scorecardresearch
 

Explainer: परिसीमन का क्या मतलब होता है, चुनाव से पहले जम्मू-कश्मीर में क्यों जरूरी?

जम्मू-कश्मीर में अगर चुनाव होना है तो उसके लिए 'परिसीमन प्रक्रिया' का जल्द पूरा होना और ज्यादा जरूरी है. परिसमीन का अर्थ क्या होता है, ये सवाल कई लोगों के मन में है.

Advertisement
X
जम्मू कश्मीर में चुनाव से पहले परिसीमन प्रक्रिया पर जोर (पीटीआई)
जम्मू कश्मीर में चुनाव से पहले परिसीमन प्रक्रिया पर जोर (पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • परिसीमन प्रक्रिया का क्या मतलब होता है?
  • जम्मू-कश्मीर में इस प्रक्रिया के बाद क्या बदलेगा?
  • परिसीमन के राजनीतिक मायने क्या हैं?

जम्मू कश्मीर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 जून को एक अहम बैठक की थी. उस बैठक में साफ कहा गया कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए चुनाव का होना जरूरी है, और अगर चुनाव होना है तो उसके लिए 'परिसीमन प्रक्रिया' का जल्द पूरा होना और ज्यादा जरूरी है. परिसमीन का अर्थ क्या होता है, ये सवाल कई लोगों के मन में है. आसान भाषा में समझिए परिसमीन का मतलब क्या है और जम्मू-कश्मीर में इसको लेकर सियासत क्यों गरमाई है.

Advertisement

आसान भाषा में समझिए परिसीमन का अर्थ

हमारे लोकतंत्र में आबादी का सही प्रतिनिधित्व हो, सभी को समान अवसर मिले, इस पर हमेशा जोर दिया जाता है. परिसीमन प्रक्रिया का आधार भी यही होता है. इसके तहत आबादी का सही प्रतिनिधित्व हो सके, इसलिए लोकसभा अथवा विधानसभा सीटों के क्षेत्र को दोबारा से परिभाषित या उनका पुनर्निधारण किया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया के तीन मुख्य उदेश्य हैं-

1. चुनावी प्रक्रिया को ज्यादा लोकतांत्रिक बनाने के लिए परिसीमन जरूरी होता है. हर राज्य में समय के साथ जनसंख्या में बदलाव होते हैं, ऐसे में बढ़ती जनसंख्या के बाद भी सभी का समान प्रतिनिधित्व हो सके, इसलिए निर्वाचन क्षेत्र का पुनर्निधारण होता है.

2. बढ़ती जनसंख्या के मुताबिक निर्वाचन क्षेत्रों का सही तरीके से विभाजन हो सके, ये भी परिसीमन प्रक्रिया का अहम हिस्सा है. इसका उद्देश्य भी यही है कि हर वर्ग के नागरिक को प्रतिनिधित्व का समान अवसर मिले.

Advertisement

3. चुनाव के दौरान 'आरक्षित सीटों' की बात कई बार की जाती है. जब भी परिसीमन किया जाता है, तब अनुसूचित वर्ग के हितों को ध्यान में रखने के लिए आरक्षित सीटों का भी निर्धारण करना होता है. 

अब परिसीमन का अर्थ भी समझ आ गया है और इसके उदेश्य भी साफ हो गए हैं, अब सवाल आता है कि किसके द्वारा इस प्रकिया को पूरा किया जाता है? कौन परिसीमन प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार होता है?

देश में परिसीमन का काम 'परिसीमन आयोग' या कह लीजिए 'सीमा आयोग' के द्वारा किया जाता है. अब तक पांच बार देश में परिसीमन प्रक्रिया होती दिखी है. साल 1952, 1963 ,1973 और 2002 में परिसीमन प्रक्रिया हुई थी. अब पांचवी बार फिर परिसीमन आयोग का गठन किया गया है. इस बार जम्मू-कश्मीर और 4 पूर्वोत्तर राज्यों में इस प्रक्रिया को संपन्न होना है. 2020 में ही इस पांचवे आयोग का गठन कर दिया गया था.

अब वैसे तो परिसीमन की प्रक्रिया काफी आम रहती है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में इसको लेकर बवाल है. घाटी के कई स्थानीय नेता परिसीमन का विरोध कर रहे हैं. वे इस मुद्दे पर भारत सरकार से सहमत नजर नहीं आ रहे हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपनी तरफ से साफ कर दिया है कि अभी जम्मू कश्मीर में परिसीमन की कोई जरूरत नहीं है.

Advertisement

J-K में परिसीमन प्रक्रिया के बाद क्या बदलेगा?

यहां पर जम्मू-कश्मीर और परिसीमन को राजनीतिक दृष्टि से समझना काफी जरूरी हो जाता है. कुछ राजनीतिक दलों के द्वारा परिसीमन का विरोध इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि ऐसा होते ही जम्मू-कश्मीर में सियासी समीकरण हमेशा के लिए बदलने जा रहे हैं. इसे इस तरह से समझा जा सकता है- पुनर्गठन अधिनियम लागू होने से पहले तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 111 सीटें थीं. इसमें कश्मीर के खाते में 46 सीटें, जम्मू के खाते में 37 और लद्दाख के खाते में 4 सीटें रहती थीं. वहीं पाक अधिकृत कश्मीर की 24 सीटों को भी इसी में गिना जाता था. अब वर्तमान परिस्थिति में लद्दाख की चार सीटें समाप्त हो चुकी हैं और जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 107 सीटें रह गई हैं.

क्लिक करें- महामंथन के बाद गुलाम नबी आजाद बोले- पीएम मोदी के सामने हमने रखीं पांच मांगें 

घाटी के नेता इसका विरोध क्यों कर रहे?

अब कहा ये जा रहा है कि इस परिसीमन प्रक्रिया की वजह से कुल 7 सीटें और बढ़ाई जा सकती हैं. जानने वाली बात ये है कि वो सात सीटें जम्मू में बढ़ सकती हैं, ऐसे में कश्मीर में तो 46 सीटें ही रहने वाली हैं, लेकिन जम्मू में ये आंकड़ा 37 से बढ़कर 44 हो जाएगा. अब राजनीतिक लिहाज से ये एक तरफ बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है तो वहीं पीडीपी और एनसी जैसी स्थानीय पार्टियों के लिए नई चुनौती खड़ी कर सकता है. ऐसा देखा गया है कि जम्मू में बीजेपी ने खुद को मजबूत कर रखा है, वहीं घाटी में पीडीपी और एनसी की अच्छी पकड़ है. अब तक के चुनावों में ऐसा देखा गया था कि घाटी में बेहतरीन प्रदर्शन कर भी जम्मू-कश्मीर सरकार बन जाती थी, अकेले जम्मू का योगदान कम रहता था. लेकिन अगर ये सात सीटें जम्मू के साथ जुड़ जाती हैं, तो इससे राजनीतिक समीकरण बदलते दिख सकते हैं. इसी  बात की चिंता स्थानीय पार्टियों को है और परिसीमन का विरोध भी किया जा रहा है.

Advertisement

Advertisement
Advertisement