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जम्मू और कश्मीर में कैसे होगा परिसीमन, किसे मिलेंगी कितनी सीटें, क्या है आयोग का पूरा प्लान? पढ़ें

जम्मू और कश्मीर में परिसीमन की तैयारियां बेहद तेज हो गई हैं. बढ़ती जनसंख्या के आधार पर वक्त-वक्त पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं दोबारा निर्धारित करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहते हैं. परिसीमन का उद्देश्य होता है कि हर वर्ग के नागरिक को चुनाव में प्रतिनिधित्व का समान अवसर मिले.

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जम्मू और कश्मीर में नए सिरे से होगा परिसीमन (तस्वीर-PTI)
जम्मू और कश्मीर में नए सिरे से होगा परिसीमन (तस्वीर-PTI)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की तैयारियां तेज
  • 2022 तक पूरी हो सकती है परिसीमन प्रक्रिया
  • परिसीमन के बाद J-K में 90 सीटों पर होंगे चुनाव

जम्मू और कश्मीर में परिसीमन को लेकर परिसीमन आयोग की तैयारियां तेज हो गई हैं. केंद्र शासित प्रदेश में कुछ महीनों के बाद विधानसभा की 7 सीटें बढ़ सकती हैं. परिसीमन आयोग ने अपना प्लान भी जारी किया है. घाटी में परिसीमन को लेकर आयोग बीते 4 दिनों से मंथन कर रहा था. नए कश्मीर की तरफ इसे एक बड़े कदम के तौर पर देखा जा रहा है. 

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अगर नए सिरे से परिसीमन पूरा हो जाता है तो जम्मू और कश्मीर में सीटों की संख्या लगभग बराबर हो सकती है. जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के बाद विधानसभा की सात सीटें बढ़ेंगी. यह परिसीमन साल 2011 की जनगणना के आधार पर होगा. परिसीमन की प्रक्रिया मार्च 2022 तक खत्म हो जाएगी.

दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 जून को जम्मू और कश्मीर के राजनैतिक दलों के दिग्गज नेताओं के साथ जो अहम बैठक की थी, उससे इस बात की चर्चाएं शुरू हो गई थीं कि जम्मू और कश्मीर में पहले परिसीमन की प्रक्रिया होगी, फिर चुनाव कराए जाएंगे. चुनाव के बाद जम्मू और कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा भी दिया जा सकता है. 

जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होंगी सीटें, परिसीमन आयोग ने सामने रखा प्लान

जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में मोदी सरकार के तीन सूत्रीय एजेंडे में परिसीमन की प्रक्रिया पहला कदम है. दरअसल बीते चुनाव तक जम्मू-कश्मीर में कुल 87 विधानसभा सीटें थीं. पुनर्गठन अधिनियम लागू होने के बाद लद्दाख अलग केंद्र शासित प्रदेश बना और 4 सीटें लद्दाख के हिस्से में चली गईं. इस तरह जम्मू-कश्मीर में कुल 83 सीटें रह गईं. इनमें से कश्मीर के खाते में 46 सीटें और जम्मू के खाते में 37 सीटें आईं. अब नए परिसीमन के बाद प्रदेश में 90 विधानसभा सीटें हो जाएंगी.

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परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में 90 सीटों पर होंगे चुनाव!

परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में 90 सीटों पर चुनाव होंगे. परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर के सियासी समीकरण भी बदलेंगे. इसलिए जम्मू-कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी सियासत के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया पर आपत्तियां दर्ज करवानी शुरू कर दी हैं.

क्या होता है परिसीमन?

बढ़ती जनसंख्या के आधार पर वक्त-वक्त पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं दोबारा निर्धारित करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहते हैं. परिसीमन का उद्देश्य होता है कि हर वर्ग के नागरिक को चुनाव में प्रतिनिधित्व का समान अवसर मिले. जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए पिछले चार दिनों से परिसीमन आयोग की टीम जम्मू-कश्मीर के दौरे पर थी. इस दौरान टीम ने 280 संगठनों से मुलाकात की और उनसे सुझाव लिए. राजनीतिक दलों के प्रतिनिधिमंडलों से भी मीटिंग की.

2011 की जनगणना के आधार पर होगा परिसीमन!

केंद्र सरकार की तरफ से तैयार किए गए जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में तय हुआ था कि 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन किया जाएगा. 2011 की जनगणना के मुताबिक जम्मू-कश्मीर की कुल आबादी 1 करोड़ 22 लाख है. इनमें से 68,88,000 कश्मीर में और 53,78,000 जम्मू में लोग रहते हैं. 2001 और 2011 के बीच कश्मीर में जनसंख्या 26 फीसदी बढ़ी है. जबकि जम्मू में यह आंकड़ा 21 प्रतिशत है. 

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परिसीमन का आधार हो मतदाताओं की संख्या!

परिसीमन में 2011 की जनगणना के आंकड़े, कश्मीर के पक्ष में जाते हैं. इन आंकड़ों पर जम्मू-कश्मीर के भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता आपत्ति जता रहे हैं. वहीं कांग्रेस बीजेपी की आपत्ति पर आपत्ति जता रही है. बीजेपी नेता खुलकर तो नहीं कह रहे लेकिन दबी जुबान से उनका कहना है कि परिसीमन का आधार जनसंख्या नहीं, मतदाताओं की संख्या होनी चाहिए.

