कश्मीर समस्या पर बातचीत के लिए एक तरफ जहां केंद्र सरकार ने वार्ताकार नियुक्त किया है, वहीं दूसरी तरफ अलगाववादी नेता अड़ियल रुख दिखा रहे हैं. मंगलवार को कश्मीरी अलगाववादी नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार की ओर से नियुक्त वार्ताकार से वे लोग किसी भी तरह की बातचीत नहीं करेंगे.
अलगाववादी नेताओं का कहना है कि वार्ताकार की नियुक्ति केंद्र सरकार की 'एक नई रणनीति' है. इसलिए वो बातचीत नहीं करेंगे.
अलगाववादी नेताओं के ग्रुप संयुक्त प्रतिरोध नेतृत्व (ज्वाइंट रेजिस्टेंस लीडरशीप) ने साफ तौर पर वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा से बात करने के लिए इनकार किया है. जेआरएल नेता सैयद अली गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और मोहम्मद यासीन मलिक ने इस संबंध में साझा बयान जारी किया है.
अलगाववादी नेताओं ने अपने बयान में कहा, 'इस तथाकथित वार्ता प्रक्रिया का हिस्सा बनना किसी भी कश्मीरी के लिए एक निर्रथक पहल होगी. क्योंकि भारत सरकार आजादी से प्यार करने वाले कश्मीरी लोगों की उम्मीदों को कुचलने के सैन्य प्रयास में विफल रहने पर बातचीत करने की नई रणनीति अपना रही है'.
उन्होंने कहा कि 'वार्ता पर हमारे पक्ष की बुनियादी स्वीकृति की जरूरत है, जिसके अंतर्गत यह स्वीकार करना है कि यहां विवाद है और इसे सुलझाने की जरूरत है'.
हालांकि, अलगाववादियों ने घाटी में संघर्ष समाप्त करने के लिए सिद्धांतों के तहत गंभीर वार्ता का समर्थन करने पर जरूर हामी भरी. उन्होंने कहा कि वे हमेशा इसके समर्थन में रहे हैं.
हाल ही में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कश्मीर समस्या पर बातचीत के लिए वार्ताकार के नाम का ऐलान किया था. वार्ताकार के रूप में भारत सरकार ने पूर्व आईबी चीफ दिनेश्वर शर्मा को नियुक्त किया है. राजनाथ सिंह ने कहा था कि घाटी में संघर्ष को जड़ से खत्म करने के लिए दिनेश्वर शर्मा को हर किसी से बात करने की आजादी होगी.