जम्मू-कश्मीर में चुनावी प्रक्रिया बहाल करने के मकसद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार को कश्मीर के नेताओं के साथ मैराथन बैठक किया. पीएम मोदी ने कहा कि हमारी प्राथमिकता जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना है. इससे पहले परिसीमन होना जरूरी है ताकि उसके बाद चुनाव कराए जा सकें. वहीं, कश्मीरी नेता राज्य के परिसीमन के मुद्दे पर असहमति जता रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि परिसीमन से आखिर कश्मीर में क्या सियासी समीकरण बदल जाएंगे, जिसके चलते बीजेपी परिसीमन के पक्ष में है तो कश्मीरी नेता विरोध कर रहे हैं?
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन से तय होगा सियासी भविष्य
जम्मू कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया पांच अगस्त 2019 को पारित जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत ही अपनाई गई है. पुनर्गठन अधिनियम के तहत जम्मू कश्मीर राज्य अब दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर व लद्दाख में पुनर्गठित हो चुका है. ऐसे में पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का काम चल रहा है. इससे पहले यहां 1995 में परिसीमन का काम हुआ था.
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं, क्योंकि इससे सियासी भविष्य पूरी तरह प्रभावित होगा. तयशुदा नियमों के मुताबिक, अगर परिसीमन हुआ तो जम्मू कश्मीर में सत्ता और राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल जाएगा. यह परिसीमन जम्मू बनाम कश्मीर या यह सिर्फ सीटों की संख्या बढ़ाने या उनके स्वरूप में संभावित बदलाव तक सीमित नहीं है बल्कि अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों के लिए विधायिका में आरक्षण को भी सुनिश्चित बनाएगा.
परिसीमन के बाद चुनाव कराने का भरोसा
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीरी नेताओं के साथ बैठक में इस बात पर जोर दिया कि सरकार सभी के सहयोग से परिसीमन प्रक्रिया और उसके बाद विधानसभा चुनाव करने के लिए प्रतिबद्ध है. शाह ने सभी नेताओं से परिसीमन प्रक्रिया को जल्द पूरा करने में मदद करने का भी आग्रह किया. साथ ही पीएम ने भी सभी दलों को आश्वासन दिया कि वे परिसीमन प्रक्रिया का एक अभिन्न हिस्सा होंगे और उनके विचारों को लिया जाएगा. उन्होंने उन्हें जल्द से जल्द पूरा करने के लिए प्रक्रिया में भाग लेने का आग्रह किया.
Our priority is to strengthen grassroots democracy in J&K. Delimitation has to happen at a quick pace so that polls can happen and J&K gets an elected Government that gives strength to J&K’s development trajectory. pic.twitter.com/AEyVGQ1NGy
— Narendra Modi (@narendramodi) June 24, 2021
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक के बाद ट्वीट कर कहा कि हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी यह है कि हम बैठ कर आपस में बात कर सकते हैं. उन्होंने एक दूसरे ट्वीट में कहा, 'हमारी प्राथमिकता जम्मू-कश्मीर में ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना है. परिसीमन जल्द होना चाहिए ताकि उसके बाद चुनाव कराए जा सकें.बता दें कि केंद्र शासित जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव से पहले परिसीमन की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए ही बीते साल मार्च में जस्टिस (रिटायर्ड) रंजना देसाई के नेतृत्व में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था, जिसका कार्यकाल इसी साल मार्च में एक साल के लिए और बढ़ाया गया है, जो साल 2022 मार्च में पूरा होगा. इसमें जम्मू कश्मीर के पांचों सांसद भी शामिल हैं, जिनकी भूमिका सलाहकार के तौर पर है. नेशनल कॉन्फ्रेंस से लेकर पीडीपी तक शुरू में परिसीमन का विरोध कर रही हैं और इसे जम्मू कश्मीर में मुस्लिमों के खिलाफ बता रही हैं.
