जम्मू-कश्मीर के पुर्नगठन के साथ ही आपातकाल का दंश झेल रही घाटी को निजात मिल गई है. जम्मू कश्मीर देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां 1975 से विधानसभा का कार्यकाल छह साल का चला आ रहा था. जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने के बाद अब विधानसभा का कार्यकाल देश के बाकी राज्यों की तरह पांच साल का होगा. इस तरह से आपातकाल की अंतिम निशानी छह साल की विधानसभा अब इतिहास का हिस्सा बनकर रह गई है.
बता दें कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लागू करने के बाद संविधान में 42वां संशोधन संसद और राज्य की विधानसभा का कार्यकाल छह साल का कर दिया था. शेख मोहम्मद अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे. हालांकि कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री बने हुए थे.
यही वजह थी कि शेख अब्दुल्ला ने इंदिरा गांधी के पद चिह्नों पर चलते हुए राज्य के विधानसभा का कार्यकाल छह साल कर दिया था. शेख अब्दुल्ला ने उस समय कहा था कि जम्मू-कश्मीर भी पूरे हिंदुस्तान के साथ चलेगा. वह हिंदुस्तान की मुख्यधारा में है, इसीलिए संविधान संशोधन के जरिए विधानसभा का कार्यकाल छह साल के लिए कर दिया गया है.
1977 में आपातकाल के हटने के बाद मुरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की सरकार ने इंदिरा गांधी के सारे फैसलों को पलट दिया. इसी के तहत मुरार जी ने भी संसद और विधानसभा का कार्यकाल को फिर पांच साल कर दिया, लेकिन जम्मू कश्मीर में कोई बदलाव नहीं किया. इसी का नतीजा था कि छह साल का कार्यकाल 44 साल से चला आ रहा था.
हालांकि पैंथर्स पार्टी ने हर्षदेव सिंह ने 1996 में आपातकाल की इस निशानी करने और विधानसभा का कार्यकाल पांच साल किए जाने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी. अब जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 इतिहास बन गई तो विधानसभा का छह साल वाला कार्यकाल भी हट गया है.