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कश्मीर की कहानीः भारत में विलय से 370 के खात्मे तक, जानें-कब-कब, क्या-क्या हुआ?

आजादी के 72 साल बाद जम्मू-कश्मीर की पहचान को बदलने के लिए इतिहास फिर गढ़ा गया और खत्म हुआ अनुच्छेद 370. यही है 'दास्तां-ए-कश्मीर: 1947-2021'

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जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजी का दौर ( गैटी)
जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजी का दौर ( गैटी)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • आजाद भारत में कश्मीर के इतिहास का पूरा कच्चा चिट्ठा
  • 370 के लगने और हटने की इनसाइड स्टोरी
  • पाक की नापाक साजिशें और घाटी में हुई हिंसा का विवरण

जम्मू-कश्मीर की कहानी सैकड़ों साल पुरानी है. इसका गौरवशाली इतिहास इसकी पहचान है. लेकिन 1947 के बाद उस गौरवशाली इतिहास पर आतंक की ऐसी लकीर खींच दी गई कि जम्मू-कश्मीर का स्वरूप हमेशा के लिए बदल गया. हक के लिए लड़ता कश्मीरी, सड़कों पर तैनात सुरक्षाबल और पाकिस्तान की नापाक साजिशें, घाटी की ये पहचान बन गई. आजादी के 72 साल बाद जम्मू-कश्मीर की उस पहचान को बदलने के लिए इतिहास फिर गढ़ा गया और खत्म हुआ अनुच्छेद 370. यही है 'कश्मीर-ए-दास्तान: 1947-2021'

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1947- 15 अगस्त को भारत एक स्वतंत्र देश बना. जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू कश्मीर के शासकों ने भारत के साथ विलय नहीं किया.  भारत ने जूनागढ़ में जनमत संग्रह करवाया, जिस वजह से वहां की जनता ने पाकिस्तान के बजाय हिंदुस्तान के साथ विलय करने का फैसला लिया. इस तरह से 9 नवंबर 1947 को जूनागढ़ भारत का अहम हिस्सा बना. वहीं सेना की कार्रवाई के बाद 17 सिंतबर, 1948 को हैदराबाद का भारत में विलय हो गया

1947 (A)- जम्मू-कश्मीर की तरफ से स्टैंड स्टिल एग्रीमेंट पर साइन किया गया. पाकिस्तान ने उस प्रस्ताव को स्वीकार किया, लेकिन भारत को मंजूर नहीं था. 

1947 (B)-  पाकिस्तान के कबायली लड़ाकों ने 24 अक्टूबर 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया. जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा को लेकर महाराजा हरि सिंह परेशान थे. उन्होंने भारत से मदद की गुहार लगाई. लेकिन तब तक क्योंकि जम्मू-कश्मीर का भारत संग विलय नहीं हुआ, ऐसे में गवर्नर-जनरल माउंटबेटन ने साफ कर दिया कि भारतीय सेना कश्मीर की मदद नहीं कर सकती. 

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1947 (C)- भारत सरकार की तरफ से राजा हरि सिंह को प्रस्ताव दिया गया कि वे जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय करें जिससे भारतीय सेना की मदद कश्मीर पहुंचाई जा सके. खतरे को देखते हुए राजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए और फिर 27 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया.

1948- पहली बार कश्मीर मुद्दा संयुक्त राष्ट्र पहुंचा. भारत की तरफ से विरोध किया गया कि पाकिस्तान ने कश्मीर के कुछ हिस्सों पर बलपूर्वक कब्जा जमा लिया है.

1948 (A)- जम्मू-कश्मीर में पहली बार अंतरिम सरकार का गठन हुआ. शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री घोषित कर दिया जाता है.

1948 (B)- 21 अप्रैल को यूएन का संकल्प सामने आया. संकल्प के तहत भारत और पाकिस्तान के सामने तीन बातें रखी गईं. पहली- सीजफायर, दूसरी- युद्धविराम, तीसरी- अन्य ( जनमत संग्रह की बात). संकल्प के तहत सबसे पहले सीजफायर लागू होना था, फिर युद्धविराम और सबसे आखिर में जनमत संग्रह पर बात.

