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भूकंप से फिर हिला हिमालय, सहमा हिंदुस्तान!

फिर हिला हिमालय. फिर कांपी कश्मीर की धरती. 5 सितंबर की रात जम्मू कश्मीर के डोडा और किश्तवाड़ में ऐसा झटका आया कि लोग अपने घरों से दहशत में निकल भागे. सितंबर में किश्तवाड़ को कुदरत का ये दूसरा झटका लगा है. तो क्या इसे कुदरत का अल्टीमेटम माना जाए

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फिर हिला हिमालय. फिर कांपी कश्मीर की धरती. 5 सितंबर की रात जम्मू कश्मीर के डोडा और किश्तवाड़ में ऐसा झटका आया कि लोग अपने घरों से दहशत में निकल भागे. सितंबर में किश्तवाड़ को कुदरत का ये दूसरा झटका लगा है. तो क्या इसे कुदरत का अल्टीमेटम माना जाए

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हिमालय में हो रही लगातार हलचल से वाकई डरने लगे हैं लोग. भूगर्भीय कंपन ने फिर से खड़ा कर दिया है एक बड़ा सवाल. क्या बार बार मिल रहे झटके भविष्य में आने वाले किसी बड़े विनाशकारी भूकंप की चेतावनी हैं. ताजा मामले में जम्मू कश्मीर के डोडा और किश्तवाड़ जिले में 5 सितंबर की रात 11.41 पर धरती ऐसी हिली कि लोगबाग दहशत में अपने अपने घरों से बाहर निकल पड़े.
 
रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 4.5 मापी गई. भूकंप का केंद्र किश्तवाड़ में धरती में 10 किलोमीटर नीचे था. हालांकि अभी तक इलाके में जानमाल की हानि की कोई खबर नहीं आई है लेकिन लोग बुरी तरह से डरे हुए हैं. अगस्त से लेकर अबतक किश्तवाड़ में ये आठवां भूकंप है. अकेले अगस्त महीने में ही कश्मीर का किश्तवाड़ 6 बार कांप चुका है. जम्मू कश्मीर ही नहीं बल्कि पास के उत्तराखंड के उत्तराकाशी जिले में भी 6 सितंबर की सुबह 3.5 पैमाने का भूकंप रिकॉर्ड किया गया. यानी उत्तर भारत में हिमायल का एक बड़ा इलाका लगातार कांप रहा है.

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हिमालय के पहाड़ों में हो रही हलचल पूरे देश में लोगों की धड़कनें बढ़ा रही है क्योंकि भारत का ये हिस्सा भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील है. उत्तर भारत और पूर्वोत्तर भारत का ज़्यादातर हिस्सा भूकंप के मामले में काफी खतरनाक माना जाता है और यहां भूकंप आने की वजह हिमालय में चल रही भूगर्भीय हलचल है.

प्लेट टेक्टॉनिक थ्योरी के मुताबिक हिमालय के क्षेत्र में भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के बीच टकराव चल रहा है. भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे घुस रही है और इस वजह से इस इलाके में भूकंप आते रहते हैं. हर साल अमूमन 40 से 50 मिलीमीटर यूरेशियन प्लेट के नीचे घुस जाती है, और यही वजह है कि हिमालय भूकंप के लिहाज़ से दुनियाभर के सबसे सक्रिय इलाकों में से एक है.

बार बार लगातार. जी हां, शायद ये चेतावनी है भविष्य में आने वाले एक बड़े खतरे की. हालांकि वैज्ञानिक इस कुदरती आपदा से निपटने के लिए दिनरात कोशिश कर रहे हैं लेकिन प्रकृति अपने पर आ जाए तो फिर किसकी क्या बिसात.

भूगर्भ वैज्ञानिकों की मानें तो कश्मीर यूं ही बार बार नहीं कांप रहा है. भूविज्ञान में एक ऐसी थ्योरी सामने आ रही है जो दहशत की वजह बन रही है. माना जाता है कि 100 साल में हर इलाके में एक बार विनाशकारी भूकंप जरूर आता है. और आशंका है कि इस बार बारी कश्मीर की भी हो सकती है.

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भूकंप... एक ऐसा शब्द जिसे सुनकर अच्छे अच्छों की बोलती बंद हो जाती है. कुदरत का एक ऐसा भयावह मिजाज जिसे देखने और जिससे मिलने की इच्छा दुनिया के किसी भी शख्स को नहीं होती है लेकिन हिंदुस्तान खासकर जम्मू कश्मीर के लोगों को पिछले कुछ महीनों में बार बार प्रकृति के इस रुप से सामना करना पड़ रहा है.

