जम्मू-कश्मीर के नए मुख्यमंत्री ने बताया कि कैसे काम करेगा पीडीपी-बीजेपी गठबंधन और क्या कर दिखाना चाहती है गठबंधन सरकार. कुछ अंश:
बीजेपी के साथ गठबंधन मुकम्मल करने में दो माह क्यों लग गए?
बीजेपी जम्मू से 25 सीटें जीती है. यह महत्वपूर्ण है कि जनादेश का सम्मान किया जाए और ऐसी सरकार बनाई जाए, जो तीनों क्षेत्रों- कश्मीर, जम्मू और लद्दाख के हितों को ध्यान में रखती हो. यह गठबंधन कश्मीर के राजनैतिक इतिहास में बदलाव की मिसाल कायम कर सकता है और क्षेत्रीय तनाव कम कर सकता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी, पीडीपी-बीजेपी गठबंधन हमारी विविधता का एक संदेश है.
विवादास्पद मुद्दे क्या-क्या थे?
पीडीपी इस बात का लिखित आश्वासन चाहती थी कि जम्मू-कश्मीर की विशेष संवैधानिक स्थिति के साथ छेड़छाड़ नहीं की जाएगी. दूसरा मुद्दा अफस्पा का था. यह खराब कानून हमारे देश की खराब छवि पेश करता है. इसके अलावा 1960 की सिंधु जल संधि थी, क्योंकि इसकी वजह से कश्मीरी लोग पीड़ित हैं.
कश्मीर में ज्यादातर लोग बीजेपी-पीडीपी गठजोड़ को 'नापाक' मानते हैं. आप ऐसी आशंकाओं को कैसे दूर करेंगे, खासकर इस धारणा के साथ कि बीजेपी का रिमोट कंट्रोल हिंदू अतिवादी आरएसएस के पास है?
नरेंद्र मोदी को भारत के लोगों ने प्रधानमंत्री चुना. बीजेपी के पास देशव्यापी जनादेश है और उसे देश की विविधता का सम्मान करना ही होगा. यह गठबंधन जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में शांति और विकास का एक नया दौर शुरू कर सकता है.
आप क्या मानते हैं कि मोदी पर 2002 के गुजरात दंगों का दाग होने के बावजूद मोदी और वाजपेयी की तुलना की जा सकती है?
प्रधानमंत्री की हैसियत से मोदी को सभी पक्षों से बात करनी होगी. जम्मू-कश्मीर ही भारत का एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य है, बीजेपी चाहेगी कि कश्मीरियों का दिल जीता जाए.
अफस्पा हो या न हो, कश्मीर में मानव अधिकारों का उल्लंघन बहुत ज्यादा है. आप इस बारे में क्या कहेंगे?
हमें अमन का माहौल बनाना होगा और सुरक्षा अधिकारियों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह बनाना होगा. मुख्यमंत्री यूनिफाइड कमान का मुखिया होता है, लिहाजा यह मेरा कर्तव्य है कि हर किसी को जवाबदेह बनाऊं.
आपकी पार्टी ने कश्मीरियों को सेल्फ रूल का सपना दिखाया, लेकिन बीजेपी के साथ साझेदारी कर ली, जबकि लोगों की, हुर्रियत की और मुखालफत कर रही अन्य ताकतों की राजनैतिक आकांक्षाएं बड़ी हैं.
मैं सरहदों को नरम बनाने, दोनों कश्मीर के बीच व्यापार और यात्रा, साझा बाजार, कश्मीर के दो हिस्सों के बीच किसी पासपोर्ट की जरूरत न होने वगैरह के बारे में बात करता हूं- ये सभी वे प्रक्रियाएं हैं जिनका नतीजा सेल्फ रूल में निकलता है. धीरज रखिए. मेरे पास मेरा अपना नजरिया है, इसमें समय लगेगा. हुर्रियत एक नजरिए का प्रतिनिधित्व करती है और कोई वजह नहीं कि हमें उनके साथ बातचीत क्यों नहीं करनी चाहिए. जब एक आतंकवादी मारा जाता है, सैकड़ों लोग उसके अंतिम संस्कार में भाग लेते हैं; आपको लोगों की अलगाव की भावना को संभालना होगा.
गौहर गिलानी कश्मीर स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं.