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मनमोहन के तीन वार्ताकारों पर मोदी का ये एक वार्ताकार इसलिए पड़ेगा भारी...

यूपीए-2 के कार्यकाल में कश्मीर में शांति के लिए तीन सदस्यों, पत्रकार दिलीप पडगांवकर, सूचना आयुक्त एमएम अंसारी और शिक्षाविद राधा कुमार को वार्ताकार नियुक्त किया गया था.

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फाइल फोटो
फाइल फोटो

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कश्मीर में शांति बहाली के लिए मोदी सरकार ने पूर्व आईबी चीफ दिनेश्वर शर्मा को अपना प्रतिनिधि बनाते हुए सभी पक्षों से बातचीत करने की खुली छूट सौंपी है. इससे पहले भी कश्मीर में सुलह का रास्ता तलाशने के लिए कई वार्ताकारों की नियुक्तियां हुईं थीं, लेकिन इस बार वार्ताकार के रूप में दिनेश्वर शर्मा का चयन कई मायनों में खास है.

दिनेश्वर शर्मा को मिली सुपर पावर

यूपीए-2 के कार्यकाल में कश्मीर में शांति के लिए तीन सदस्यों, पत्रकार दिलीप पडगांवकर, सूचना आयुक्त एमएम अंसारी और शिक्षाविद राधा कुमार को वार्ताकार नियुक्त किया गया था. उस समय बहुत सारी चीजें होम मिनिस्ट्री पहले से तय करती थी. लेकिन इस बार शर्मा को वार्ताकार बनाने के साथ ही सरकार ने उन्हें बहुत सारी शक्तियां भी सौंपी हैं. 1979 बैच के केरल कैडर के आईपीएस दिनेश्वर शर्मा को कश्मीर का अच्छा-खासा अनुभव है. उनकी पहली तैनाती कश्मीर में ही हुई थी. उन्हें एनएसए अजीत डोवाल का भी करीबी माना जाता है.

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एनएसए या पीएम को करेंगे रिपोर्ट

शर्मा को कैबिनेट सेक्रेटरी की रैंक प्रदान की गई है. इसका मतलब ये हुआ कि वे होम सेक्रेटरी को भी नहीं, बल्कि सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रिपोर्ट करेंगे. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कल ही साफ कर दिया था कि दिनेश्वर शर्मा को पूरी स्वतंत्रता दी जाएगी कि वे कश्मीर में किससे, कब-कहां और कैसे बात करेंगे. यानी गृहमंत्रालय का इसमें कोई दखल नहीं होगा.

कोई समय-सीमा नहीं, तसल्ली से करेंगे काम

सरकार इस बार कश्मीर मसले को लेकर कितनी संजीदा है, इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि दिनेश्वर शर्मा को रिपोर्ट सौंपने के लिए कोई तय समय-सीमा नहीं दी गई है. यानि जब उन्हें पूरी तसल्ली हो जाएगी, तब वे अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे. इससे पहले तक जो भी वार्ताकार नियुक्त होते थे, उन्हें ऐसी स्वतंत्रता नहीं मिलती थी.

यूपीए-2 में बनी पडगांवकर कमेटी

यूपीए-2 के कार्यकाल में गृहमंत्री पी चिदंबरम ने तीन वार्ताकारों की नियुक्ति की थी. इसमें दिलीप पडगांवकर, राधा कुमार और एमएम अंसारी थे. उस समिति ने जो रिपोर्ट सौंपी थी, उसे मनमोहन सरकार ने खारिज कर दिया था. समिति की रिपोर्ट पर अमल न करने का दर्द दिलीप पडगांवकर के एक इंटरव्यू में भी दिखा. उन्होंने कहा था कि यूपीए ने उस रिपोर्ट को नकार दिया था. वहीं दूसरी वार्ताकार राधा कुमार का मानना था कि राजनीतिक वार्ता व कॉमन मिनिमम प्रोग्राम अपनाते हुए दीर्घकालिक रणनीति से कश्मीर की समस्या का हल हो सकता है. दिलीप पडगांवकर कमेटी के तीनों सदस्यों ने कश्मीर मामले से जुड़े सभी स्टेक होल्डर्स से मुलाकात की थी.

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इसलिए खारिज हो गई पडगांवकर कमेटी

पडगांवकर कमेटी ने जो रिपोर्ट तैयार की थी, उसमें घाटी में सेना की संख्या कम करने से लेकर मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों को तुरंत निपटाने, हुर्रियत से बातचीत जैसी कई सिफारिशें थीं. मनमोहन सरकार ने इन सिफारिशों को व्यावहारिक न मानते हुए इन्हें लागू नहीं किया.

कई कमेटियां बनीं, लेकिन सभी असरहीन

कश्मीर में शांति के लिए इससे पहले भी कई कमेटियों का गठन किया जा चुका है. केसी पंत और एनएन बोहरा कमेटी ने भी कश्मीर में शांति कायम करने का रास्ता तलाशने की कोशिश की थी, लेकिन ये सभी बेअसर रहीं. पडगांवकर कमेटी इस मायने में अलग थी कि इसके सदस्यों ने अपनी रिपोर्ट दिल्ली में बैठकर नहीं, बल्कि रियासत का दौरा कर, वहां के तकरीबन 700 प्रतिनिधियों से मुलाकात के बाद तैयार की थी.

महबूबा बोलीं, मोदी की बात का असर

दिनेश्वर शर्मा को कश्मीर में सभी पक्षों से बातचीत करने की स्वतंत्रता मिलने से रियासत की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती बेहद उत्साहित हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र के इस रुख से साफ है कि बातचीत की प्रक्रिया एक बार फिर से तेज होगी. महबूबा ने कहा कि पीएम मोदी ने 15 अगस्त को कहा था, 'ना गोली से ना गाली से, कश्मीर की समस्या सुलझेगी गले लगाने से'. यह कदम उसी बात का असर है.

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फारुक ने फिर अलापा पाकिस्तान का राग

पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा कि वे बातचीत शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं. वहीं उमर के पिता फारुक अब्दुल्ला ने पुराना राग अलापते हुए कहा कि यह एक सियासी समस्या है. सिर्फ जम्मू-कश्मीर के लोगों से बातचीत कर इसका हल नहीं निकल सकता. उन्होंने पाकिस्तान को भी इस बातचीत में शामिल करने की बात कही.

कांग्रेस बोली, मोदी ने भूल स्वीकारी

कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि मोदी सरकार ने यह फैसला साढ़े तीन साल के बाद क्यों लिया? उन्होंने यह सवाल उठाते हुए कहा कि आखिरकार मोदी सरकार ने अपनी भूल मान ली. वहीं  पी चिदंबरम ने कहा कि मोदी सरकार के इस फैसले से साफ है कि उन्होंने अब तक सख्ती बरतने वाली भूल स्वीकार कर ली है. अब तक जो बातचीत बिलकुल नहीं कर रहे थे, अब सभी स्टेकहोल्डर्स से बातचीत को राजी हो गए हैं.

वहीं भाजपा महासचिव राम माधव ने कहा कि सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है. उन्होंने साफ किया कि सरकार और गृह मंत्रालय शुरू से कह रहे हैं कि कश्मीर में शांति के लिए वे सभी पक्षों से बातचीत को राजी हैं.

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