जम्मू-कश्मीर में आतंक और अलगाववाद के बीच अब भी अटल बिहारी वाजपेयी की नीतियों का जिक्र तमाम मतभेदों के बीच सियासी समभाव का संदेश देता है, जिसका जिक्र उनके विरोधी नेता भी बार-बार करते हैं.
दरअसल, सत्ता में आने के बाद पीएम मोदी ने भी कश्मीर को लेकर एक खास की तरह की रणनीति अपनाई, जिसमें आम जनता के लिए विकास और आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई पर जोर दिया जाता रहा है.
आतंक और आतंक को समर्थन देने वालों पर सख्ती के फॉर्मूला शायद उनकी सहयोगी पार्टी को ही रास नहीं आया. इसलिए पिछले दिनों पीएम मोदी से मुलाकात के बाद भी महबूबा मुफ्ती को वाजपेयी की नीतियां ही याद आ रही थी. और अब गठबंधन टूटने के बाद भी महबूबा मुफ्ती की दलील यही है कि सख्ती से समस्याओं का हल नहीं हो सकता.
घाटी में अमन चैन की बहाली के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने हुर्रियत नेताओं से बातचीत की थी, उनका मानना था कि इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत की भावना के साथ अमन और विकास के लिए काम करना चाहिए.
ऐसा नहीं है कि उस वक्त पाकिस्तान की तरफ से उकसाने वाली कार्रवाई नहीं हो रही थी या फिर आतंकी सक्रिय नहीं थे. लेकिन वाजपेयी जी का मानना था कि चाहे हालात कैसे भी हों, बातचीत की प्रक्रिया रुकनी नहीं चाहिए. वाजपेयी पाकिस्तान के साथ भी संवाद जारी रखने के पक्ष में थे लेकिन इस बातचीत में किसी तीसरे पक्ष का दखल नहीं चाहते थे.
वाजपेयी की उदारवादी सोच का समर्थन करते हुए महबूबा मुफ्ती पत्थरबाजों को माफी देने और एकतरफा सीजफायर जैसे फैसलों की वकालत करती हैं. लेकिन मोदी सरकार आतंक को लेकर किसी तरह का समझौता नहीं चाहती. शायद इसलिए महबूबा मुफ्ती बार-बार वाजपेयी की नीतियों का जिक्र करती हैं.