जम्मू-कश्मीर सरकार ने सूबे में अल्पसंख्यक आयोग के गठन पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में जवाब दिया. जिसमें सरकार की तरफ से कहा गया कि राज्य में आयोग के गठन को लेकर उनकी कोई योजना नहीं है.
दरअसल, जम्मू के रहने वाले एक वकील अंकुर शर्मा ने कोर्ट में जनहित याचिका लगाकर आयोग गठित करने की मांग रखी थी. याचिका में दलील दी गई है कि अल्पसंख्यकों के लिए अलग से आयोग न होने के चलते उन्हें लाभ नहीं मिल पाता. याचिका में ये भी कहा गया है कि यहां तक राज्य के अल्पसंख्यक हिंदू और सिखों के लिए मिलने वाली आर्थिक मदद भी बहुसंख्यक आबादी पर खर्च कर दी जाती है.
सरकार ने कोर्ट में क्या कहा
इसी याचिका पर महबूबा मुफ्ती सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को हलफनामा देकर आयोग के गठन से इनकार किया. सरकार ने दलील दी कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, 1992 के तहत जम्मू-कश्मीर सरकार सूबे में आयोग बनाने के लिए बाध्यकारी नहीं है. लेकिन राज्य सरकार इस मसले पर चर्चा करेगी और सूबे के अल्पसंख्यकों की सामाजिक और शैक्षिक स्तर को देखकर सही वक्त पर कोई निर्णय लेगी.
पीडीपी के साथ बीजेपी की गठबंधन सरकार ने हिंदू और सिखों के लिए आयोग गठन की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में ये भी कहा कि अल्पसंख्यकों के कल्याण मुख्यमंत्री समावेशी विकास कार्यक्रम चलाया जा रहा है.
इस मसले पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने कहा कि कोर्ट राज्य सरकार को अल्पसंख्यक आयोग गठित करने का आदेश नहीं दे सकता. कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मसले पर कदम उठाने के निर्देश दिए. जिस पर केंद्र सरकार ने जल्द ही अपना पक्ष रखने की बात कही.
याचिकाकर्ता ने 2011 की जनसंख्या के आधार पर कोर्ट को बताया कि जम्मू-कश्मीर में करीब 68.3 फीसदी मुस्लिम आबादी है. जबकि 28.4 फीसदी हिंदू, 1.9 फीसदी सिख, 0.9 फीसदी बुद्ध और 0.3 फीसदी ईसाई हैं.