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बड़ी बेंच को भेजा जाए 370 हटाने का केस? सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए हुए पांच महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है लेकिन फिर भी इस मसले पर कानून लड़ाई जारी है. देश की सबसे बड़ी अदालत में केंद्र सरकार के इस फैसले को चुनौती दी गई है जिसपर तीन दिन तक सुनवाई हुई. यह मामला बड़ी बैच को भेजे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुरक्षित रख लिया है.

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सुप्रीम कोर्ट (PTI फोटो)
सुप्रीम कोर्ट (PTI फोटो)

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  • सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 हटाने पर सुनवाई
  • बड़ी बेंच में केस भेजने पर फैसला सुरक्षित
  • अटॉर्नी जनरन ने रेफरेंडम पर रखा सरकार का पक्ष

सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को लगातार तीसरे दिन भी जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मामले पर सुनवाई की. सभी पक्षों की दलील के बाद कोर्ट ने मामले को बड़ी बेंच में भेजे जाने पर फैसला सुरक्षित रखा है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि हमने तीन दिनों तक इस केस पर सुनवाई की है और अब हमें इस मामले को कहां भेजना है, इस बारे में विचार करना है.

इससे पहले कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने जनमत संग्रह पर दलीलें पेश करते हुए कहा कि अलगाववादी वहां जनमत संग्रह का मुद्दा उठाते आए हैं क्योंकि वह जम्मू कश्मीर को अलग संप्रभु राज्य बनाना चाहते हैं. वेणुगोपाल ने कहा कि अलगाववादी अपना अलग राज्य चाहते हैं, ऐसे में उनकी बात सही है, यह कहना ठीक नहीं है.

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रेफरेंडम कोई समाधान नहीं

वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि महाराजा ने भारत की मदद इसलिए मांगी थी क्योंकि वहां विद्रोही घुस चुके थे. वहां पर आपराधिक घटनाएं हुईं और आंकड़े बताते हैं कि अलगाववादियों को पाकिस्तान से ट्रेनिंग दी गई ताकि यहां बर्बादी की जा सके. वेणुगोपाल ने कहा कि जनमत संग्रह कोई भी स्थाई समाधान नहीं था.

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कश्मीर पर बहस के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में एक-एक कर ऐतिहासिक घटनाक्रम का ब्यौरा दिया. साथ ही कश्मीर का भारत में विलय और जम्मू कश्मीर संविधान सभा के गठन के बारे में विस्तार से बताया. सरकार की ओर से इस मामले को सात जजों की बेंच के पास भेजे जाने को लेकर जवाब दिया जा रहा है. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि पिछले फैसले के साथ कोई भी विवाद नहीं है.

वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि पहले सरकार बताए कि किस कानूनी प्रावधान के तहत जम्मू कश्मीर विधानसभा के अधिकार छीने गए. उन्होंने कहा कि ऐसी क्या इमरजेंसी थी जो 370 हटाने से पहले राज्य विधानसभा को भरोसे में नहीं लिया गया, क्या आप संविधान को बर्बाद करना चाहते हैं?

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धवन ने आगे अपनी दलीलें पेश करते हुए कहा कि राष्ट्रपति के अधिकार पर भी विधानसभा की सहमति होनी चाहिए और यह विधानसभा भंग करने से पहले होना चाहिए था. उन्होंने कहा कि सरकार कहती है कि कश्मीर जाने में समस्या है और आप इसी वजह से वहां राष्ट्रपति शासन लागू कर देते हैं. फिर आप कहते हैं कि सिर्फ कुछ इलाकों में दिक्कत हैं, आपने दिखा दिया कि वहां संवैधानिक व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है.

बीते दिन SC में क्या हुआ?

इस मामले पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को कई वरिष्ठ वकीलों ने केस बड़ी बेंच को सौंपने की मांग की थी, हालांकि अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मामले को पांच से अधिक जजों की संविधान पीठ में नहीं भेजे जाने की वकालत की. सुप्रीम कोर्ट में पूरे मामले की सुनवाई जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ कर रही है, जिसमें जस्टिस एसके कौल, जस्टिस आर सुभाष रेड्‌डी, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं.

केस में याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई थी कि राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को रद्द करने की अधिसूचना जारी करने की कोई शक्ति तब तक नहीं है जब तक कि वहां की सरकार सदन में प्रस्ताव पारित ना कर दे.

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