनिंग के बाद भाई मनप्रीत 2005 में लेफ्टिनेंट बने थे. उन्होंने ट्रेनिंग पर जाते समय कहा था कि, उन्हें नहीं मालूम कि डर क्या होता है. वह मौत को पीछे छोड़कर भारत माता की सेवा करने के लिए सेना में शामिल हुए थे. मार्च 2021 में कर्नल मनप्रीत सिंह को उनके अदम्य साहस के लिए गैलेंट्री सेना मेडल से नवाजा गया था.
बचपन से जाना चाहते थे सेना में
मनप्रीत का सपना बचपन से ही सैन्य अफसर बनने का था. उनसे जब भी इस बारे में पूछा जाता, वह एक ही जवाब देते थे कि जैसे पिता सेना में बतौर सिपाही अफसरों को सैल्यूट करते हैं, एक दिन वह अफसर बनेंगे और अपने पिता के साथ खड़े होंगे, उस समय वही अफसर उन्हें भी सैल्यूट करेंगे. मनप्रीत के पिता लखमीर सिंह 12 सिख लाइट इन्फेंट्री से बतौर हवलदार रिटायर्ड हुए थे.
6 साल का बेटा, ढाई साल की बेटी
मनप्रीत का पूरा परिवार मोहाली में रहता है. जबकि, उनकी पत्नी जगमीत ग्रेवाल बेटे कबीर सिंह (6) और बेटी वाणी (ढाई साल) के साथ मायके पंचकूला में रहती हैं. दरअसल, वह सरकारी टीचर हैं और उनकी पोस्टिंग मोरनी में है. उन्हें यहां से अपना स्कूल पास पड़ता है. साल 2016 में मनप्रीत की जगमीत के साथ शादी हुई थी.
परिवार ने सेना में रहकर की देशसेवा
शहीद कर्नल मनप्रीत सिंह के भाई संदीप सिंह ने बताया कि उनका पूरा परिवार आर्मी बैकग्राउंड से है. उनकी पूरी फैमिली ने सेना में रहकर देश की सेवा की है. पिता लखमीर सिंह सेना में बतौर सिपाही भर्ती होकर हवलदार के पद से रिटायर हुए तो वहीं चाचा भी सेना में रहे हैं. इतना ही नहीं उनके दादा स्वर्गीय शीतल सिंह, उनके भाई साधु सिंह और त्रिलोक सिंह तीनों सेना से रिटायर्ड थे. रिटायरमेंट के बाद उनके पिता पंजाब यूनिवर्सिटी की सुरक्षा यूनिट में तैनात थे. 2014 में उनके पिता की ब्रेन हेमरेज के कारण मौत हो गई थी, जिसके बाद संदीप सिंह को उनकी जगह अनुकंपा नौकरी (असिस्टेंट क्लर्क) मिली.
मिली थी आतंकियों के छिपे होने की सूचना
दरअसल, सुरक्षाबलों को 12 सितंबर को अनंतनाग के कोकरनाग के हलूरा गंडूल इलाके में 2-3 आतंकियों के छिपे होने की सूचना मिली. तत्काल सुरक्षाबलों और जम्मू-कश्मीर पुलिस की एक संयुक्त टीम का गठन किया गया. सेना की यूनिट का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी कर्नल मनप्रीत सिंह ने ली. इलाके को घेरकर तलाशी अभियान चलाया गया. शाम के समय शुरू हुए ऑपरेशन को रात में बंद कर दिया गया. इस ऑपरेशन को 13 सितंबर को दोबारा शुरू किया गया.
हेलिकॉप्टर से किया एयरलिफ्ट, लेकिन...
सर्च ऑपरेशन के दौरान सुरक्षाबलों और पुलिस की संयुक्त टीम संदिग्ध स्थान की तरफ बढ़ने लगी. टीम उस जगह पर चढ़ गई, जहां आतंकियों के छिपने की जानकारी मिली थी. इस बीच आतंकियों ने गोलीबारी शुरू कर दी और मुठभेड़ शुरू हो गई. इस गोलाबारी में सेना के एक अधिकारी और एक पुलिस अधिकारी को गोली लगी. एनकाउंटर में घायल अफसरों को तुरंत हेलिकॉप्टर से एयरलिफ्ट किया गया. लेकिन, उन्हें बचाया नहीं जा सका. इस मुठभेड़ में 19 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष धोनैक और उपाधीक्षक हुमायूं भट शहीद हो गए.