भूवैज्ञानिकों की माने तो हिमालय नतीजा है धरती की दो बड़ी टेक्टॉनिक प्लेटों के बीच हो रही टक्कर का. तकरीबन पांच करोड़ साल पहले टेक्टॉनिक प्लोंटों के बीच शुरू हुई टक्कर आज भी जारी है. यही वजह है कि हिमालय में बड़े भूकंप आना कोई नई बात नहीं है. लेकिन एक ऐसी थ्योरी सामने आ रही है जो दहशत की वजह बन रही है. वो थ्योरी है सिस्मिक गैप थ्योरी. इस थ्योरी के मुताबिक जिन इलाकों में पिछले 100 साल से बड़े भूकंप नहीं आएं हैं वहां विनाशकारी भूकंप की आशंका लगातार बनी हुई है. जम्मू कश्मीर का इलाका भी भूगर्भ के इसी थ्योरी का हिस्सा है. हिमालय में 1905 में हिमाचल के कांगड़ा में 7.5 तीव्रता का खतरनाक भूकंप आया था जिसमे हजारों लोगों की मौत हुई थी. पिछले सालों में आए बड़े और छोटे भूकंपों का अध्ययन करने के बाद भूवैज्ञानिक इस नतीजे पर सहमत हैं कि हिमालय में एक बड़ा भूकंप कभी भी आ सकता है.

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जानकारों की माने तो बड़े भूकंप यानी 8 या इससे ज्यादा की तीव्रता का भूकंप जिन इलाकों में आने की आशंका है वो इलाके हैं जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, नेपाल, बिहार का तराई वाला इलाका और असम. आपके लिए यकीन करना मुश्किल होगा लेकिन जुलाई 2013 में ही भारत में भूकंप के 19 झटके महसूस किए जा चुके हैं. अगस्त में तो जलजले के 21 झटकों से डर गए थे लोग जबकि सितंबर में अबतक 5 बार हिंदुस्तान की धरती हिल चुकी है. कुदरत का इशारा साफ है. अब सावधान हमें रहना होगा.

हिंदुस्तान में भूकंप से बचाव के लिए अभी भी वैज्ञानिकों की कोशिश जारी है. उत्तराखंड के टिहरी में एक एक ऐसी प्रयोगशाला बनाई गई है जहां धरती के कंपन की एक एक बारीकी को परखा जा रहा है जिससे भविष्य में हिंदुस्तान को ज्यादा महफूज बनाया जा सके.

वैज्ञानिक इस नतीजे पर तो पहुंच चुके हैं कि हिमालय में एक बेहद खतरनाक भूकंप पल रहा
है. जिसके आने पर धरती कांप उठेगी, पहाड़ थरथरा उठेंगे। लेकिन इस भूकंप के आने की आशंका कब है, इस सवाल पर सबकी जुबान खामोश है. हिमालय में बड़े भूकंप के खतरे के मद्देनजर वैज्ञानिकों ने ऑब्जर्वेटरी लगाई है. वैज्ञानिकों की कोशिश है कि बड़े भूकंप के पहले होने वाली किसी हलचल को वो पकड़ सकें और इसकी सही सही जानकारी समय रहते मुहैया करा सकें. इसी कोशिश के तहत केदारनाथ धाम से तकरीबन 50 किलोमीटर की दूरी पर टिहरी के गुत्तू इलाके में एक भूकंप ऑब्जर्वेटरी बनाई गई है.

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भूकंप के दौरान धरती के अंदर होने वाली हलचल के दौरान कई चीजों में बदलाव होता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक गुत्तू भूकंप ऑब्जर्वेटरी में 11 जियोफिजिकल पैरामीटरों पर नजर रखी जा रही है. बड़े भूकंप से पहले धरती के गुरुत्वाकर्षण में बदलाव आता है और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड में बदलाव देखा जाता है. इसके अलावा ग्राउंडवॉटर में भी बदलाव होता है. रेडॉन गैस की मौजूदगी भूकंप से पहले बढ़ जाती है. इसके अलावा भूकंप जोन में चट्टानों में टूट-फूट बढ़ जाती है. ये सारे बदलाव अमूमन दो से 15 दिन पहले दिख सकते हैं. भू वैज्ञानिकों का मानना है कि जब भी केदारनाथ के इलाके में बड़ा भूकंप आएगा तो उससे पहले उनको संकेत मिलने चाहिए.
गुत्तू में 11 तरह के उपकरण लगाए गए हैं जो हिमालय में होने वाली किसी भी बड़ी हलचल को पलक झपकते पकड़ सकते हैं. जमीन में आ रही हलचल जानने के लिए जीपीएस सेंसर भी यहां पर लगाए गए हैं. इससे यहां पर फॉल्ट के आसपास पैदा हुए तनाव और जमीन में आए किसी बदलाव को आसानी से जाना जा सकेगा.

जानकारों का मानना है कि हिमालय के इस इलाके में बड़े भूकंप की आशंका बहुत दिनों से है. हाल ही में उत्तराखंड के तमाम इलाकों में भूकंप की हल्की सुगबुगाहट देखी जा रही है. ऐसे में किसी बड़े भूकंप की वजह से होने वाले नुकसान से बचने के लिए ये बहुत जरूरी है कि इस भूकंप का अंदाजा आने से पहले लगाया जा सके. गुत्तू में वाडिया इंस्टीट्यूट की जियोफिजिकल लैब इसी कोशिश में है कि किसी बड़े भूकंप से पहले उसके आने भविष्यवाणी की जा सके. अगर ऐसा हुआ तो ये बहुत बड़ी कामयाबी होगी और किसी
बड़े नुकसान से लोगों को बचाया जा सकेगा. वैज्ञानिकों की कोशिश है जब भी कोई बड़ा भूकंप आए उससे पहले वो उसको जान सकें. लिहाजा यहां पर मौजूद सभी उपकरणों को लगातार ऑन रखा जा रहा है.

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