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दिनेश्वर शर्मा से उम्मीद नहीं, पहली रिपोर्ट भी कूड़ेदान में गई: फारूक अब्दुल्ला

उन्होंने कहा, 'मुझे इस नए वार्ताकार से बेहद कम अपेक्षा है. जैसा पहले हुआ है, वह आएंगे और लोगों से मिलेंगे. साल 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने वार्ताकारों के एक समूह की नियुक्ति की थी'.

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फारूक अब्दुल्ला
फारूक अब्दुल्ला

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मोदी सरकार कश्मीर समस्या पर बातचीत के लिए नियुक्त वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा को भले ही बड़ी उम्मीद के रूप में देख रही है. मगर घाटी के अलगाववादी और स्थानीय राजनीतिक दलों को दिनेश्वर शर्मा से कोई खास अपेक्षा नहीं है.

दिनेश्वर शर्मा की कश्मीर यात्रा से एक दिन पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने अपनी ये सोच सार्वजनिक तौर पर जाहिर भी कर दी है. फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि उनकी पार्टी को वार्ताकार से 'बहुत कम' उम्मीद है.

साथ ही फारूक अब्दुल्ला ने ये भी कहा कि केंद्र सरकार कश्मीर पर कोई ठोस नीति तैयार करे.

पुरानी रिपोर्ट कूड़ेदान में फेंक दी गई

फारूक अब्दुल्ला ने ने इस मसले पर कहा, 'मुझे इस नए वार्ताकार से बेहद कम अपेक्षा है. जैसा पहले हुआ है, वह आएंगे और लोगों से मिलेंगे. साल 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने वार्ताकारों के एक समूह की नियुक्ति की थी, जिसने राज्य का दौरा किया और यहां हर तबके के साथ विस्तार से चर्चा की थी'.

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उन्होंने कहा आगे कहा, 'उस प्रक्रिया में दो महीने लगे थे और लोगों के साथ बैठक के बाद एक रिपोर्ट तैयार की गई थी. उस रिपोर्ट का क्या हुआ. क्या सरकार ने उस रिपोर्ट के बारे में संसद समेत किसी भी मंच पर चर्चा की. चर्चा के बजाय इसे नॉर्थ ब्लॉक में कहीं कूड़ेदान में फेंक दिया गया'.

कुपवाड़ा के तंगधार इलाके में एक जनसभा को संबोधित करते हुए फारूक ने पहले भी कोई नतीजा नहीं निकला था. इसलिए इस बार भी कुछ होने की अपेक्षा नहीं है.

पेंडुलम की तरह घूमी मोदी की कश्मीर नीति

अब्दुल्ला ने कहा, 'जब से मोदी सत्ता में आए हैं, उनकी कश्मीर नीति पेंडुलम की तरह इधर-उधर घूम रही है. नये वार्ताकार की नियुक्ति खुद विवादों में घिर गई है. गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने उन्हें वार्ताकार बताया जबकि अगले ही दिन पीएमओ में एक अन्य मंत्री ने उन्हें महज प्रवक्ता बताया'.

बता दें कि दिनेश्वर शर्मा को कश्मीर मुद्दे पर सभी पक्षों से बातचीत के लिए नियुक्त किया गया है. अलगाववादियों ने भी उनसे बातचीत के लिए इनकार किया है.

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