1948 (C)- सवा साल के युद्ध के बाद 31 दिसंबर 1948 को सीजफायर लागू कर दिया गया. उस सीजफायर के बाद जम्मू-कश्मीर का दो तिहाई हिस्सा भारत के पास रहा, वहीं एक तिहाई हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा हुआ.

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1949-  जुलाई में शेख अब्दुल्ला, मिर्जा अफसल बेग, मसूदी और मोती राम बागड़ा को भारत की संविधान सभा का हिस्सा बनाया गया. अनुच्छेद 370 पर चर्चा शुरू हुई.

1949 (A)-  जम्मू-कश्मीर की सरकार ने भारत की संविधान सभा को अनुच्छेद 370 को लेकर एक ड्राफ्ट सौंपा. फिर करीब पांच महीने बाद 17 अक्टूबर, 1949 को अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान का हिस्सा बनाया गया.

1951- जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का आयोजन किया जाता है. सभा के सभी सदस्य शेख अब्दुल्ला के नेशनल कॉन्फ्रेंस के होते हैं.

1952- भारत और जम्मू-कश्मीर सरकार के बीच एक समझौता होता है, इसे 'दिल्ली एग्रीमेंट 1952' का नाम दिया जाता है. इसके मुताबिक अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा मिलेगा. वहीं जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री और राज्यपाल को सदरे रियासत का दर्जा दिया जाएगा.

1953- शेख अब्दुल्ला की सरकार गिर जाती है. बख्शी गुलाम मोहम्मद को नया प्रधानमंत्री बना दिया जाता है.

1954- राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई 1954 को एक आदेश पारित किया. आदेश के जरिए संविधान में अनुच्छेद 35 A जोड़ा गया. जम्मू-कश्मीर में स्थायी निवासियों को पारभाषित करने की जिम्मेदारी राज्य की विधानसभा को दी गई. इसके मुताबिक 14 मई 1954 के बाद से या फिर उससे 10 साल पहले तक अगर जम्मू-कश्मीर में कोई रहा हो और उसके पास वहां संपत्ति हो, तो उसे स्थायी नागरिक कहा जाएगा. फिर 1956 में जम्मू-कश्मीर का संविधान बना और स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया.

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1957- 26 जनवरी, 1957 को जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू हुआ. नवंबर 1956 में संविधान को लेकर काम पूरा हो गया था. इसके बाद अगले साल 1957 में इसे लागू कर दिया गया. इस वजह से संविधान सभा भंग हुई और विधानसभा ने इसकी जगह ली.

1962- भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ. एक महीने चले इस युद्ध के बाद चीन ने लद्दाख के अक्साई-चिन इलाके पर अपना कब्जा जमा लिया.

1965- मई के महीने में जम्मू-कश्मीर की राजनीति में बड़ा बदलाव हुआ. जम्मू-कश्मीर में प्रधानमंत्री और सदरे रियासत वाले दर्जे को खत्म कर दिया गया. 

1965 (A)- भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर फिर युद्ध छिड़ा. युद्ध की नींव जनवरी 1965 में पड़ी जब पाकिस्तान ने कच्छ के रण में ऑपरेशन डेजर्ट हॉक चलाया. 23 सिंतबर को युद्ध समाप्ति की घोषणा हुई.

1966- युद्ध के बाद दोनों देश के प्रधानमंत्री फिर शांति बहाल करने करने में लग जाते हैं. तब लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के वजीरे आजम अयूब खान के बीच 10 जनवरी 1966 को ताशकन्द समझौता होता है. वहीं दूसरी तरफ जनमत संग्रह की मांग को लेकर जम्मू-कश्मीर नेशनल लिबरेशन फ्रंट (JKLF) आवाज उठाने लगता है.

1971- तीन दिसंबर, 1971 को भारत और पाकिस्तान के बीच तीसरा युद्ध छिड़ा. 13 दिन चले युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी और नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ.

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1972- भारत से करारी शिकस्त झेलने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाक राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला एग्रीमेंट साइन किया जाता है. समझौते के तहत बातचीत के जरिए कश्मीर विवाद सुलझाया जाएगा और किसी भी तीसरे देश का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं होगा.

1974- कई सालों बाद शेख अब्दुल्ला की घाटी में वापसी होती है. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आग्रह पर शेख अब्दुल्ला द्वारा प्लेबिसाइट फ्रंट को भंग कर दिया जाता है.

1975- 24 फरवरी 1975 को शेख अबदुल्ला की तरफ से मिर्जा मोहम्मद अफजल बेग और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरफ से अधिकारी जी पार्थसारथी एक समझौते (Kashmir Accord) पर हस्ताक्षर करते हैं. तब इंदिरा गांधी ने कहा, 'समय पीछे नहीं जा सकता', मतलब कश्मीर भारत का अंभिन्न अंग है और जनमत संग्रह की कोई गुंजाइश नहीं.

1977- कई सालों बाद सत्ता में वापसी करने वाले शेख अब्दुल्ला की 1977 में सरकार गिर जाती है. कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेस से अपना समर्थन वापस ले लेती है. जून 1977 में जम्मू-कश्मीर में फिर चुनाव होते हैं और शेख अबदुल्ला सरकार बनाने में सफल रहते हैं. 

1982- 8 सिंतबर, 1982 को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला का निधन हो जाता है. फिर शेख के बेटे फारूक अब्दुल्ला कश्मीर की राजनीति में सक्रिय होते हैं और उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया जाता है. दो साल बाद 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी जाती है और राजीव गांधी पीएम बन जाते हैं.

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1987- जम्मू कश्मीर में चुनावी प्रक्रिया शुरू होती है और मुकाबला नेशनल कांफ्रेंस और अलगाववादी नेताओं के संगठन मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के बीच रहता है. चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस की जीत होती है और MUF के खाते में सिर्फ चार सीटें आती हैं. 

1987 (B)- MUF का आरोप रहता है कि चुनाव में धांधली की गई है और केंद्र द्वारा जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप किया गया. इसी के बाद घाटी में विद्रोह के सुर तेज होते हैं और सशस्त्र मिलिटेंसी सक्रिय हो जाती है.

1989- 8 दिसंबर को महबूबा मुफ्ती की बहन रुबैया सईद का अपहरण होता है. उस दौर में महबूबा के पिता मुफ़्ती मोहम्मद सईद देश के गृहमंत्री थे. अपहरण की जिम्मेदारी जम्मू–कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ने ली और मांग की कि उनके पांच साथियों को रिहा कर दिया जाए. बाद में सरकार को वो मांगे माननी पड़ी और तब जाकर रुबैया सईद को छोड़ा गया.

1990- घाटी में स्थिति बद से बदतर होने लगी. मिलिटेंसी इस कदर बढ़ गई कि पुलिस के लिए विद्रोहियों से पार पाना मुश्किल हो रहा था. फिर पहली बार कश्मीर में पांच जुलाई 1990 को AFSPA लगा दिया गया और कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी सेना को मिल गई.

1990 (A)- घाटी में AFSPA लगने के 14 दिन बाद ही जम्मू-कश्मीर में एक बड़ी घटना हुई. उसे कश्मीरी पंडितों के पलायन के रूप में जाना जाता है. बड़े स्तर पर हिंसा हुई और एक महीन के अंदर करीब साढ़ें तीन लाख पंडितों को घाटी छोड़ जाना पड़ा.

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1993- जम्मू कश्मीर में भड़की हिंसा के बीच 31 जुलाई 1993 को हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का जन्म हुआ. 26 समान विचार वाले संगठन साथ आए और उन्होंने मिलकर हुर्रियत कॉन्फ्रेंस बनाई. इनका मुख्य उदेश्य कश्मीर की आजादी थी.

1995- जम्मू-कश्मीर में जारी हिंसा में कुछ कमी आती है और प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सदन में बयान देते हैं कि अनुच्छेद 370 को खत्म नहीं किया जाएगा.

1996- जम्मू कश्मीर में लंबे समय बाद फिर चुनाव करवाए जाते हैं. उस चुनाव में फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस जीत दर्ज करती है और वे फिर मुख्यमंत्री बन जाते हैं.

1999- प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी  20 फरवरी 1999 को बस यात्रा के जरिए  पाकिस्तान दौरे पर जाते हैं. इसे लाहौर बस यात्रा के तौर पर याद किया जाता है. वहां पर उनकी मुलाकात पाक पीएम नवाज शरीफ से होती है और दोनों के बीच लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर होते हैं. घोषणापत्र में शांति स्थापित करने और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न ना होने पर जोर दिया जाता है.

1999 (A)- भारत और पाकिस्तान के बीच करगिल का युद्ध शुरू हुआ. 8 मई 1999 को पाकिस्तानी फौजियों और कश्मीरी आतंकियों को करगिल की चोटी पर देखा गया. 26 जुलाई को भारत ने पाकिस्तान पर जीत दर्ज की. युद्ध में पाक के तीन हजार के करीब सैनिक मारे गए.

1999 (B)- 24 दिसंबर 1999 को आतंकियों ने इंडियन एयरलाइंस के हवाई जहाज आईसी-814 को हाइजैक किया. फ्लाइट में 180 यात्री सवार थे. तब आतंकवादी 36 आतंकियों की रिहाई की मांग कर रहे थे. बाद में सरकार ने जैश-ए -मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद ज़रगर और शेख अहमद उमर सईद को रिहा किया.

2001- प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मई महीने में केसी पंत कमेटी का गठन किया. पूर्व रक्षा मंत्री केसी पंत को जिम्मेदारी दी गई कि वे घाटी के विभिन्न संगठनों से बातचीत करें. पंत कमेटी के जरिए सुझाव दिया गया कि कश्मीर में सुरक्षा बल को कम किया जाए और राज्य को ज्यादा स्वायत्तता मिले.

2001 (A)- 1 अक्टूबर को आतंकियों ने बड़े हमले को अंजाम दिया. श्रीनगर स्थित विधानसभा में फिदायीन हमला कर बड़ी तबाही मचाई गई. घटना में 11 सुरक्षा जवान शहीद हुए, वहीं 24 नागरिकों ने भी जान गंवाई. इसके बाद 13 दिसंबर, 2001 को भारत की संसद पर भी आतंकी हमला हुआ. हमले में 9 जवान शहीद और पांच आतंकियों को ढेर किया गया.

2002- वाजपेयी ने फिर शांति स्थापित करने के लिए तब के कानून मंत्री अरुण जेटली को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी. जम्मू-कश्मीर को कैसे ज्यादा अधिकार दिए जाएं, इस पहलू पर जेटली को काम करना था. वहीं उसी साल वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई. उस कमेटी को 2002 के विधानसभा चुनाव से पहले अलगाववादियों संग संवाद स्थापित करना था.

2002 (A)- जेठमलानी की कमेटी ने सुझाव दिया कि अलगाववादियों को चुनाव की तैयारी के लिए कुछ समय और दे दिया जाए, वहीं उस चुनाव को भी राज्यपाल की अध्यक्षता में करवाया जाए. केंद्र ने उन सुझावों को मानने से इनकार किया और फिर पीडीपी और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई.

2003- इसके बाद जम्मू-कश्मीर में शांति बहाल करने के लिए IAS अधिकारी एन एन वोहरा को बातचीत की जिम्मेदारी दी गई थी. उनके सुझाव पर ही 2004 में लाल कृष्ण आडवाणी ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से बातचीत की. लेकिन फिर एनडीए 2004 में चुनाव हार गई और ये प्रयास भी ज्यादा सफल नहीं रहा.

2004- लंबे समय बाद भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में कुछ सुधार हुआ और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाक राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के बीच मुलाकात हुई.

2005- PM मनमोहन सिंह ने कश्मीर के तमाम नेताओं संग बातचीत का सिलसिला जारी रखा. उन्होंने 5 सितंबर, 2005 को हुर्रियत कान्फ्रेंस के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की. मुलाकात के बाद हुर्रियत की तरफ से हिंसा को रोकने और बातचीत के जरिए विवादों को सुलझाने पर सहमति बनी.

2006- मनमोहन सिंह ने फरवरी में राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया. कश्मीर की तमाम राजनीतिक पार्टियों को न्योता दिया गया. कई मुद्दों पर चर्चा हुई लेकिन मतभेदों की वजह से कोई समाधान नहीं निकला.

