scorecardresearch
 

LoC पर बाड़ेबंदी के लिए स्मार्ट फेंसिंग का हाइब्रिड मॉडल अपना रही है सेना

फेंसिंग की मौजूदा प्रणाली Anti-Infiltration Obstacle System (AIOS) कहलाती है. ये सिस्टम LoC से 700 मीटर दूर स्थित है. दोहरी कंटीली तारों से तैयार किया गया ये फेंस 2003 से 2005 के बीच में बनाया गया था.

Advertisement
X
अखनूर में बॉर्डर पर रखवाली करते हुए BSF के जवान (फोटो- पीटीआई)
अखनूर में बॉर्डर पर रखवाली करते हुए BSF के जवान (फोटो- पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • जम्मू-कश्मीर में LoC पर स्मार्ट हाईब्रिड स्मार्ट फेंसिंग
  • फेंसिंग की हाईब्रिड तकनीक लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग सेंसर से लैस

जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ रोकने के लिए सेना ने बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रानिक सर्विलांस का सहारा लिया है और एलओसी की चाक-चौबंद बाड़ेबंदी कर की है. सेना एलओसी की मौजूदा बाड़ेबंदी को स्मार्ट और इलेक्ट्रॉनिक कर रही है और वहां कई सेंसर लगा रही है.  

Advertisement

हालांकि 700 किलोमीटर लंबे बाड़े को स्मार्ट फेंसिंग में बदलना काफी खर्चे का सौदा है. इसलिए सेना अब हाइब्रिड मॉडल अपना रही है. 

अंग्रेजी वेबसाइट द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक फेंसिंग के हाइब्रिड मॉडल में एक किलोमीटर में 10 लाख का खर्च आएगा. फिलहाल सेना 60 किलोमीटर तक इस प्रणाली को अपना रही है. एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने कहा कि पुरानी तकनीक में 2.4 किलोमीटर तक की फेंसिंग के लिए 10 करोड़ रुपये का खर्च आता था.

पिछले साल आर्मी की 19वीं डिवीजन में ट्रायल के तौर पर इस प्रोजेक्ट में 10 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. अत्यधिक खर्चीला होने की वजह से इस प्रोजेक्ट को रोक लिया गया है. 

फेंसिंग की हाइब्रिड तकनीक को लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग सेंसर, इंफ्रारेड सेंसर्स और कैमरों से लैस किया जाएगा.

देखें: आजतक LIVE TV  

Advertisement

बता दें कि फेंसिंग की मौजूदा प्रणाली Anti-Infiltration Obstacle System (AIOS) कहलाती है. ये सिस्टम LoC से 700 मीटर दूर स्थित है. दोहरी कंटीली तारों से तैयार किया गया ये फेंस 2003 से 2005 के बीच में बनाया गया था. लेकिन बर्फबारी, खराब मौसम की वजह से ये तारें हर साल बड़े पैमानें पर खराब हो जाती थीं. इसके बाद आर्मी ने स्मार्ट फेंस लगाने की योजना बनाई जिसमें कई सेंसर लगे हुए थे. 

इस वक्त ये फेंसिंग 740 किलोमीटर लंबे एलओसी के अधिकतर भाग में लगा हुआ है. इस फेंसिंग में उत्तरी कश्मीर में भारी बर्फबारी की वजह से ज्यादा नुकसान पहुंचता है, जबकि पीरपंजाल के दक्षिणी इलाके में कम बर्फबारी की वजह से कम नुकसान होता है. तंगधार सेक्टर में तो सर्दियों में 7 से 8 फीट बर्फबारी होती है, जिसकी वजह से पूरी बाड़ेबंदी ही बर्फ में दब जाती है और यहां हर साल मरम्मत करना पड़ती है. 

Advertisement
Advertisement