Advertisementकश्मीर की पार्टियां परिसीमन के खिलाफ
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने गुरुवार को पत्रकारों से कहा कि परिसीमन के मुद्दे पर पीएम मोदी की बैठक में उन्होंने असहमति जताई. जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की फिलहाल कोई जरूरत नहीं है, इस मामले में देश के शेष राज्य से जम्मू-कश्मीर को अलग-थलग कर दिया गया है. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी परिसीमन में सहयोग करने को तैयार है. उमर अब्दुल्ला ने कहा कि 'दिल्ली और दिल की दूरी' कम करने के लिए केंद्र सरकार को अभी बहुत कुछ करना बाकी है, सिर्फ कहने या एक बैठक से ही यह नहीं हो जाएगा.
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन से सीटें बढ़ेंगी
बता दें कि पुनर्गठन अधिनियम लागू होने से पहले जम्मू कश्मीर राज्य विधानसभा में 111 सीटें थीं. इनमें कश्मीर संभाग की 46, लद्दाख की चार और जम्मू संभाग की 37 सीटों के अलावा पाक अधिकृत कश्मीर में 24 सीटें थीं. अब लद्दाख की चार सीटें समाप्त हो चुकी हैं और जम्मू कश्मीर में 107 सीटें रह गई हैं. परिसीमन के जरिए सात सीटें बढ़ाए जाने का प्रस्ताव है. यही वो सात सीटें हैं, जिनसे घाटी की सियासत में एक बड़ा सियासी बदलाव हो सकता है.
माना जा रहा है कि परिसीमन के चलते जो सात सीटें बढ़ेंगी, वो जम्मू संभाग में बढ़ेगी. इस तरह से जम्मू की सीटें 37 से बढ़कर 44 हो जाएंगी, जबकि कश्मीर के रीजन की 46 सीटें ही रहेंगी. ऐसी स्थिति में कश्मीर केंद्रित राजनीतिक दलों का वर्चस्व समाप्त हो जाएगा. इसीलिए कश्मीर केंद्रित पार्टियां परिसीमन के विरोध में हैं तो बीजेपी हर हाल में परिसीमन के बाद ही चुनाव कराने के पक्ष में है.
Advertisementएसटी समुदाय के लिए सीटें रिजर्व होंगी
जम्मू कश्मीर में मौजूदा 83 विधानसभा सीटों में से सात अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं और यह सभी सिर्फ जम्मू संभाग के इलाकों में ही हैं. वहीं, अब अनुसूचित जनजातियों के लिए भी 11 सीटें आरक्षित होंगी. मौजूदा परिस्थितियों में जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों के लिए एक भी सीट आरक्षित नहीं है, लेकिन पुर्नगठन के बाद यह लाभ एसटी समुदाय को मिलने जा रहा है.
अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों में से अधिकांश कश्मीर में ही होंगी, क्योंकि जम्मू संभाग में जिन सीटों को इस वर्ग के लिए आरक्षित किया जाएगा, वहां पहले ही गुज्जर बक्करवाल समुदाय के उम्मीदवार ही काबिज हैं. राज्य में अनूसुचित जनजातियों में गुज्जर, बक्करवाल, सिप्पी, गद्दी समुदाय ही प्रमुख है. इसमें गद्दी समुदाय आबादी सबसे कम है और यह गैर मुस्लिम है जो किश्तवाड़, डोडा, भद्रवाह और बनी के इलाके में ही हैं.
वहीं, राजौरी, पुंछ, रियासी, बनिहाल, कुलगाम, बारामुला, शोपियां, कुपवाड़ा, गांदरबल में जनजातीय समुदाय की एक अच्छी खासी तादाद है, लेकिन सियासी तौर पर भागीदारी नहीं है. एससी समाज के लिए 11 सीटें आरक्षित होंगी तो उम्मीदवार सभी पार्टियों से उतरेंगे. ऐसे में जम्मू कश्मीर में एक नया राजनीतिक समीकरण सामने आएगा और बीजेपी को घाटी की सत्ता में आने का सपना भी साकार हो सकेगा. यही वजह है कि बीजेपी चुनाव से पहले परिसीमन हर हाल में करा लेना चाहती है.
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