कट्टरपंथी अलगाववादी नेता मसरत आलम की रिहाई को लेकर केंद्र सकते में है. गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार से मसरत आलम की रिहाई पर रिपोर्ट मांगी है. आपको बता दें कि मसरत आलम को शनिवार को राज्य सरकार ने रिहा कर दिया था. वो बारामूला जेल में बंद था.
रिहाई से बीजेपी लाल पीली, हुई विधायकों की बैठक
सप्ताह भर पुरानी जम्मू कश्मीर सरकार में बीजेपी को दूसरा सदमा लगा है, पहला शपथ ग्रहण समारोह में शब्दों से लगा था, दूसरा उसकी तामील करने से लगा है, जिन अलगाववादियों को मुफ्ती ने शुक्रिया कहा था, उनमें से एक और दस लाख का इनामी अलगाववादी रिहा कर दिया गया. बीजेपी लाल पीली हुई. बैठक बुलाई गई, सभी विधायक हाजिर हुए और बैठक के बाद पार्टी ने कहा कि मुफ्ती सरकार के इस कदम से वो कोई इत्तेफाक नहीं रखती.
अब पार्टी क्या करे, उसे तो कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का एजेंडा भी चलाना है और अपनी केन्द्र की सरकार को सवालों से दूर भी रखना है लेकिन सवालों का उठना तो लाजमी है. विरोधियों ने मोर्चा खोल दिया है और सड़क पर उतर गए हैं. कांग्रेस से लेकर पैंथर्स पार्टी तक ने पूछा कि कश्मीर में क्या चल रहा है, ये कौन सा राष्ट्रवाद है, किसकी सरकार है?
रिहा कर एहसान नहीं कियाः मसरत आलम
उधर, जो मसरत आलाम रिहा हुआ है वो सीना ठोंक कर कह रहा है कि सरकार ने कोई एहसान नहीं किया. पहले छोटी जेल में बंद था, अब बड़ी जेल में आ गया है. जम्मू कश्मीर की जनता ये हालात बदलेगी.
पीडीपी ने गठबंधन और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम को पलीता लगा दिय़ा है. पार्टी कह चुकी है कि उसके लिए गठबंधन धर्म निभाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है अपने किए वादों को पूरा करना.
नरेंद्र मोदी और उनके राष्ट्रवाद पर उठ रहे हैं सवाल
मसरत आलम की रिहाई पर बीजेपी की खिंचाई हो रही है. निशाने पर नरेन्द्र मोदी और उनका राष्ट्रवाद है. बीजेपी बार-बार कह रही है कि इस फैसले से उनके कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का एजेंडा प्रभावित नहीं होगा लेकिन मुफ्ती सरकार उसे मुफ्त में टेंशन दे रही है. दोनों के हित अलग हैं, वोटबैंक अलग है, बीच में ये समझौते की सरकार है, जिसकी सेहत पर सवाल लगातार उठने लगे हैं.