2006 (A)- बातचीत के दौर के बीच 31 मई 2006 को आतंकियों ने श्रीनगर के बाहरी इलाके में हमला किया. उन्होंने गुजरात यात्रियों की बस पर ग्रेनेड अटैक किया. हमले में आठ यात्रियों की जान गई. बाद में उस समय के सीएम गुलाम नबी आजाद ने खुद पर्यटकों का पूरा इलाज कराया और उन्हें विशेष विमान से दिल्ली भेजा.

2008- अमरनाथ जमीन विवाद की वजह से दोनों घाटी और जम्मू में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू. अमरनाथ श्राइन बोर्ड को 100 एकड़ जमीन देने पर घाटी में बवाल हुआ. बाद में सरकार ने उस फैसले को वापस लिया, लेकिन फिर जम्मू में प्रदर्शन तेज हुआ.

2010- कश्मीरी नौजवान की मौत के बाद घाटी में फिर हिंसा का दौर शुरू. कई महीनों तक पत्थरबाजी और सुरक्षाबलों संग टकराव की स्थिति रही. कुल 112 लोग अपनी जान गंवाई.

2010 (A)- जम्मू-कश्मीर में हिंसक प्रदर्शन के बाद सभी पार्टियों के प्रतिनिधिमंडल ने घाटी का रुख किया. बाद में केंद्र द्वारा तीन सदस्य कमेटी का गठन हुआ. कमेटी में दिलीप पडगांवकर, एमएम अंसारी और राधा कुमार शामिल रहें. कमेटी ने सुझाव दिया कि जम्मू-कश्मीर को ज्यादा अधिकार दिए जाएं. केंद्र ने उसे खारिज कर दिया.

2011- जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला 1200 पत्थरबाजों को माफी देने का ऐलान करते हैं. उनके खिलाफ मामलों को वापस लिया जाता है. 

2013- जैश-ए-मोहम्‍मद का आतंकवादी मोहम्‍मद अफजल गुरु जो भारतीय संसद पर हमले का दोषी था, उसे 9 फरवरी को फांसी दे दी जाती है.

2014- पांच चरणों में जम्मू-कश्मीर का चुनाव संपन्न होता है. परिणाम में पीडीपी को 28, बीजेपी को 25, एनसी को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिलती हैं. 

2015- एक मार्च को कई दौर की बातचीत के बाद बीजेपी और पीडीपी मिलकर जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाते हैं. मुफ्ती मोहम्मद सईद सीएम तो बीजेपी की तरफ से निर्मल कुमार सिंह को उप मुख्यमंत्री बनाया जाता है.

2016- 7 जनवरी को पीडीपी प्रमुख और सीएम मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो जाता है. इसके बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती को जम्मू-कश्मीर का सीएम बनाया जाता है. वे राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री होती हैं.

2016 (A)- आठ जुलाई को सुरक्षाबलों द्वारा हिजबुल के कमांडर बुरहान वानी को ढेर कर दिया जाता है. घटना के बाद सात महीनों तक लगातार हिंसा का दौर चलता है. जम्मू-कश्मीर में लंबा कर्फ्यू लग जाता है. इस दौरान 84 लोग अपनी जान गंवाते हैं, वहीं दो चवान भी शहीद होते हैं.

2016 (B)- 18 सितंबर को जैश के पांच आतंकी उरी में स्थित भारतीय सेना के ब्रिगेड हेडक्वार्टर पर हमला कर देते हैं. हमले में 19 जवान शहीद होते हैं. घटना के 10 दिन बाद भारतीय सेना सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करती है. पीओके में तीन किलोमीटर अंदर जाकर कुल 38 आतंकियों को मारा जाता है.

2017- 11 जुलाई को आतंकियों ने कायराना हरकत करते हुए अमरनाथ यात्रियों की बस को निशाना बनाया. गोलीबारी में 7 यात्रियों की मौत हुई, वहीं 19 जख्मी हुए.

2017 (A)- अपने कार्यकाल के तीन साल बाद मोदी सरकार फिर बातचीत का रास्ता अपनाते हुए खुफिया ब्यूरो के पूर्व निदेशक दिनेश्वर शर्मा को राष्ट्रीय प्रतिनिधि नियुक्त कर देती है.

2018-  40 महीने तक पीडीपी संग सरकार चलाने के बाद बीजेपी 19 जून को गठबंधन तोड़ने का ऐलान करती है. पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या, कठुआ मामला, ऑपरेशन ऑलआउट जैसे तमाम मुद्दों पर रहा विवाद.

2018 (A)- बीजेपी-पीडीपी की सरकार गिरने के बाद सत्यपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बना दिया जाता है और वे 23 अगस्त को अपना पद संभाल लेते हैं.

2019- 14 फरवरी को जैश के आतंकी पुलवामा में सुरक्षाबलों पर कायराना हमला करते हैं. विस्फोटकों से लदे वाहन से सीआरपीएफ जवानों की बस को टक्कर लगने के बाद घटना होती है. हमले में 40 जवान शहीद हुए.

2019 (A)- पुलवामा हमले के ठीक 12 दिन बाद भारतीय वायुसेना ने बालाकोट स्ठित जैश कैंप पर एयरस्ट्राइक की. कुल 12 मिराज विमान पाकिस्तानी सीमा में दाखिल हुए और बालाकोट में बम बरसाए गए. कार्रवाई में सैकड़ों आतंकी मारे गए.

2019 (B)-  मई में बीजेपी लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत के साथ वापसी करती है. प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी दूसरी बार शपथ लेते हैं.

2019 (C)- NSA अजित डोभाल के जम्मू-कश्मीर दौरे के बाद 25 जुलाई को गृह मंत्रालय जम्मू-कश्मीर में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीआरपीएफ, बीएसएफ, एसएसबी और आईटीबीपी) के अतिरिक्त 10 हजार जवानों की तैनाती करता है.

2019 (D)- अगस्त 2 को 28 हजार अतिरिक्त सैनिक जम्मू-कश्मीर भेजे जाते हैं और अमरनाथ यात्रा को भी बीच में ही रोक दिया जाता है. राज्य में बड़े आतंकी हमले के इनपुट बताए जाते हैं. सभी यात्रियों को जल्द जम्मू-कश्मीर छोड़ने का निर्देश दिया जाता है.

2019 (E)- जम्मू-कश्मीर में हलचल तेजी हो जाती है. चार और पांच अगस्त की आधी रात को प्रशासन द्वारा पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती और नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला को नजरबंद कर दिया जाता है.

2019 (F)- पांच अगस्त को राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का ऐलान किया. वहीं जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांटने का फैसला हुआ. दोनों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया.

2020- अनुच्छेद 370 हटने के बाद केंद्र ने परिसीमन की प्रक्रिया को पूरा करने की तैयारी शुरू की. मार्च महीने में रिटायर्ड जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग का गठन किया गया. आयोग में जम्मू-कश्मीर के पांचों सांसद भी शामिल हुए.  

2020 (A)- 15 अक्टूबर को एनसी प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने आधिकारिक तौर पर पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकर डिक्लेयरेशन ( गुपकार) का ऐलान किया. अनुच्छेद 370 की बहाली मुख्य उदेश्य.

2020 (B)- 23 दिसंबर को जम्मू-कश्मीर जिला विकास परिषद ( डीडीसी) चुनाव के परिणाम घोषित किए जाते हैं. गुपकार गठबंधन 110 सीटें अपने नाम करता है. वहीं बीजेपी 75 सीटों पर जीत दर्ज कर सबसे बड़ी पार्टी बन जाती है.

2021- मार्च में केंद्र द्वारा परिसीमन आयोग का कार्यकाल एक साल और बढ़ाया जाता है. परिसीमन आयोग का कार्यकाल 2022 में पूरा होगा. 

2021 (A)- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 जून को जम्मू-कश्मीर को लेकर सर्वदलीय बैठक बुलाई. फारूक, महबूबा और गुलाम नबी जैसे तमाम बड़े नेता शामिल हुए. केंद्र का परिसीमन और विधानसभा चुनाव कराने पर जोर.

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