इसकी वजह भी है. साल 2019 में संसद में पेश डेटा के मुताबिक जम्मू में वोटर्स की संख्या 37,33,000 वहीं कश्मीर में 40,10,000 मतदाता हैं. जम्मू और कश्मीर में अलग-अलग मतदाताओं की संख्या काफी कम अंतर है. लेकिन वोटर्स के अनुपात में विधानसभा सीटों का अंतर काफी ज्यादा है. कश्मीर में 46 और जम्मू में 37 सीटें हैं. यही वजह है कि जम्मू-कश्मीर में 1995 में हुए पिछले परिसीमन को बीजेपी फ्रॉड बता रही है लेकिन परिसीमन आयोग की भी अपनी सीमाएं हैं. 

क्या है राजनीतिक पार्टियों की राय?

बीजेपी परिसीमन चाहती है लेकिन प्रक्रिया से खुश नहीं है. नेशनल कॉन्फ्रेंस परिसीमन चाहती है लेकिन चुनाव के बाद. कांग्रेस कह रही है कि पहले राज्य का दर्जा मिले तब परिसीमन हो. वहीं ऐसा लगता है कि पीडीपी परिसीमन चाहती ही नहीं है. शायद यही वजह है कि पीडीपी ने परिसीमन आयोग के सदस्यों से मुलाकात की जहमत तक नहीं उठाई.

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370 हटाने के बाद से ही शुरू हो गई थी परिसीमन की तैयारी!

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म करने के बाद से ही केंद्र सरकार ने परिसीमन की प्रक्रिया को पूरा करने की तैयारी भी शुरु कर दी थी. मार्च 2020 में इसके लिए रिटायर्ड जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था. इस आयोग में जम्मू-कश्मीर के पांचों सांसद भी शामिल हैं जिनकी भूमिका सलाहकार के तौर पर है. इसी साल मार्च में आयोग का कार्यकाल एक साल और बढ़ाया गया था. अब परिसीमन आयोग का कार्यकाल साल 2022 में पूरा होगा.

अनुसूचित जनजातियों के लिए भी होंगी सीटें आरक्षित

नए परिसीमन के बाद अनुसूचित जनजातियों के लिए भी 11 सीटें आरक्षित की जाएंगी. अभी जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों के लिए एक भी सीट आरक्षित नहीं है. इसके अलावा परिसीमन प्रक्रिया में पाक अधिकृत कश्मीर के लिए खाली 24 सीटों पर गौर नहीं किया जाएगा क्योंकि ये परिसीमन आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं है.

अगर पारदर्शी तरीके से परिसीमन हुआ तो सात सीटों में से ज्यादातर जम्मू के खाते में जाने की संभावना नजर आ रही है. इसके पीछे तर्क ये है कि सीट बढ़ाने के लिए आबादी के साथ साथ भूभाग क्षेत्र की प्रकृति जैसे पैमानों को भी आधार बनाया जाएगा.

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क्या है घाटी में परिसीमन का इतिहास?

जम्मू-कश्मीर की लोकसभा सीटों का परिसीमन तो पूरे देश के साथ ही होता रहा है, लेकिन विधानसभा सीटों का परिसीमन अलग से होता था. इसकी वजह ये थी कि आर्टिकल 370 लागू होने के चलते राज्य की विधानसभा का परिसीमन, राज्य के संविधान के तहत तय होता था, जबकि लोकसभा सीटों के परिसीमन के लिए भारतीय संविधान ही लागू होता था.

जम्मू-कश्मीर में आजादी के बाद से अब तक तीन बार 1963, 1973 और 1995 में ही विधानसभा सीटों का परिसीमन हुआ था. आखिरी बार 1995 में जब परिसीमन हुआ था, तब 1981 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर किया गया था क्योंकि राज्य में 1991 में जनगणना ही नहीं हुई थी. फिर 2001 की जनगणना के बाद जम्मू-कश्मीर में कोई परिसीमन नहीं हुआ. यहां तक कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा से एक प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी, जिसमें परिसीमन पर 2026 तक के लिए रोक की बात थी.

परिसीमन के लिए भी बाधक था 370!

परिसीमन की प्रक्रिया में बाधा अनुच्छेद 370 था. अब 370 को खत्म हुए 2 साल हो गए. करीब 26 वर्षों बाद एक बार फिर जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया शुरु हुई है, जिसके बाद जम्मू-कश्मीर को दोबारा पूर्ण राज्य का दर्जा भी मिलेगा और विधानसभा चुनाव भी होंगे. बस आर्टिकल 370 नहीं लौटेगा. 370 को लेकर जम्मू-कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों की अपनी-अपनी राय है लेकिन परिसीमन सिर्फ राजनीतिक दलों की राय से नहीं होगा. उसमें जम्मू-कश्मीर के सामाजिक संगठनों से लेकर आम लोगों तक की राय और सुझावों को भी शामिल किया जाएगा.  
 

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