जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को सत्ता पर काबिज हुए अभी सौ दिन भी नहीं हुए हैं और वह अपनी ही पार्टी में घिरते नजर आ रहे हैं. श्रीनगर से नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद आगा सैयद रोहुल्ला मेहदी ने श्रीनगर के गुपकार रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास के बाहर आज धरने का ऐलान किया है. अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ अपने ही मुख्यमंत्री के आवास के बाहर सांसद के प्रदर्शन की वजह आरक्षण नीति से संबंधित मुद्दा है. हालिया विधानसभा चुनाव में भी उमर अब्दुल्ला की पार्टी ने आरक्षण नीति को मुद्दा बनाया था.
आरक्षण नीति का मसला जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट में भी विचाराधीन है. ऐसे में अपने ही सांसद के खुलकर इस आंदोलन में शामिल हो जाने, सीएम हाउस के बाहर धरना देने से उमर अब्दुल्ला और उनकी सरकार पर आरक्षण नीति को लेकर दबाव बढ़ गया है. मेहदी ने नवंबर महीने में ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट के जवाब में सरकार को कुछ वक्त देने की अपील करते हुए कहा था कि हमारी दो बार सीएम से बात हुई है. 25 नवंबर से 20 दिसंबर तक संसद सत्र में शामिल होकर मुझे आ जाने दीजिए.
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नेशनल कॉन्फ्रेंस के फायरब्रांड सांसद ने पिछले महीने ही सीएम हाउस के बाहर धरना देने के संकेत दे दिए थे. मेहदी के धरने को लेकर सीएम उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि विरोध-प्रदर्शन लोकतांत्रिक अधिकार है. उन्होंने साथ ही ये भी स्पष्ट किया है कि इस मुद्दे को न तो दबाया गया है और ना ही अनदेखा किया गया है. सरकार वही कर रही है जो कोई भी जिम्मेदार सरकार करेगी. सीएम उमर अब्दुल्ला ने कहा कि विधानसभा चुनाव के घोषणापत्र में हमने इसके सभी पहलुओं की जांच करने की प्रतिबद्धता जताई थी और इसके लिए कैबिनेट की एक उप कमेटी का गठन किया गया है जो अब काम शुरू करने की प्रक्रिया में है.
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सीएम ने यह भी कहा है कि आरक्षण नीति को हाल ही में जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. जब सभी कानूनी विकल्प समाप्त हो जाएंगे तो निश्चित रूप से हम किसी भी निर्णय को मानने के लिए बाध्य होंगे. अब सवाल ये भी है कि आखिर आरक्षण नीति से जुड़ा ये पूरा मामला क्या है जिससे सीएम उमर अब्दुल्ला को अपनी ही पार्टी के सांसद के विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
क्या है आरक्षण नीति से जुड़ा मामला
दरअसल, केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर में ओबीसी की सूची संशोधित की थी. ओबीसी की लिस्ट में कुछ नई जातियों को शामिल किया गया था और पहाड़ी समुदाय को एसटी का दर्जा देकर अलग से आरक्षण का प्रावधान सरकार की ओर से कर दिया गया था. केंद्र सरकार के इस कदम से अनारक्षित कोटा 40 फीसदी के करीब ही रह गया. सरकार के इस कदम से परंपरागत रूप से दो बड़े समूह कश्मीरी और डोगरा सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. दोनों समुदाय के लोगों ने इस नई नीति के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. कश्मीरी और डोगरा इस आरक्षण नीति को बहुसंख्यक विरोधी बता रहे हैं. जम्मू कश्मीर चुनाव में भी यह बड़ा मुद्दा बना था और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सत्ता में आने पर इसका हल निकालने का वादा किया था.