पूरा उत्तर भारत ठंड से कांप रहा है लेकिन पहाड़ों पर बर्फबारी गायब है. अमूमन ये कहा जाता था कि पहाड़ों पर बर्फबारी हो रही है, जिसके चलते ठंडी हवाएं मैदानी इलाकों का तापमान कम कर रही हैं लेकिन इस बार न बर्फबारी है न बारिश लेकिन ठंड ने आफत मचा रखी है. पहाड़ी इलाके हों या मैदानी इलाके हर जगह ठिठुरन से हाल बेहाल है.
देश के ऊपरी हिस्से यानी कश्मीर को चिल्लई कलां का मौसम सख्त सर्दी के साथ आफत की बर्फबारी के लिए भी जाना जाता है. लेकिन चिल्लई कलां के 40 दिनों में से आधे से ज्यादा वक्त गुजर चुका है पर बर्फबारी का कोई नाम नहीं है. तो क्या इस बार चिल्लई कलां बिना बर्फबारी के गुजरने वाला है?
कब होगी बर्फबारी?
इस पर मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली एजेंसी, स्काईमेट का कहना है कि अगले हफ्ते मौसम की स्थिति में बदलाव की संभावना है. लेकिन अभी भविष्यवाणी करना थोड़ी जल्दबाजी होगी. हालांकि, उत्तर भारत के मैदानी और पहाड़ी दोनों इलाकों में बहुप्रतीक्षित मौसम गतिविधि के लिए परिस्थितियां अनुकूल होती दिख रही हैं. इस हफ्ते के आखिर से पहले अधिक सटीक भविष्यवाणी होगी.
बर्फबारी न होने से पानी का संकट
बर्फ नहीं गिरने से कश्मीर की प्रमुख नदियां और बारहमासी जलधाराएं सूखने के कगार पर हैं. झेलम नदी और उसकी सहायक नदियां सबसे निचले स्तर पर हैं, जिससे चिंता बढ़ गई है. चिल्लई कलां बर्फबारी की समय है जो घाटी के ग्लेशियरों में वृद्धि करती है, जिससे जलाशयों में को दोबारा पानी भरा जाता है.
बता दें कि चिल्लई कलां हर साल 21 दिसंबर से 29 जनवरी तक कश्मीर में सबसे कठोर सर्दियों वाले दिन होते हैं. ये 40 दिनों की सबसे कठोर सर्दियों की अवधि है. इस दौरान शीत लहर चलती है और तापमान इतने नीचे चला जाता है कि डल झील सहित जल निकाय जम जाते हैं. हर तरह बर्फ ही बर्फ दिखाई देती है.